आगामी बजट और भारतीय किसानों की समस्या

Thursday, Jan 11, 2018 - 03:33 AM (IST)

आसन्न 2018-19 बजट, डेढ़ साल बाद आम चुनाव और पिछले 4 साल में शुरू के 2 साल सूखा, तीसरे साल इंद्र भगवान मेहरबान, लिहाजा रिकॉर्ड फसल उत्पादन लेकिन कृषि उत्पाद मूल्यों में व्यापक गिरावट की मार और अब वैज्ञानिकों की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक आधे भारत में फसल पर कीटों के हमले से 20 प्रतिशत तक फसल को नुक्सान का खतरा। मोदी सरकार के लिए ये सब एक नई चुनौती बन गए हैं। 

लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के सामने टनों आलू फैंकना, महाराष्ट्र में खड़ी फसलों को जलाना, ग्रामीण गुजरात के चुनाव परिणाम, मध्य प्रदेश में आंदोलनकारी किसानों पर पुलिस फायरिंग में 6 किसानों का मरना, ये सब व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना किसी भी ऐसी सरकार या उसके मुखिया के लिए, जो जन स्वीकार्यता और जन-विश्वास के पैमाने पर शिखर पर हो, अपरिहार्य है। भारत का ताजा बजट इस बार शायद परम्परागत फार्मेट से अलग होगा। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विकास की समझ अप्रतिम है। उसके अनुरूप नीतियां भी बन रही हैं लेकिन जब देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश का कृषि मंत्री मुख्यमंत्री आवास पर नाराज किसानों द्वारा आलू फैंकने पर अपनी प्रतिक्रिया में यह कहता है कि ‘सड़े आलू फैंके हैं और पुलिस एफ.आई.आर. लिख कर फैंकने वालों की तलाश कर रही है, तब लगता है कि राज्य की सरकारों को नई जनहित योजनाओं को अमल में लाने की न तो संवेदनशीलता है, न ही अपेक्षित विवेक। यही वजह है कि देश भर में अब की साल दलहन,गेहूं और तमाम रबी की फसलों का रकबा भी घटा है। हालांकि देश के 19 राज्यों में आज भारतीय जनता पार्टी या उसकी सहयोगी दलों की सरकारें हैं, फिर भी कृषि क्षेत्र को विकास के मानचित्र पर सुर्खरू करने में राज्य सरकारें अभी कोई गति नहीं दिखा पाई हैं। 

फसल बीमा योजना देश के किसानों का नगण्य बीमा राशि के अंशदान पर हर प्राकृतिक या अन्य खतरे से हुए फसल नुक्सान से किसान को मुक्ति दिलाती है लेकिन असल में 2 साल बाद भी देश भर में मात्र 2 से 5 प्रतिशत सामान्य किसान ही इसका लाभ ले सके। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी यही स्थिति रही। इस आपराधिक विफलता का एकमात्र कारण राज्य सरकारों की विवेक-शून्यता और अकर्मण्यता रही। जहां एक ओर फसल बीमा योजना को युद्ध स्तर पर अमल में लाने की जरूरत है, वहीं कृषि विपणन के क्षेत्र में भी व्यापक परिवर्तन करना होगा। पिछले वर्ष किसानों की मेहरबानी से दलहन का रिकॉर्ड 23 मिलियन टन उत्पादन हुआ जोकि देश की जरूरत से एक मिलियन टन ज्यादा रहा लेकिन अफसरों की अदूरदर्शिता के कारण 5 मिलियन टन दाल का आयात किया गया।

पिछले कई दशकों से दाल की समस्या-जनित ऊंची कीमतों से जूझ रहे लोगों को पहली बार राहत मिली लेकिन किसानों के हाथ खाली रहे क्योंकि खुले बाजार में कीमतें औसतन मात्र 4000 रुपए प्रति किंव्टल के आसपास रहीं। सरकारी क्रय केन्द्रों पर भी उन्हें समर्थन मूल्य पर बेचना सरकारी संवेदनहीनता के कारण संभव नहीं हो पाया। हालांकि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने जरूर गेहूं की खरीदारी पिछली सरकारों के मुकाबले काफी अधिक की। आलू और गन्ने के प्रति यही तत्परता नहीं दिखी। अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र में दलहन, गुजरात में कपास और मध्य प्रदेश में प्याज को लेकर अपेक्षित तत्परता नहीं दिखाई। 

किसानों पर फायरिंग के बाद शिवराज सरकार ने सक्रियता दिखाई और कीमतों को तय करने की ‘भावान्तर भुगतान योजना’ के नाम से एक नई व्यवस्था लागू की। इस योजना में समर्थन मूल्य और बाजार की कीमत के बीच अंतर राशि का भुगतान किसानों को किया जाएगा। इसकी शर्त यह है कि किसान को पहले से ही फसल की किस्म और रकबा सरकार को बताना और प्रमाणित करना होगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि सरकार खरीद, भंडारण और वितरण के जद्दोजहद से बच जाएगी। भारत सरकार इसी मॉडल से जिंसों की कीमत निर्धारित करने पर विचार कर रही है। 

गौ-वंश और किसान: इस बीच पूरे उत्तर भारत के किसान एक नई समस्या से जूझ रहे हैं। हाल ही में इस अखबार में एक रिपोर्ट छपी जिसके अनुसार कानपुर के इमिलिया गांव के एक किसान 58 वर्षीय झल्लन सिंह ने आत्महत्या की क्योंकि कमरतोड़ मेहनत से अपनी लहलहाती 5 बीघे की गेहूं की फसल देखने जब एक दिन कड़ाके की सर्दी में वह खेत पहुंचे तो पाया कि आवारा गाय, बैल, सांडों के झुंड ने पूरी फसल चर ली है और फसल के नाम पर ठूंठ इस गरीब किसान को मुंह चिढ़ा रहे हैं। तथाकथित गौ-रक्षकों के उत्तर भारत में आक्रामक होने से गौ-वंश की खरीद-बिक्री बंद हो गई है और जो गाएं दूध नहीं दे रही हैं उन्हें चारे के अभाव में रखना किसानों के लिए मुश्किल हो रहा है। लिहाजा ये गाएं और बछड़े आवारा घूम रहे हैं और भूख के कारण खड़ी फसलों पर रातों में हमला कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के अर्थशास्त्रियों के साथ किसानों की समस्याओं पर एक बजट पूर्व बैठक करने जा रहे हैं लेकिन शायद उन्हें एक और बैठक राज्य के मुख्यमंत्रियों के साथ और एक अन्य आक्रामक हिंदुत्व के पुरोधाओं के साथ भी करनी होगी।-एन.के. सिंह

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