वैक्सीन लहर बनाम चुनावी लहर

punjabkesari.in Thursday, Jul 01, 2021 - 06:21 AM (IST)

पूरी दुनिया में आर्थिक तबाही मचा चुके और करीब 40 लाख लोगों की जान ले चुके कोरोना वायरस के खिलाफ अगर कोई कारगर हथियार है तो वह सिर्फ वैक्सीन है। दुनिया के वैज्ञानिक जोर दे रहे हैं कि कम से कम 60 से 70 फीसदी आबादी को जितना जल्द हो सके टीके की दोनों खुराक मिल जाए तो महामारी कोविड-19 को लगाम लग सकती है। 16 जनवरी 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोविड-19 महामारी को हराने के लिए निर्णायक जंग का ऐलान करते हुए देश में सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का श्रीगणेश किया था। 

टीकाकरण के पहले दिन 3,352 केंद्रों पर 1,91,181 स्वास्थ्य कर्मियों और सफाई कर्मियों को टीके की पहली खुराक दी गई। दुनिया के सबसे बड़े कहे गए इस टीकाकरण अभियान की स्थिति को सही से समझने के लिए हमें विश्व के आंकड़ों का भी अवलोकन करना चाहिए। अवर वल्र्ड इन डाटा के ताजा आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में विभिन्न कोशिशों में वैक्सीन के करीब 304 करोड़ डोज लोगों को लगाए जा चुके हैं। तकरीबन 84.6 करोड़ लोगों को दोनों डोज लग चुके हैं। यानी पूरी दुनिया की अभी केवल 10.7 प्रतिशत आबादी को ही पूरी वैक्सीन मिली है। अगर भारत की बात करें तो अभी तक सिर्फ 4.5 प्रतिशत जनसं या को ही हम वैक्सीन की दोनों खुराक दे पाए हैं। 

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से 29 जून को जारी आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश में वैक्सीन की 32.9 करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं। अभी  5.52 करोड़ लोगों यानी 4.5 प्रतिशत आबादी को ही वैक्सीन की दोनों डोज मिली हैं। दूसरी ओर अमरीका में 46.6 प्रतिशत, इंगलैंड में 48.7 प्रतिशत, इसराईल में 57 प्रतिशत, कनाडा में 26.5प्रतिशत और जर्मनी सहित अधिकांश यूरोपीय देशों में 30 प्रतिशत से ज्यादा जनसं या को वैक्सीन की पूरी यानी दोनों खुराक मिल चुकी है। अरब देशों में बहरीन में 59.4 प्रतिशत, कतर में 48.2 प्रतिशत, संयुक्त अरब अमीरात में 39.3 प्रतिशत आबादी को पूरी डोज लग चुकी है। 

कुल मिलाकर दुनिया के छोटे-बड़े 87 देश ऐसे हैं जो अपनी 10 फीसदी से ज्यादा आबादी को टीके की दोनों खुराक 28 जून 2021 तक दे चुके हैं। इनमें अधिकांश वे देश हैं जिनमें टीके की एक भी डोज नहीं बनती। हमारे किसी नगर से भी कम जनसं या वाले देश माल्टा 61.6 प्रतिशत और सेशल्स 68.9 प्रतिशत लोगों को पूरी खुराक देकर हर्ड इ युनिटी स्तर हासिल करने के बेहद करीब हैं। दूसरी ओर दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का दावा करने वाला हमारा देश 6 महीने से ज्यादा समय में सिर्फ 4.5 फीसदी आबादी को ही पूरी खुराक दे पाया है। बड़ी और सघन आबादी वाले उत्तर प्रदेश तथा बिहार में तो स्थिति और भी दयनीय है। दोनों ही राज्य अभी सिर्फ 2.1 प्रतिशत आबादी को ही टीके की पूरी डोज दे पाए हैं। 

