‘बैकस्टेज’ में यू.पी.ए. के 10 वर्ष

Sunday, Feb 09, 2020 - 02:00 AM (IST)

ब्रिटिश की तरह हम संस्मरण नहीं लिखते। मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने अपनी किताब ‘बैकस्टेज’ में भारत की ऊंची वृद्धि दर के वर्षों के बारे में बताया है। उन्होंने आग्रहपूर्ण इसका खंडन भी किया है। यह किताब कोई संस्मरण नहीं मगर मोंटेक पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि उनकी किताब आॢथक सुधारों का यात्रा वृत्तांत है। सत्य के आभास को एक तरफ रखते हुए निश्चित तौर पर यह एक संस्मरण ही है तथा निश्चित तौर पर एक पाठक होने के नाते आप इसे पढऩा चाहेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह किताब यू.पी.ए. के सत्ता में एक दशक का प्रथम आंतरिक लेखा-जोखा है। यह किताब उस व्यक्ति द्वारा लिखी गई है जिसे उस सरकार में बेहद सम्मान मिला था। 

अथाह सफलता के बावजूद यू.पी.ए. कैसे ध्वस्त हुई
मोंटेक द्वारा यू.पी.ए. के 10 वर्षों की कहानी एक दिलचस्प सवाल खड़ा करती है। यह दृढ़ निश्चय यह तर्क देते हैं कि इतनी अथाह सफलता हासिल करने के बावजूद यह सरकार अपमान सहते कैसे ध्वस्त हुई। हम सोचते हैं कि इसका जवाब भ्रष्टाचार के स्कैंडलों तथा निर्बल नीति जिन्होंने यू.पी.ए. सरकार को घेर रखा था, से हमें मिल जाता है। ऐसा माना जाता था कि पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह एक कमजोर नेता थे तथा देश एक निर्णायक प्रधानमंत्री के लिए तड़प रहा था। मोंटेक की किताब अलग ही दिलचस्प जवाब सुझाती है। 

पहली बात तो यह है कि हमें सबसे पहले उस दशक की मुख्य उपलब्धियों का स्मरण करना होगा। यू.पी.ए. सरकार ने हमें सूचना का अधिकार (आर.टी.आई.), परमाणु डील, ग्रामीण रोजगार गारंटी सील, आधार तथा गरीबी में सबसे बड़ी कमी दी मगर यह आॢथक मोर्चा ही था जिसमें यू.पी.ए. श्रेष्ठ था। इसके 10 में से पहले 7 वर्षों के दौरान सरकार की कारगुजारी शानदार रही। अर्थव्यवस्था इस अवधि के दौरान 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर पाए हुए थी जोकि अब तक की सबसे तेजी वाली वृद्धि दर थी। मोंटेक लिखते हैं-138 मिलियन लोगों को गरीबी से ऊपर उठाने को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया तथा यह इसकी मुख्य उपलब्धि थी। 

यू.पी.ए. की पहली परेशानी 2जी तथा कोल गेट विवाद 
यदि मैं मोंटेक को सही ढंग से समझ पाऊं तो यू.पी.ए. की पहली परेशानी 2जी तथा कोल गेट विवाद के प्रति अपर्याप्त तथा गलत ढंग से जवाब देने वाली थी। इसने इनको स्कैंडल बनने की अनुमति दे दी जिसने कि इसकी सफलता को लपेटे में ले लिया। मोंटेक कहते हैं कि यू.पी.ए. को कैग के निष्कर्ष तथा राज कोषीय घाटे के बारे में एक नाजुक सवाल उठाना चाहिए था। क्योंकि स्पैक्ट्रम तथा कोयले को बहुत सस्ता बेचा गया। सवाल यह उठता है कि क्या नीति के विस्तृत उद्देश्यों को हासिल करने के लिए सरकार का कम कीमत चार्ज करने का निर्णय न्यायोचित था। वास्तविक योग्यता आडिट किया जाना चाहिए था। मगर कैग ने कभी भी ऐसा करने की कोशिश नहीं की। दुर्भाग्यवश न ही सरकार ने ऐसा करने की कोई मंशा जताई। 

यदि ऐसा हुआ होता तो इसने एक ठोस मामला बनाया होता। कम कीमत का तर्क यह था कि यह टैलीकॉम की तीव्र गति को प्रोत्साहित करेगा। जो स्पष्ट तौर पर ऐसा ही हुआ। मोंटेक लिखते हैं कि टैलीकॉम के तेजी से हुए विस्तार ने जी.डी.पी. में तेजी से वृद्धि की अगुवाई की। इससे राजस्व में अतिरिक्त बहाव आया। मोंटेक कहते हैं कि इसके बारे में इसका लेखा-जोखा करने की जरूरत थी मगर कोई प्रयास नहीं किया गया। 

मनमोहन सिंह ने कभी भी अपनी उपलब्धियों के बारे में डींगें नहीं मारीं
कपिल सिब्बल ने उस समय कोशिश की जब उनके शून्य घाटे के व्याख्यान का उपहास उड़ाया गया। उसके बाद उन्होंने इसे दोबारा नहीं किया। यही सच्चाई थी। मोंटेक सिंह का दूसरा जवाब राजनीतिक है। मनमोहन सिंह ने कभी भी अपनी उपलब्धियों के बारे में डींगें नहीं मारीं। उन्होंने स्पष्ट तौर पर यही माना कि नतीजे ही उनके बारे में बताएंगे मगर अफसोस न तो मनमोहन ने और न ही उनकी पार्टी ने इन उपलब्धियों को प्रोजैक्ट किया। वह कभी भी राजनीतिक बातचीत का हिस्सा नहीं बनी। जब कभी ऐसा हुआ भी तब जल्द ही वह भुला दिए गए।वास्तव में श्रेय लेने के दावे की इस अनिच्छा ने कांग्रेस पार्टी को संक्रमित किया। मोंटेक सिंह टिप्पणी करते हुए हैरान हैं कि कांग्रेस पार्टी क्यों गरीबी कम करने के दावे का श्रेय लेने को तैयार नहीं थी। इसके नतीजे में कांग्रेस ने कभी भी यह सिद्ध करने की कोशिश नहीं की कि यू.पी.ए. की रणनीति इस तरह कार्य कर रही थी जो इससे पहले कभी नहीं किए गए। ऐसी चुप्पी से पार्टी को अपनी महान उपलब्धियों के बारे में सहना पड़ा। 

अंतिम में मोंटेक सिंह आहलूवालिया यह खुलासा करते हैं कि उन्होंने कई बार डा. मनमोहन सिंह को गुजारिश की कि वह अपने संस्मरण के बारे में लिखें मगर उन्होंने इस पर अभी तक अपनी किस्मत नहीं आजमाई। पूर्व प्रधानमंत्री इतिहास के निर्णय के फैसले का इंतजार कर रहे हैं और आशावादी हैं कि अपने समकालीनों से ज्यादा दयालु होना बेहतर है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोंटेक के यू.पी.ए. सरकार के वर्षों का लेखा-जोखा मदद करेगा मगर क्या आप ऐसी आस रखते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री उनके लिए कुछ बोलेंगे। भाजपा तथा नरेन्द्र मोदी किस तरह भिन्न हैं। वह अपने पूर्ववर्तियों द्वारा किए गए कार्यों का श्रेय लेने का दावा ठोंकते हैं।-करण थापर           

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