घृणास्पद भाषणों की आलोचना करने में उप-राष्ट्रपति की पहल सराहनीय

Thursday, Jan 06, 2022 - 05:32 AM (IST)

घृणास्पद भाषणों की घटनाओं में होने वाली परेशानीपूर्ण वृद्धि के बीच अच्छी बात यह है कि एक वरिष्ठ केंद्रीय नेता ने समझदारीपूर्ण आवाज उठाई है। तथाकथित धार्मिक नेताओं के एक वर्ग द्वारा दिए जा रहे उकसाहटपूर्ण भाषणों को अस्वीकृत किया है। उप-राष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने सोमवार को अपनी चुप्पी तोड़ी तथा अन्य धर्मों का उपहास उड़ाने तथा समाज में मतभेद पैदा करने के प्रयासों की कड़ाई से निंदा की। उन्होंने सही कहा कि देश में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने तथा उसका प्रचार करने का अधिकार है। 

उप-राष्ट्रपति ने केरल कैथोलिक समुदाय से एक आध्यात्मिक नेता तथा समाज सुधारक संत कुरियाकोसे एलियास चावरा की 150वीं बरसी पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि ‘अपने धर्म का पालन करें लेकिन अपमान व घृणास्पद भाषणों तथा लेखों में शामिल न हों।’ यह देखते हुए कि घृणास्पद भाषण तथा लेख संस्कृति विरासत, परम्पराओं, संवैधानिक अधिकारों तथा नियमों के खिलाफ हैं, नायडू ने कहा कि धर्म निरपेक्षता प्रत्येक भारतीय के खून में है तथा देश को अपनी संस्कृति तथा विरासत के लिए विश्वभर में सम्मान प्राप्त है। 
नायडू ने निश्चित तौर पर एक चोट की है। 

राज्य सरकारें, विशेषकर वे जहां पर भारतीय जनता पार्टी का शासन है, कुछ तत्वों द्वारा जहरीले भाषण देने के बावजूद अपनी नजरें दूसरी ओर फेरे हुए हैं। ऐसे ‘गुरुओं’ के खिलाफ  कानूनी कार्रवाई शुरू करने की बात न करते हुए नेता ऐसे उकसाहटपूर्ण भाषणों की आलोचना भी नहीं करते। हाल ही में हरिद्वार में एक धर्म संसद का आयोजन किया गया जहां कथित रूप से कुछ प्रतिभागियों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ घृणास्पद भाषण दिए गए। इसी तरह ओवैसी सहित कुछ मुसलमान नेता उकसाहटपूर्ण भाषण दे रहे हैं। यह सरकार का काम है कि वह ऐसे तत्वों को गिरफ्तार करे जो शांतिपूर्ण माहौल बिगाडऩे पर तुले हुए हैं। यदि ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती, देश में उभर रही गंभीर साम्प्रदायिक स्थिति की आशा की जा सकती है। 

चूंकि कानून व्यवस्था लागू करने तथा शांति को भंग करने की आशंका के खिलाफ बचावात्मक कार्रवाइयां राज्य सरकारों द्वारा की जानी चाहिएं, यह अनिवार्य है कि वे कार्रवाई करने में चयनात्मक नहीं है। जब सरकार की किसी भी तरह की आलोचना की जाती है, इनमें से कुछ सरकारें, विशेषकर उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की, अति संवेदनशील हैं। यह सरकार की आलोचना करने वालों के खिलाफ यू.ए.पी.ए. तथा देशद्रोह के कानून लागू करने में संलग्र है लेकिन जो लोग साम्प्रदायिक नफरत फैला रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई करने से हिचकिचा रही है। 

यद्यपि यह केंद्रीय नेताओं को दोषमुक्त नहीं करता जिन्हें देश में फूट  डालने के प्रयासों के खिलाफ बोलना चाहिए। उनकी चुप्पी को ऐसे तत्वों की कार्रवाइयों के समर्थन के तौर पर देखा जा सकता है। कुछ लोगों द्वारा उकसाहटपूर्ण तथा साम्प्रदायिक टिप्पणियों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है जिनमें युवा शामिल हैं। ‘सुल्लीडील्स’ तथा ‘बुल्लीबाई’ से संबंधित हालिया मामलों ने इस रुझान को उजागर किया है। इसमें शामिल लोगों ने मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अमानवीय, आपत्तिजनक तथा शर्मनाक  शब्दावली का इस्तेमाल किया। ये कट्टरता तथा स्त्री द्वेष के सबसे खराब उदाहरण हैं। 

अब यह पता चला है कि इस गलत कार्य के पीछे एक 21 वर्षीय लड़का तथा 19 वर्षीय एक लड़की थी। यह दिखाता है कि कैसे प्रभावित करने योग्य मन घृणास्पद भाषणों तथा उकसाहटपूर्ण टिप्पणियों द्वारा विषैले किए जा सकते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि जहां दिल्ली पुलिस कई शिकायतों को 6 महीनों से भी अधिक समय से दबाकर बैठी है, मुम्बई पुलिस ने दोषियों का पता लगाने में ज्यादा समय नहीं लगाया है। 

यह दिखाता है कि पुलिस कुशलतापूर्वक काम कर सकती है यदि उसके पास इच्छाशक्ति तथा राजनीतिक समर्थन हो। हाल ही में सशस्त्र बलों के पांच सेवानिवृत्त प्रमुखों, 75 प्रसिद्ध वकीलों तथा कई अन्य संगठनों सहित कई प्रमुख हस्तियों ने ऐसे घृणास्पद भाषणों की आलोचना की है। यद्यपि उप-राष्ट्रपति द्वारा घृणास्पद भाषणों की आलोचना ने हमारे शीर्ष नेताओं की गंभीर चुप्पी को तोड़ दिया है। शीर्ष पदों पर बैठे अन्य लोगों तथा नेताओं को भी आवश्यक तौर पर बोलना चाहिए तथा समाज में जहर उगलने वाले भ्रमित लोगों को एक सही संदेश देना चाहिए।-विपिन पब्बी 
 

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