हम अपनी ढिलाई को छुपाने के लिए यह तर्क दे सकते हैं कि हमारी आबादी बहुत ज्यादा है। मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैक्सीन उत्पादन में दुनिया के सर्वाधिक क्षमता वाले संस्थान भी हमारे पास हैं। 6 महीनों में कोविशील्ड की 30 करोड़ से ज्यादा डोज का उत्पादन देश में हुआ मगर इसमें से करीब आधी ही भारतीयों को लगी हैं। बाकी अन्य देशों को गईं। आबादी ज्यादा है तो हमारे पास टीका लगाने वाले हाथ भी ज्यादा हो सकते थे।

दुनिया के जो देश टीकाकरण में आज आगे हैं, उनमें से अधिकांश ने पिछले साल नव बर तक ही वैक्सीन निर्माता कंपनियों से अपनी आबादी से ज्यादा टीकों की खरीद के अनुबंध कर लिए थे। जहां तक टीका खरीद की बात है तो हमारे यहां मई के अंत तक केंद्र और राज्यों में यह खींचतान मची थी कि टीका हमें नहीं आपको खरीदना है। टीके उपलब्ध नहीं थे और ग्लोबल टैंडर का नाटक हो रहा था। 

हमारे ही बराबर आबादी चीन की भी है। इस साल मई तक टीकाकरण में वह भी काफी पीछे था। मई मध्य में वहां रोज करीब 2 करोड़ लोगों को टीका लगाने का अभियान शुरू हुआ। अब स्थिति यह कि करीब 120 करोड़ वैक्सीन डोज लगाई जा चुकी हैं। 22.3 करोड़ लोगों पूरी खुराक मिल चुकी है। वहां की 16 प्रतिशत आबादी को टीके की संपूर्ण खुराक मिल चुकी है। सिर्फ साढ़े चार फीसदी आबादी को ही पूर्ण वैक्सीन सुरक्षा मुहैया करा पाने के बीच हम तीसरी लहर की अटकलों से खेल रहे हैं। क्या फिर ऐसा ही होगा जब तीसरी लहर सामने होगी और  देश की अदालतें ही ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं की व्यवस्था के लिए औंधे पड़े प्रशासन को ठोक बजाकर सक्रिय और सुचारू करने का प्रयास करेंगी। 

हम यह मना सकते हैं कि ऐसा न हो लेकिन वैक्सीन को लेकर जो लक्ष्य बार-बार पुनॢनर्धारित किए जा रहे हैं, उससे किसी आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। अब लगता यह है कि सरकार का पहला लक्ष्य किसी तरह 60-70 फीसदी आबादी को वैक्सीन का एक डोज देकर उसे थोड़ा-बहुत सुरक्षित किया जाए। सुरक्षा कितनी होगी, यह तो वक्त ही बताएगा। सरकारों का उद्देश्य रिकार्ड बनाना नहीं बल्कि अपने लोगों की जान बचाना होता है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक दिन आप 17 लाख लोगों को टीका लगाकर वाहवाही लूटो और अगले दिन पांच हजार पर सिमट जाओ। 

उत्तर प्रदेश इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि वहां अगले वर्ष शुरू में ही चुनाव होना है और चुनावी गतिविधियां भी सितंबर से शबाब से होना शुरू हो जाएंगी। अक्तूबर में दीवाली है। इसलिए जो भी करना है सित बर तक कर लेना होगा। ज्यादा से ज्यादा यह सीमा अक्तूबर-नवंबर तक ले जाई जा सकती है। सितंबर में ही तीसरी लहर आशंकित है। तीसरी लहर से बचना जरूरी है। कहीं ऐसा न हो कि तीसरी लहर में चुनावी लहर आ जाए और चुनावी लहर भी तीसरी लहर में समाहित हो जाए। तो तय है कि इसका खामियाजा उत्तर प्रदेश की सरकार को भोगना पड़ेगा और  फिर कोई कारण नहीं कि इसका असर केंद्र पर न हो। यानी 2024 के रास्ते की रुकावट उत्तर प्रदेश का रास्ता ही हो सकता है।-अकु श्रीवास्तव


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