संघ परिवार के ‘मरजीवड़ों’ का है मोदी मंत्रिमंडल

Wednesday, Jun 05, 2019 - 03:49 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस नए मंत्रिमंडल की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसमें शामिल सभी मंत्री संघ परिवार के खांटी कार्यकत्र्ता रहे हैं। हरियाणा के राव इंद्रजीत सिंह को छोड़कर कोई भी बाहर से भाजपा में आया हुआ नहीं है। कोई भारतीय जनसंघ के समय से अपनी सेवाएं देता रहा है, कोई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में बाल्य अवस्था में ही जाने लगा था। कोई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा रहा है तो कोई बजरंग दल से तो कोई विश्व हिन्दू परिषद से। यानी जो लोग दरियां बिछाते रहे, कुर्सियां सजाते रहे, चाय-पानी का इंतजाम करते रहे, ऐसे कार्यकत्र्ताओं से सांसद बने नेताओं को भाजपा ने प्राथमिकता दी। 

चुनाव से पहले दूसरे दलों से आए नेताओं का मान-सम्मान तो हुआ लेकिन जब लाल बत्ती की गाड़ी (मंत्री बनाने) देने की बात  आई तो नवाजा गया उन लोगों को जो सालों तक पार्टी या फिर संघ  परिवार के किसी न किसी धड़े से जुड़े रहे और सेवा करते रहे। हां,  एस. जयशंकर, हरदीप पुरी, आर.के. सिंह, अर्जुन राम मेघवाल जैसे अफसरशाहों को जरूर उनकी योग्यता के आधार पर मंत्री पद से नवाजा गया। अपनों को वक्त आने पर आगे बढ़ाना और पैराशूट नेताओं को नजरअंदाज करना, ऐसा आमतौर पर होता नहीं है। कुछ मंत्रियों की पृष्ठभूमि देखते हैं, इससे बात और ज्यादा साफ होगी। नए मंत्रालय जल शक्ति की कमान संभालने वाले गजेन्द्र सिंह शेखावत जोधपुर में विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव ए.बी.वी.पी. के टिकट पर जीते। फिर स्वदेशी जागरण मंच से जुड़े। 

संघ परिवार की पाकिस्तान सीमा से सटे बाड़मेर-जैसलमेर में सक्रिय सीमा जन कल्याण समिति के सदस्य रहे। पिछली दफा पहली बार जोधपुर से जीते थे तो कृषि राज्य मंत्री बनाए गए। इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को पौने तीन लाख वोटों से हराकर संसद पहुंचे तो वहां कैबिनेट मंत्री से नवाज दिया गया। ओडिशा के मोदी कहे जाने वाले प्रताप चन्द्र सारंगी बजरंग दल के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। भले ही पादरी ग्राहम स्टेंस हत्याकांड के आरोपी दारा सिंह को बचाने में उनके बयान को महत्वपूर्ण बताया जा रहा हो लेकिन भाजपा ने इसे नजरअंदाज करते हुए मंत्री बनाया। हरियाणा के दलित नेता रतन लाल कटारिया हों या बाड़मेर के कैलाश चौधरी, असम के डिब्रूगढ़ के रामेश्वर तेली हों या कोलकाता की देबाश्री चौधरी, सबकी कहानी गजेन्द्र सिंह शेखावत जैसी ही रही है। 

पार्टी के लिए सियासी अमृत
जमीन से जुड़े कार्यकत्र्ता को मंत्री बनाना किसी भी पार्टी के लिए सियासी अमृत का काम करता है। इससे पार्टी से जुडऩे वाले नए लोगों में उत्साह का संचार होता है। इसका संदेश ठेठ नीचे गांव-देहात के दूरदराज इलाकों में बैठे कार्यकत्र्ताओं तक पहुंचता है और वे दोगुनी मेहनत से अपनी  सरकार के अच्छे कामों के प्रचार-प्रसार में जुट जाते हैं। आप कहने को कह सकते हैं कि चूंकि भाजपा के पास अपने दम पर बहुमत था, लिहाजा उसके पास ऐसा करने का जरूरी आधार था लेकिन अगर आप किसी अन्य दल के नेता को उसके जिताऊ होने की गारंटी देखते हुए पार्टी में लेते हैं और चुनाव जीतने के बाद खुद के विजयी कार्यकत्र्ता को मंत्री बनाते हैं तो कहीं न कहीं आप अपनी ही पार्टी का विस्तार कर रहे हैं। इस कदर विस्तार कर रहे हैं ताकि आगे चलकर आपको बाहर से किसी अन्य दल के जिताऊ उम्मीदवार की तरफ झांकना ही न पड़े। 

कार्यकत्र्ताओं की भी सुनी
बताया जा रहा है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह राज्यों के दौरों में पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ-साथ अन्य नेताओं और कार्यकत्र्ताओं से भी मिला करते थे। आमतौर पर नेता उन्हें भाजपा में बाहर से लाए जा रहे नेताओं और उन्हें मिल रहे टिकट या पार्टी में पद की शिकायत करते थे। ये सब दबे शब्दों में होता था लेकिन अध्यक्ष इसे ताड़ गए थे कि कोर कार्यकत्र्ता को यह सब पसंद नहीं आ रहा है या उसे लगता है कि उसे टिकट मिलने की संभावना कम हो गई है या उसे लगने लगा है कि जब यही सब होना है तो फिर कुर्सी उठाने, दरियां बिछाने का क्या फायदा। इस फीडबैक का ही असर है कि अध्यक्ष अमित शाह ने तय किया कि जीतने पर अपनों को ही तरजीह दी जाएगी। वैसे भी बाहर से आने वाला विधायक या सांसद बन गया, यही बहुत है। इससे आगे की गारंटी पार्टी ने न तो ली है और न ही लेगी। यही वजह है कि फिर से बनी मोदी सरकार में संघ परिवार में तपे-तपाए चेहरे ही दिख रहे हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी पार्टी का साथ नहीं छोड़ा और दिन-रात अपनी तरफ से ही लगे रहे। 

एक समान सोच
कुल मिलाकर मोदी सरकार का यह मंत्रिमंडल संघ परिवार के मरजीवड़ों का मंत्रिमंडल है। ऐसा मंत्रिमंडल जो विचारधारा के नाम पर एक जैसी सोच रखता है, जिसका राष्ट्रवाद से लेकर जातिवाद तक स्पष्ट रुख है, जो अपने प्रधानमंत्री मोदी और नम्बर दो अमित शाह के इशारों को समझता है, जो जानता है कि अगले 5 साल काम करना है ताकि फिर से अगर सरकार बनी तो उन जैसे कुछ नए कार्यकत्र्ता उनकी जगह मंत्रिमंडल में नजर आ सकें। वैसे भी कुछ मंत्रालयों को एक करके काम को आसान करने और रुकावटें दूर करने की कोशिश की गई है। ऐसे माहौल में अगर राज्य मंत्रियों को उनके कैबिनेट मंत्रियों ने काम करने के मौके दिए और खुद में सत्ता का गरूर नहीं आया तो हमें बहुत कुछ बदलता हुआ दिख सकता है।-विजय विद्रोही
 

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