हिंसा को किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता

Tuesday, Jul 10, 2018 - 03:07 AM (IST)

सोशल मीडिया जान लेता है और कैसे? भीड़ द्वारा हत्याएं पुन: राजनीतिक और सामाजिक सुर्खियोंं में आ गई हैं। भीड़ द्वारा महाराष्ट्र, कर्नाटक, त्रिपुरा, आंध्र, तेलंगाना, गुजरात और पश्चिम बंगाल सहित असम से लेकर तमिलनाडु तक 9 राज्यों में 17 मामलों में 27 निर्दोष लोगों की हत्या की गई। 

इन मामलों में भीड़ पुलिस से भी तेजी से कार्रवाई करती है और अधिकारी प्रौद्योगिकी के माध्यम से ऐसी हत्याओं को रोकने के लिए तौर-तरीकों को नहीं ढूंढ पा रहे हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के धुले जिले में भीड़ द्वारा 5 लोगों की हत्या की गई और इसका कारण व्हाट्सएप पर बच्चों की खरीद-फरोख्त की झूठी अफवाह थी, जिसके चलते भीड़ ने इन लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। 

कुछ राज्यों ने ऐसी अफवाहों से आगाह करने के लिए कुछ लोगों की सेवाएं ली हैं जो लाऊडस्पीकर लेकर गांव-गांव जा रहे हैं और झूठी खबरों के खतरों के बारे में लोगों को बता रहे हैं। ये राज्य ऐसी हिंसा पर नियंत्रण लगाना चाहते हैं। इन घटनाओं से दुखी उच्चतम न्यायालय ने भीड़ द्वारा ऐसी हत्याओं को सभ्य समाज में अस्वीकार्य अपराध बताया है और कहा है कि कोई भी कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता है एवं ऐसी घटनाओं पर रोक की जिम्मेदारी राज्यों पर डाली है। न्यायालय ने कहा है कि राज्यों को ऐसी घटनाओं को रोकने और पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए दिशा-निर्देश बनाने चाहिएं। न्यायालय गौरक्षकों पर नियंत्रण लगाने के लिए दिशा-निर्देश बनाने के संबंध में निर्देश देने की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। 

यह बताता है कि स्थानीय गुप्तचर सेवा कितनी अप्रभावी है। वह पुलिस को तनाव या भावी हमले के बारे में आगाह नहीं कर पाती। यह सेवा ऐसे समूहों के पास हथियारों और उनमें शामिल व्यक्तियों के बारे में सूचना जुटाने में भी सक्षम नहीं है। ऐसी हत्याएं हमारी व्यवस्था की कमजोरी का संकेत हैं और यह बताता है कि देश में कानून का पालन नहीं हो रहा है। देश में घृणा और आक्रोश का एक नया पंथ स्थापित हो गया है। गुंडागर्दी, हत्या और जघन्य अपराध किए जा रहे हैं और हम ऐसे तत्वों के बंदी बन गए हैं। यदि समय पर हस्तक्षेप किया जाता तो भीड़ द्वारा ऐसी हत्याओं को रोका जा सकता था। भीड़ द्वारा ऐसा उपद्रव कोई नई बात नहीं है। कुछ राज्यों में सत्तारूढ़ दलों द्वारा इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है तथा कई बार अपनी राजनीतिक सत्ता को बचाने और अपने समर्थकों को बचाने के लिए ऐसी घटनाओं को नजरअंदाज किया जाता है। 

पिछले 3 वर्षों में ऐसी अनेक घटनाएं हुईं। उत्तर प्रदेश के दादरी में एक मुसलमान की इस अफवाह के बाद भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई कि उसके फ्रिज में गौमांस है। उसके बाद गुजरात के उना में गौरक्षकों द्वारा 4 दलितों की हत्या कर दी गई। अलवर में गौ तस्करी के संदेह में पहलू खान और फरीदाबाद में जुनैद की हत्या की गई। देश में गौहत्या और गौमांस भक्षण के मुद्दे पर ऐसी अनेक घटनाएं हुईं। फिर प्रश्न उठता है कि क्या हमारे देश में अभी भी कानून का शासन है? हम भीड़ द्वारा ङ्क्षहसा के बारे में इतने उदासीन क्यों हैं? ये उपद्रवी समाज और प्राधिकारियों से आगे कैसे बढ़ जाते हैं? हमारा समाज नैतिक दृष्टि से इतना भ्रष्ट कैसे बन गया कि ऐसी घटनाएं होने लग गईं। क्या हम ऐसी घटनाओं को पसंद करते हैं? कल तक गौरक्षकों द्वारा गौमांस को लेकर लोगों की हत्या की जा रही थी, आज अफवाहों को लेकर ऐसी घटनाएं हो रही हैं और अब लगता है कि हमें हर समय अपने पहचान पत्र साथ में रखने चाहिएं। 

