सामाजिक समरसता बढ़ाएगा सवर्ण आरक्षण

punjabkesari.in Sunday, Nov 13, 2022 - 05:24 AM (IST)

कहते हैं गरीबी से बड़ा कोई अभिशाप नहीं। गरीबी न जाति देखती है न धर्म। पिछड़ेपन के मूल में भी गरीबी ही है। केंद्र की प्रगतिशील और संवेदनशील सरकार ने समाज के इस सच को पहचाना और 2019 में संविधान संशोधन विधेयक लाकर  देश में निर्धन सवर्ण आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया, जो गरीबी के कारण पिछड़े सवर्णों को सामाजिक न्याय का सम्बल प्रदान करेगा। यह फैसला आर्थिक समानता के साथ ही जातीय वैमनस्य दूर करने की दिशा में ठोस कदम है। इसका स्वागत इसलिए होना चाहिए क्योंकि यह उन सवर्णों के लिए एक बड़ा सहारा है, जो आर्थिक रूप से विपन्न होने के बावजूद आरक्षित वर्ग सरीखी सुविधा पाने से वंचित रहे हैं। 

दरअसल आर्थिक आधार पर आरक्षण का फैसला प्रधानमंत्री मोदी जी की ‘सबका साथ, सबका विकास’ की अवधारणा के अनुकूल है। इससे न केवल सवर्ण गरीबों का जीवन स्तर सुधरेगा, बल्कि जातिगत आधार पर होने वाले आरक्षण के विरोध की तीव्रता भी कम होगी और देश में आपसी सद्भाव का वातावरण बनेगा। विगत सोमवार को माननीय उच्चतम न्यायालय की 5 सदस्यीय खंड पीठ ने भी मोदी सरकार के 2019 के संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रख सवर्ण गरीबों को जातिगत आरक्षण से परे एक संजीवनी देने का कार्य किया। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा सामाजिक समरसता और सामाजिक न्याय की दिशा में उठाया गया यह अत्यंत महत्वपूर्ण कदम था। गरीबी उन्मूलन की दिशा में इसके अत्यंत सार्थक परिणाम होंगे। इसका व्यापक रूप से स्वागत होना चाहिए। 

बैंच में चीफ जस्टिस यू.यू. ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस रविंद्र एस. भट, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला शामिल थे। याचिकाकत्र्ताओं ने 103वें संशोधन की खामियां और संविधान की मूल संरचना को लेकर दलीलें दी थीं। संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत से इसे संवैधानिक और वैध करार दिया है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने बहुमत का फैसला दिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ई.डब्ल्यू.एस. कोटा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत कोटा को बाधित नहीं करता। ई.डब्ल्यू.एस. कोटे से सामान्य वर्ग के गरीबों को फायदा होगा। ई.डब्ल्यू.एस. कोटा कानून के समक्ष समानता और धर्म, जाति, वर्ग, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता। खंड पीठ के सदस्य जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने ई.डब्ल्यू.एस. आरक्षण को संवैधानिक करार दिया और कहा कि यह संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता, संविधान को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाता। यह समानता संहिता का उल्लंघन नहीं। 

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही करार दिया और जस्टिस माहेश्वरी से सहमति जताई है। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अगर राज्य इसे सही ठहरा सकता है तो उसे भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता। ई.डब्ल्यू.एस. नागरिकों की उन्नति के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता है। असमानों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता। एस.ई.बी.सी. अलग श्रेणियां बनाता है। इसे अनारक्षित श्रेणी के बराबर नहीं माना जा सकता। ई.डब्ल्यू.एस. के तहत लाभ को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता। 

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 103वें संविधान संशोधन का बचाव करते हुए कहा कि सामान्य वर्ग के ई.डब्ल्यू.एस. के लिए 10 प्रतिशत कोटा एस.सी., एस.टी., और ओ.बी.सी. के लिए उपलब्ध 50 प्रतिशत आरक्षण को छेड़े बिना प्रदान किया गया है। किसी संवैधानिक संशोधन को यह स्थापित किए बिना रद्द नहीं किया जा सकता कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।

दूसरा पक्ष इस बात से इंकार नहीं कर रहा कि उस अनारक्षित वर्ग में संघर्ष कर रहे या गरीबी से जूझ रहे लोगों को किसी सहारे की जरूरत है। इस बारे में कोई संदेह नहीं। अब चूंकि देश की न्याय पालिका ने इस विधेयक पर अपनी मोहर लगा दी है, सारे विवादों का अब समापन हो जाना चाहिए। हमें याद करने चाहिएं स्वर्गीय अरुण जेतली जी के शब्द, जो उन्होंने इस विधेयक पर बहस करते हुए कहे थे। उन्होंने कहा था कि ‘यह विधेयक सभी वर्गों के लोगों को समान लाभ देने का सरकार की ओर से प्रयास है। सरकार बिल के जरिए समाज में बराबरी लाने की कोशिश कर रही है।’ 

जेतली जी ने कहा था कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा केवल जातिगत आरक्षण के लिए है। बिल संसद से पास होने के बाद आऱक्षण 50 फीसदी से ज्यादा हो सकता है। 8 जनवरी, 2019 को गरीब सवर्ण आरक्षण के मसौदे पर संसद में बहस प्रारम्भ करते हुए भाजपा नेता थावरचंद गहलोत जी ने कहा था  कि यह आरक्षण ही  सबका साथ सबका विकास है। इस प्रावधान का लाभ बहुत लोगों को मिलेगा। यही सच है और इसे सभी को स्वीकार करना चाहिए।-श्याम जाजू (निवर्तमान राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपा)


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