देशभक्ति का सही अर्थ समझिए

Tuesday, Aug 15, 2023 - 06:45 AM (IST)

इस दौर में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हम सच्चे अर्थों में आजादी का मर्म और देशभक्ति का अर्थ समझ पाए हैं? आजादी के इतने वर्षों बाद भी क्या हम वास्तविक रूप से प्रगतिशील बन पाए हैं? नि:संदेह देश लगातार विकास के मार्ग पर अग्रसर है लेकिन यदि स्वतंत्र भारत में हम अभी तक भी महिलाओं और दलितों का शोषण नहीं रोक पाए हैं तो ऐसी आजादी का क्या औचित्य है? क्या इसी आजादी के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने संघर्ष किया था? एक तरफ मणिपुर की घटना हमारी आजादी पर सवाल खड़ा कर रही है तो दूसरी तरफ अनेक राजनेताओं का आचरण लोकतंत्र की शुचिता को कटघरे में खड़ा कर रहा है। क्या आजादी का अर्थ इतनी आजादी है कि जिससे इंसानियत भी शर्मसार हो जाए?  अब समय आ गया है कि हम देशभक्ति और आजादी का वास्तविक अर्थ समझकर स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का सम्मान करना सीखें। 

हाल ही में तमिलनाडु के मरियम्मन मंदिर में 100 साल बाद दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार मिला। यह घटना विकास और देशभक्ति का नारा लगाने वाले राजनेताओं और इस समाज के लिए एक कलंक है। जातिगत आधार पर हम अपने ही नागरिकों से भेदभाव कर देशभक्त कैसे हो सकते हैं? सवाल यह है कि क्या मात्र कारगिल जैसे युद्ध के समय एक आम भारतवासी का खून खौल जाना ही देशभक्ति है? अक्सर यह देखा गया है जब भी किसी दूसरे देश से जुड़े आतंकवादी या फौजी हमारे देश पर किसी भी तरह से हमला करते हैं तो हमारा खून खौल उठता है लेकिन बाकी समय हमारी देशभक्ति कहां चली जाती है? हम बड़े आराम से देश की सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाते हैं, भ्रष्टाचार के सागर में गोते लगाकर शहीदों का अपमान करते हैं तथा अपना घर भरने के लिए देश को खोखला करने हेतु किसी भी हद तक गिरने को तैयार रहते हैं। ऐसा आचरण कर क्या हम देशभक्त कहलाने लायक हैं। 

स्पष्ट है कि मात्र बाहरी आक्रमण के समय हमारा खून खौल उठना ही देशभक्ति नहीं है। बाहरी आक्रमण के साथ-साथ देश को विभिन्न तरह के आंतरिक आक्रमणों से बचाना ही सच्ची देशभक्ति है। देश पर आंतरिक आक्रमण कोई और नहीं बल्कि हम ही कर रहे हैं। दरअसल पिछले 75 वर्षों में हमने भौतिक विकास तो किया लेकिन आत्मिक विकास के मामले में हम पिछड़ गए। स्वतंत्रता को हमने इतना महत्वहीन बना दिया कि अनेक लोगों को 15 अगस्त और 26 जनवरी को शहीदों को श्रद्धांजलि देना भी बकवास लगने लगा। इस दौर में हम शहीदों का बलिदान और स्वतंत्रता का महत्व भूल चुके हैं। मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मेरे द्वारा अनेक विद्यार्थियों से स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस का अर्थ पूछे जाने पर अनेक विद्यार्थी कोई ठीक-ठाक उत्तर नहीं दे पाए। मुझे याद आता है अपना बचपन जब लगभग प्रत्येक घर में परिवार के अधिकतर सदस्य 26 जनवरी की परेड देखने के लिए टी.वी. से चिपके रहते थे। इस दौर में विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या यह वही आजादी है जिसकी परिकल्पना हमारे शहीदों ने की थी? क्या अपनी ही जड़ों को खोखला करने की आजादी के लिए ही हमारे शहीदों ने बलिदान दिया था ? 

इस दौर में हम दिखावे के लिए भले ही देशभक्ति के नारे लगा लें लेकिन कटु सत्य यह है कि इस दौर में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के आयोजनों से जनता का मोह भंग हो गया है। दरअसल हमारे जनप्रतिनिधि भी भारतीय समाज को कोई भरोसा नहीं दिला पाए हैं। ओर पसरे खोखले आदर्शवाद ने स्थिति को बदतर बना दिया है। यही कारण है कि आज हमने स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को मात्र एक छुट्टी का दिन मान लिया है। इस छुट्टी के दिन हम सिर्फ मौज-मस्ती करना चाहते हैं। ऐसा करते हुए हम यह भूल जाते हैं कि हम खुली हवा में जो मौज-मस्ती कर रहे हैं वह शहीदों की शहादत का ही सुफल है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हम आजाद हवा में सांस लेने को मौज मानते ही नहीं हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पराधीन भारत के दर्द को न ही तो हमने स्वयं भोगा है और न ही इस दौर में उसे महसूस करने की संवेदना हमारे अन्दर बची है। इसीलिए हमारी मौज-मस्ती की परिभाषा में इस छुट्टी के दिन देर तक सोना, फिल्में देखना या फिर बाहर घूमने-फिरने निकल जाना ही शामिल है। 

व्यावसायिकता के इस दौर में हम इतना तेज भाग रहे हैं कि अपने अतीत को देखना ही नहीं चाहते हैं। शायद इसीलिए हम और हमारे विचार भी तेजी से बदल रहे हैं लेकिन इस तेजी से बदलती दुनिया में जो हम खो रहे हैं, उसका अहसास हमें अभी नहीं है। हमारी बदलती दुनिया को देखकर ही आज गांवों में अक्सर बड़े-बुजुर्गों को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि इस समय से अच्छा तो अंग्रेजों का समय ही था। इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारे बुजुर्ग अंग्रेजी राज को सही ठहरा रहे हैं। उनके इस विचार का सही संदर्भ ग्रहण करने की जरूरत है। भविष्य के लिए बदलना जरूरी है लेकिन अपने अतीत को दाव पर लगाकर नहीं। देशभक्ति का सही अर्थ समझ कर ही हम आजादी का सम्मान कर सकते हैं।-रोहित कौशिक

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