हमारे देश में 100 करोड़ से अधिक सक्रिय मोबाइल फोन कनैक्शन हैं और 30 करोड़ से अधिक लोगों के पास व्हाट्सएप सुविधा है। इसलिए सरकार को कोई उपाय नहीं सूझता कि वह झूठी खबरों के आधार पर किस तरह ङ्क्षहसा पर अंकुश लगाए। ऐसी ङ्क्षहसा पर अंकुश लगाना स्थानीय प्राधिकारियों पर छोड़ दिया जाता है। चेतावनियां जारी की जाती हैं और गांव-गांव जाकर जनजागरण का प्रयास किया जाता है। किंतु यह पर्याप्त नहीं है। जबकि सरकार दावा करती है कि वह भरसक प्रयास कर रही है। साथ ही सरकार को बलि के बकरे के रूप में व्हाट्सएप मिल गया है और वह व्हाट्सएप से कहती है कि वह ऐसे संदेशों पर रोक लगाए।

इससे पता चलता है कि सरकार का दृष्टिकोण कितना अनुचित है और उसे आधुनिक संदेश भेजने वाले साधनों की समझ नहीं है। साथ ही सरकार ऐसी जघन्य हत्याओं के मामले में व्यापक मुद्दों का निराकरण करने में भी विफल ही है। भीड़ द्वारा हत्याएं कानून और व्यवस्था की समस्याएं हैं। इसके 3 मुख्य कारण हैं। पहला, जाति और पंथ पहचान। दूसरा, न्यायालय द्वारा भीड़ द्वारा ङ्क्षहसा करने वालों को दंडित न किया जाना, जहां पर राज्य के प्राधिकारी उपस्थित भी होते हैं, वे भीड़ को चुनौती देने में सक्षम नहीं होते हैं और तीसरा, कानून को लागू करने वाले ङ्क्षहसा में भागीदार बन जाते हैं। कानून का शासन कमजोर हो गया है और इसका उदाहरण गौमांस पर प्रतिबंध लगाने के बारे में भीड़ द्वारा हिंसा है। 

विडंबना देखिए, 2019 के चुनावों के निकट आते हुए व्हाट्सएप ने अपना विस्तार कर दिया है। राजनीतिक दल हजारों व्हाट्सएप वारियर भर्ती कर रहे हैं जो कई मामलों में आपत्तिजनक संदेश फैलाते हैं किंतु साथ ही सरकार और राजनीतकि दलों को सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफार्मों द्वारा दी जा रही सूचनाओं की सत्यता के बारे में जानने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके अलावा पुलिस बल को ऐसे क्षेत्रों की पहचान कर प्रभावी उपाय करने चाहिएं और गलत सूचनाओं के संबंध में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। पुलिस बल को समाज में जागरूकता पैदा करनी चाहिए, उसका विश्वास जीतना चाहिए तथा भीड़ द्वारा हिंसा पर रोक लगानी चाहिए और अपहरण आदि जैसे मुद्दों पर लोगों के भय को दूर करना चाहिए। 

भीड़ द्वारा हत्या के मामले में व्हाट्सएप को दोषी बताना बताता है कि सरकार नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को न निभाने का प्रयास कर रही है। वह जनता से जुडऩे के अवसर को भी खो रही है और दुष्प्रचार की समस्या और इस पर अंकुश लगाने के उपायों को नहीं समझ पा रही है। आशा की जाती है कि सरकार प्रौद्योगिकी कम्पनियों के साथ सहयोग कर प्रौद्योगिकी के प्रयोग से इस पर अंकुश लगाने के नए उपाय ढूंढेगी। किन्तु यह तभी संभव है जब सरकार इस चुनौती का सामना करने के लिए इच्छाशक्ति दिखाए। 

विश्व के अनेेक देश झूठी खबरों पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं और इसकी शुरूआत 2016 में अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस द्वारा हस्तक्षेप और घृणा भरे भाषणों से हुई। ऐसी प्रतिक्रियाओं से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में भी ङ्क्षचता बढ़ी है। किन्तु झूठी खबरें भारत के लिए विशेषकर हानिकारक हैं क्योंकि यहां पर अनुभवहीन स्मार्ट फोन प्रयोक्ता हैं जो एक दिन में करोड़ों संदेश भेजते हैं। व्हाट्सएप ने अपनी ओर से एक ऐसा फंक्शन शुरू किया है जो गु्रप के एडमिनिस्ट्रेटर को मैसेज पोस्ट करने पर अंकुश लगाने की अनुमति देता है। समय ही बताएगा कि झूठी अफवाहों को फैलाने पर अंकुश लगाने में यह कितना कारगर होगा। 

भीड़ द्वारा हत्या हिंसा की खतरनाक राजनीतिक प्रवृत्ति को भी दर्शाता है और यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो समाज का बिखराव हो जाएगा। हाल की घटनाएं बताती हैं कि हमें इस बारे में सोचना चाहिए कि हम किस तरह का भारत चाहते हैं। समाज में भीड़ द्वारा हत्याओं के लिए कोई स्थान नहीं है। समय आ गया है कि सरकार उन व्यापक मुद्दों का समाधान करे जिनके चलते लोग झूठी खबरों पर विश्वास कर लेते हैं। लोगों को भीड़ द्वारा हत्याओं के बारे में आगाह किया जाना चाहिए अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब भीड़ का तात्पर्य भारतीय समाज होगा। हिंसा को किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता है। अत: झूठी खबरों और घृणा भरे भाषणों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।-पूनम आई. कौशिश

Pardeep

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