वायदे के विपरीत ‘राजनीतिक दर्शन’ और नैतिकता से दूर हो रही भाजपा

Friday, Jul 26, 2019 - 03:10 AM (IST)

भाजपा की दिग्गज नेता लक्ष्मीकांता चावला एक ऐसी महिला थीं, जिनकी मैं बहुत प्रशंसा करता हूं। खालिस्तानी आतंकवाद से लडऩे के अपने साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल के दौरान मैं उनसे पंजाब में मिला था। वह हमेशा साधारण-सी साड़ी पहने रहती थीं और अपने रूप-रंग को लेकर ज्यादा परवाह नहीं करती थीं। वह देश और पंजाब को लेकर अधिक ङ्क्षचता करती थीं। 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में मेरे विचारों के साथ चावला तथा पंजाब भाजपा के अध्यक्ष हित अभिलाषी जैसे लोगों ने भी छेड़छाड़ की। अभिलाषी उन बेहतरीन मनुष्यों में से एक थे जिनसे मैं मिला और उनके लिए मेरे मन में बहुत सम्मान था, विशेषकर उनके नैतिक मानदंडों को लेकर। जब आतंकवादियों द्वारा गोली मार कर उनकी हत्या कर दी गई तो मैं व्यक्तिगत रूप से बिखर गया था। 

‘एक अंतर वाली पार्टी’
भाजपा ने हमेशा ‘एक अंतर वाली पार्टी’ के तौर पर खुद पर गर्व किया। चावला तथा मेरे मित्र अभिलाषी जैसे आदर्शों के साथ मैंने सोचा कि भारत के लोगों को एक अलग तरह की राजनीति परोसी जाएगी। मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने कभी भी भाजपा को वोट नहीं दिया क्योंकि अल्पसंख्यकों की सामान्य धारणा यह है कि भाजपा विशिष्ट तौर पर एक हिन्दू पार्टी है। मेरे हिन्दू पूर्वजों का पुर्तगालियों ने 4 शताब्दियों से भी अधिक समय पूर्व धर्म परिवर्तन कर दिया था। तब से हम अपने देश में अल्पसंख्यक बन गए और हमारा वोट उन लोगों को जाता है जो हमारी संस्कृति तथा पहचान की रक्षा करेंगे। 

लेकिन पार्टी विचारधारा से मेरा तब तक कोई झगड़ा नहीं है जब तक यह नैतिकता और नैतिक मूल्यों तक खुद को सीमित रखती है, जोकि मेरे विचार में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने प्रस्तुत किया। पुणे के ब्राह्मण, जिनसे मैं अपने सेवाकाल के वर्षों के दौरान परिचित था, उच्च विचार और सरल जीवन के आदर्श थे। उनमें से अधिकतर ने पार्टी के बारे में मेरे विनम्र विचारों का समर्थन किया। अब मेरा ‘एक अंतर वाली पार्टी’ से पूरी तरह से मोहभंग हो गया है। इसकी समावेश की बात, जिसे आमतौर पर हमारे लोकप्रिय (जनता के बीच) प्रधानमंत्री द्वारा जोर-शोर से कहा जाता है, दुख की बात है कि देश में सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के साथ व्यवहार करते समय खारिज कर दी जाती है। 

मेरे अपने छोटे से राज्य गोवा में, मैं इस तथ्य से भ्रमित हूं कि भाजपा ने कांग्रेस पार्टी के 10 विधायकों को दल बदल कर एक ही झटके में अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है। मुझे हैरानी है कि यह यदि अनैतिक नहीं तो क्या है? चुने हुए प्रतिनिधियों को दल बदल कर अपने में शामिल करके पार्टी ने खुद को नीचा दिखाया है। गोवा में ईसाइयों का पहले कार्यकाल में भाजपा से मोहभंग हो गया और दुख है कि लालची विधायकों द्वारा उन्हें नीचा दिखाया गया। 

कई बार दल बदले  
मुझे हैरानी है कि ये दल बदलू अब एक अन्य पार्टी में क्या करेंगे, जिसके खिलाफ उनके अपने ही मतदाताओं ने वोट दी है। बाबुश मोंसेरेट का ही मामला लें, जो अतीत में कई बार दल बदल कर चुके हैं। इस बात की शायद ही सम्भावना है कि पणजी के मतदाताओं ने उन्हें वोट दिया होगा यदि वे जानते कि वह पद के लालच में जीतने वाले हैं। वे मतदान द्वारा भाजपा को बाहर का रास्ता दिखाना चाहते थे। यदि वे जानते कि मोंसेरेट, जो आम चुनावों में अपना खुद का निर्वाचन क्षेत्र हार चुके हैं, उनकी चिंताओं की कोई परवाह नहीं करने वाले, मुझे संदेह है कि उन्होंने उनको वोट दी होगी। 

