संकुचित राजनीतिक सोच से बहुत ऊपर थे वाजपेयी

punjabkesari.in Saturday, Aug 18, 2018 - 03:20 AM (IST)

ओजस्वी वक्ता, संवेदनशील कवि, एक राजनेता से कहीं अधिक ऊंचे कद वाले राजनीतिज्ञ,धरती पुत्र पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनेता के तौर पर जितने सराहे गए, उतना ही प्यार उनकी दिल को छू जाने वाली कविताओं को भी मिला । उनकी कई कविताएं उनके व्यक्तित्व की परिचायक बन गईं तो कइयों ने जीवन को देखने का उनका नजरिया दुनिया के सामने रख दिया। साल 1988 में जब वाजपेयी किडनी का इलाज करवाने अमरीका गए थे तब धर्मवीर भारती को लिखे एक खत में उन्होंने मौत की आंखों में देखकर उसे हराने के जज्बे को कविता के रूप में सजाया था। यह कविता थी  ‘ठन गई! मौत से ठन गई!’ 

धर्मवीर भारती को लिखे खत में अटल जी ने बताया था कि डाक्टरों ने उन्हें सर्जरी की सलाह दी है। उसके बाद से वह सो नहीं पा रहे थे। उनके मन में चल रही उथल-पुथल ने इस कविता को जन्म दिया था। दिलचस्प बात यह भी है कि अमरीका में अटल जी को इलाज के लिए भेजने के पीछे एक बड़ा योगदान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का था। राजीव ने संयुक्त राष्ट्र को भेजे डैलीगेशन में अटल जी का नाम शामिल किया था ताकि इसी बहाने वह अपना इलाज करवा सकें। अटल हमेशा इस बात के लिए राजीव गांधी की महानता की सराहना करते रहे और कहते रहे कि राजीव की वजह से ही वह जिंदा हैं। 

1957 में जब अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर से पहली बार लोकसभा सदस्य बनकर पहुंचे तो सदन में उनके भाषणों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को बेहद प्रभावित किया। विदेश मामलों में वाजपेयी की जबरदस्त पकड़ के पंडित नेहरू कायल हो गए। उस जमाने में वाजपेयी लोकसभा में सबसे पिछली बैंचों पर बैठते थे लेकिन इसके बावजूद नेहरू उनके भाषणों को खासी तवज्जो देते थे। 

इन दिग्गज नेताओं के रिश्तों से जुड़े कुछ किस्सों का वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग ने अपनी किताब ‘अटल बिहारी वाजपेयी, ए मैन फॉर ऑल सीजन’ में जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि दरअसल एक बार जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आए तो नेहरू जी ने वाजपेयी से उनका विशिष्ट अंदाज में परिचय कराते हुए कहा, ‘‘इनसे मिलिए, ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं। मेरी हमेशा आलोचना करते हैं लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूं।’’ इसी तरह यह भी कहा जाता है कि एक बार नेहरू ने किसी विदेशी अतिथि से अटल बिहारी वाजपेयी का परिचय संभावित भावी प्रधानमंत्री के रूप में कराया। 

नाग ने अपनी किताब में 1977 की एक घटना का जिक्र किया है जिससे पता चलता है कि पंडित नेहरू के प्रति वाजपेयी के मन में कितना आदर था। उनके मुताबिक 1977 में वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो जब कार्यभार संभालने के लिए साऊथ ब्लॉक के अपने दफ्तर पहुंचे तो उन्होंने गौर किया कि वहां पर लगी नेहरू की तस्वीर गायब है। उन्होंने तुरंत अपने सैक्रेटरी से इस संबंध में पूछा। पता लगा कि कुछ अधिकारियों ने जानबूझकर वह तस्वीर वहां से हटा दी थी। वह शायद इसलिए क्योंकि नेहरू विरोधी दल के नेता थे। लेकिन वाजपेयी ने आदेश देते हुए कहा कि उस तस्वीर को फिर से वहीं लगा दिया जाए। वाजपेयी जी का राजनीतिक नजरिया संकुचित और तुच्छ सोच से बहुत ऊंचा था। यह नजरिया आज देश में नदारद है। सचमुच भारतरत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्र कभी भुला न पाएगा।-डा. वरिन्द्र भाटिया


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Pardeep

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