वाजपेयी की मुस्कान मंत्रमुग्ध करने वाली थी

Sunday, Aug 19, 2018 - 03:58 AM (IST)

एक राजनीतिज्ञ के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी की मुस्कान सर्वाधिक आकर्षक थी। ऐसा दिखाई देता था कि जैसे वह उनके पूरे चेहरे पर फैली हो मगर उसके साथ ही उनकी आंखों में भी चमक पैदा करती हो। इससे वह एक आनंदित शरारती दिखाई देते थे। वह लगातार मुस्कुराने से हिचकिचाते नहीं थे। दरअसल मुझे लगता था कि उन्हें मुस्कुराने में मजा आता है। परिणामस्वरूप इस अतुलनीय व्यक्ति की मुस्कान मेरी एक अमिट याद बन गई। 

अटल जी की मुस्कान के बारे में एक अन्य बात यह कि वह गर्मजोशी भरी तथा मंत्रमुग्ध करने वाली थी। जो कभी भी ठंडी अथवा परेशान करने वाली नहीं थी। अटल जी की मुस्कान के पीछे एक गर्मजोशी भरा तथा दरियादिल व्यक्ति था इसलिए उनकी मुस्कान के पीछे कुछ छुपाव नहीं था। मुझे इसका पहला एहसास 1991 में राजीव गांधी की हत्या के कुछ ही समय बाद हुआ। मैं उस समय आईविटनैस नामक एक वीडियो मैगजीन का सम्पादन करता था, जिसने हत्या किए गए पूर्व प्रधानमंत्री के लिए एक विशेष श्रद्धांजलि की योजना बनाई और हमारा विचार उनसे जुड़ी सर्वाधिक महत्वपूर्ण यादों को सांझा करने के लिए बहुत सारे लोगों को आमंत्रित करने का था। 

जब मैंने अटल जी से सम्पर्क किया तो उन्होंने मुझसे उनका मन बना लेने से पहले उनसे मिलने को कहा। इसके बाद जो हुआ वह एक असामान्य बातचीत थी, जो हमारी श्रद्धांजलि में एक विलक्षण तथा दिल को छू लेने वाला पल बन गया। ‘‘मैं राजीव के बारे में बोलते हुए बहुत खुश हूं,’’ अटल जी ने कहना शुरू किया, ‘‘मगर मैं एक विपक्षी नेता के तौर पर नहीं बोलना चाहता क्योंकि इससे मुझे वह कहने की आजादी नहीं मिलेगी जो मैं वास्तव में आपसे कहना चाहता हूं। मैं एक व्यक्ति के तौर पर बोलना चाहता हूं जिसने राजीव का एक पक्ष जाना है। जो सम्भवत: सार्वजनिक जीवन में किसी अन्य ने नहीं देखा होगा। यदि आपको यह ठीक लगे तो मुझे आपकी श्रद्धांजलि योजना का हिस्सा बनने में खुशी होगी।’’ 

मैं सुनिश्चित नहीं था कि उनके दिमाग में क्या है। यह पहेली जैसा सुनाई देता था मगर मैं और अधिक जानना चाहता था। इसलिए मैंने उनसे कहा था कि जो कुछ भी आप कहना चाहते हैं, मुझे बताएं। प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के पहले हिस्से के दौरान राजीव गांधी को पता चला कि अटल जी को किडनी की समस्या है और उन्हें उपचार की जरूरत है। अत: उन्होंने उन्हें संसद स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय में बुलाया और कहा कि वह उन्हें संयुक्त राष्ट्र जाने वाले भारतीय शिष्टमंडल का सदस्य बनाना चाहते हैं और आशा करते हैं कि वह न्यूयार्क जाने तथा उपचार करवाने के लिए मान जाएंगे और अटल जी ने वही किया।

जैसा कि उन्होंने मुझसे कहा, सम्भवत: इससे उनकी जान बच गई और अब राजीव की अचानक तथा दुखद मृत्यु के बाद वह उन्हें धन्यवाद कहने के एक तरीके के तौर पर इस कहानी को सार्वजनिक करना चाहते हैं। अब यह सामान्य तौर पर वह तरीका नहीं है जिससे विरोधी पक्षों के राजनीतिज्ञ एक-दूसरे से बातचीत करते हैं। यदि वे कभी करते भी हैं तो वह केवल निजता में होती है। एक सार्वजनिक वक्तव्य में ऐसा करने के लिए अटल जी का दृढ़निश्चय न केवल असामान्य था बल्कि सचमुच विलक्षण था। और भी अधिक महत्वपूर्ण यह कि उनके द्वारा दिया गया आभार दिल से था।

इस कहानी ने मेरे दिल के तारों को गहराई से छू लिया और मैं जानता था कि इसका दर्शकों पर भी वैसा ही प्रभाव होगा। इसके श्रद्धांजलि का सबसे अधिक महत्वपूर्ण हिस्सा होने की सम्भावना थी। मैंने तुरंत स्वीकृति दे दी। हमने अगले दिन रिकार्डिंग की और अटल जी ने ठीक वैसे ही बोला जैसे उन्होंने कहा था। हालांकि उन्होंने जो प्रभाव छोड़ा वह उस मूल विषय-वस्तु से कहीं अधिक था जो वह कहना चाहते थे। उनके धीरे-धीरे बोलने तथा स्वाभाविक भावनाओं ने हर किसी पर एक न भुलाया जा सकने वाला प्रभाव छोड़ा। जब मैंने इस जादुई पल के लिए उन्हें धन्यवाद दिया तो उन्होंने एक ऐसी चीज कहने के लिए अवसर देने हेतु मुझे धन्यवाद कहा जिसे वह बड़े लम्बे समय से व्यक्त करना चाहते थे मगर जानते नहीं थे कि कैसे किया जाए। उन्होंने कहा कि उनके दिमाग  से एक बोझ उतर गया है। अटल जी के निधन ने हम सबको गरीब बना दिया है।-करण थापर

Pardeep

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