इसके अतिरिक्त जो लोग इस अभिमानी तरीके से दल बदल करते हैं, वे गलाकाटू हैं, जिनकी कोई नैतिकता तथा नैतिक मूल्य नहीं होते और यदि उन्हें कोई बेहतर प्रस्ताव देता है तो वे भविष्य में पाला बदलने में नहीं हिचकिचाएंगे। यह कांग्रेस के समय में सामान्य था और लोग सोचते थे (गलत, जैसा कि अब देखा गया है) कि वे दिन हमारे पीछे थे। ऐसा केवल गोवा में नहीं है कि ‘एक अंतर वाली पार्टी’ भाजपा भारतीय राजनीति की ‘मुख्यधारा’ में शामिल हो गई है: वे पश्चिम बंगाल में आधे सफल हो चुके हैं और कर्नाटक में भी सत्ता सम्भालने के बिल्कुल करीब हैं। तो कैसे यह एक अंतर वाली पार्टी हुई? और क्या उनके नए बने अनुयायी उन दलों के अनुयायियों की तरह व्यवहार करना बंद करेंगे, जिन्हें राजनीतिक परिदृश्य से मिटाने की भाजपा ने कसम खाई थी? 

भाजपा के नए विधायक, जिन्हें कांग्रेस, तृणमूल तथा अन्य क्षेत्रीय दलों से शिकार करके लाया गया है, अपने साथ अपनी संस्कृति का बोझ भी लाएंगे। गोवा से पूर्व कांग्रेस विधायक मुख्यत: उन निर्वाचन क्षेत्रों से विजयी हुए हैं जहां ईसा ई वोटों का बहुमत अथवा बड़ी संख्या है। उन मतदाताओं में भाजपा के खिलाफ एक अंतनिर्हित पूर्वाग्रह था और वे अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से खुश नहीं होंगे जिन्होंने उस पार्टी के आगे घुटने टेक दिए जिसके प्रति उन्हें संदेह था। इसलिए दल बदल को ऐसे प्रतिनिधियों के स्वार्थों के खिलाफ नाखुशी के तौर पर परिभाषित किया जाता है। 

पुराने, वफादार कार्यकत्र्ताओं में गुस्सा
एक अन्य घटनाक्रम, जिसकी आशा थी, गोवा से है। भाजपा के पुराने, वफादार कार्यकत्र्ता अपने पार्टी नेताओं द्वारा ऐसे राजनीतिज्ञों को अपनी पार्टी में शामिल करने पर गुस्से में हैं, जो उनके राजनीतिक हमलों का निशाना थे। नए प्रवेशकत्र्ता शायद ही भाजपा की विचारधारा का समर्थन करेंगे और उन लोगों के लिए निरंतर एक सिरदर्द साबित हो सकते हैं, जो हिन्दुत्व के अनुपालक हैं। इस ब्रांड की राजनीति, जो एक पार्टी के लिए, देश में एक नेता के शासन हेतु प्रयास करती है, उस स्थिति से अधिक भिन्न नहीं है, जो हमने इंदिरा गांधी के समय हरियाणा में देखी थी। इन वर्षों में एक आयाम जोड़ा गया है, जो भारत के लिए विशिष्ट है, वह है सभी पार्टियों द्वारा अपने ‘समूह’ की रक्षा करना, जिसके लिए बेहतर अवसर आने तक उन्हें फाइव स्टार होटलों में आवश्यक आराम सुनिश्चित करना। 

यदि राजनीतिक कुचक्र को सहन करने के लिए नैतिकता और नैतिक विचारों को नहीं लाया जाता तो मैं अपने देश और उसके भविष्य के लिए चिंतित हूं। हो सकता है कि राजनीतिक जीवन के लिए कुछ कुचक्रों की आवश्यकता होती है लेकिन उनका नैतिक मानकों से कुछ संबंध होना चाहिए, जिसे बाद में सोचवान लोगों द्वारा सराहा जाएगा। दौलत के आगे थोक में आत्मसमर्पण के बारे में मेरे मित्रों लक्ष्मीकांता चावला तथा अभिलाषी ने कभी सपना भी नहीं देखा होगा। संयोग से, मैं अभी भी गोवा में अपनी जड़ों को महत्व देता हूं। मेरे पड़दादा 200 साल पहले मुम्बई चले गए थे लेकिन मैं अब भी खुद को गोवा का मानता हूं, मुम्बई के एक गोवन के रूप में। और इसीलिए मेरी प्राचीन धरती पर जो कुछ हुआ है मुझे उस पर गुस्सा है।-जूलियो रिबैरो     

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