अंब्रेला आंदोलन हिंसक हुआ हांगकांग को अब चीन से चाहिए ‘आजादी’

Thursday, Nov 21, 2019 - 02:10 AM (IST)

अंब्रेला आंदोलन ने चीन की नींद उड़ाई है। हांगकांग में जनविरोधी प्रत्यर्पण कानून को स्थगित करने की मांग अब आजादी की मांग बन गई है। हांगकांग में तिनानमिन चौक जैसी खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो गई है। छात्र शिक्षण संस्थानों पर कब्जा कर ठप्प कर रहे हैं। जनसैलाब सड़क, रेल और सरकारी गतिविधियों पर कब्जा कर बैठा है, चारों तरफ अस्थिरता कायम हो चुकी है। 

चीन ने अंब्रेला आंदोलन को रोकने के लिए काफी कोशिश की पर असफलता ही हाथ लगी। अंब्रेला आंदोलन और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण चीन की हेकड़ी टूट रही है। चीन अपने विवादास्पद प्रत्यर्पण कानून वापस लेने पर विचार करने के लिए सहमत हो गया है। यह हांगकांग की संघर्षरत जनता की जीत है। निश्चित तौर पर हांगकांग की जनता ने चीन की हेकड़ी तोड़ी है। चीन अब यह नहीं कह सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव और जनसैलाब के सामने उसकी हेकड़ी नहीं टूटती है और वह अपराजित ही रहता है। पहले चीन सिर्फ एहसास ही नहीं कराता था बल्कि खुलेआम कहता था कि उसकी हेकड़ी टूटती नहीं है। जनसैलाब भी उसकी हेकड़ी को तोड़ नहीं सकता है। अंतर्राष्ट्रीय दबाव और अंतर्राष्ट्रीय जनमत तो उनके सामने पानी भरते हैं। मानवाधिकार की भी उसे चिंता नहीं होती थी। एक ऐसा देश जिसने दुनिया के नियामकों की कभी परवाह ही नहीं की। 

हमेशा मानवाधिकार की कब्र खोदी, दुनिया के नियामकों के दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ाईं। संयुक्त राष्ट्रसंघ के सिद्धांतों को लात मारकर अपने पड़ोसी देशों भारत, वियतनाम पर हमला कर अपनी औपनिवेशिक नीति कायम की थी। भारतीय और वियतनामी भूमि पर अवैध कब्जा जमाया था। चीन के पास संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद का वीटो अधिकार है। इसी वीटो अधिकार का प्रयोग कर चीन कभी अपने पड़ोसी देशों के हितों को कुचलता है, पड़ोसी देशों के भूभागों पर कब्जा करता है तो कभी अपने घर में लोकतंत्र आंदोलनों को कुचलता है। 

तिनानमिन चौक दुनिया को अभी तक है याद
दुनिया को याद है कि चीन ने तिनानमिन चौक पर लोकतंत्र बहाली के लिए आंदोलन कर रहे हजारों छात्रों पर युद्धक टैंकों, मिसाइलों और बुल्डोजरों से हमला कर बीस हजार से अधिक छात्रों को मौत के घाट उतार दिया था। तिनानमिन चौक के चीनी नरसंहार की घटना याद कर लोकतंत्रवादी आज भी कांप जाते हैं। लोकतंत्र सेनानियों के रौंगटे खड़े कर देते हैं। इतिहास की खोज कहती है कि कम्युनिस्ट तानाशाह माओ त्से तुुंग ने अपनी तानाशाही की सनक में अपने ही दस करोड़ से अधिक नागरिकों को भूख से मरने के लिए विवश किया था। वर्तमान में भी चीन के हथकंडे दुनिया के लिए कम हानिकारक नहीं हैं। चीन दुनिया के असफल और अराजक, हिंसक तथा आतंकवादी देशों की गिरोहबाजी कर दुनिया के लोकतांत्रिक जनमत को डराने-धमकाने का कार्य करता रहा है। चीन के इस हथकंडे का शिकार भारत जैसा लोकतांत्रिक देश बार-बार होता है। 

अब यहां यह प्रश्न उठता है कि चीन की हेकड़ी टूटी कैसे? चीन की हेकड़ी तोड़ी किसने? चीन की हेकड़ी टूटने का अर्थ क्या है। क्या माना जाना चाहिए कि भविष्य में चीन लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन करता रहेगा और लोकतांत्रिक मूल्यों पर कोई ङ्क्षहसक व दमनकारी नीति नहीं चलाएगा? जनता के अधिकारों को कुचलने वाली तानाशाही नीतियां व हथकंडे भविष्य में नहीं चलेंगे। जनता की आजादी को छीनकर गुलाम बनाने की कम्युनिस्ट तानाशाही की मानसिकता पर पूर्ण विराम लगेगा या नहीं। ये सभी प्रश्न महत्वपूर्ण हैं पर हमें ध्यान में यह रखना होगा कि तानाशाहियां अपने हथकंडे को लागू करने से बाज नहीं आती हैं। इसलिए यह कहना सही है कि चीन की हेकड़ी अभी जरूर टूटी है पर भविष्य में ऐसी कोई गारंटी नहीं है कि चीन लोकतंत्र का सम्मान करेगा और जन सैलाब की इच्छाओं के अनुसार चलेगा तथा हांगकांग की जनता को गुलाम बनाने की अपनी मानसिकता छोड़ देगा। 

चीन की हेकड़ी हांगकांग की जनता ने तोड़ी
चीन की हेकड़ी हांगकांग की जनता ने तोड़ी है। हांगकांग के जनसैलाब ने चीन की हेकड़ी को ध्वस्त कर दिया। चीन के काले कानून के सामने हांगकांग में जनसैलाब उमड़ पड़ा। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि चीन का काला काूनन क्या था और इस काले कानून के खिलाफ हांगकांग में किस प्रकार से आंदोलन भड़का। कोई एक-दो नहीं बल्कि लाखों लोगों ने अनवरत सड़कों पर जनसैलाब के रूप में आंदोलित रहने की वीरता दिखाई जो अनवरत जारी है। चीन ने एक प्रत्यर्पण कानून का प्रस्ताव स्वीकार किया था। इस प्रत्यर्पण कानून में हांगकांग के सरकार विरोधी आरोपी का चीन में प्रत्यर्पण कर मुकद्दमा चलाने का प्रस्ताव था। 

जानना यह भी जरूरी है कि हांगकांग कभी ब्रिटेन से शासित होने वाला शहर था। ब्रिटेन से शासित होने के कारण हांगकांग कभी दुनिया के प्रमुख शहर के रूप में विख्यात था, यहां पर व्यापार, तकनीकी शिक्षा मशहूर थी। दुनिया भर के व्यापारियों और कला विशेषज्ञों सहित विज्ञान, तकनीकी से जुड़े लोगों के लिए हांगकांग एक लाभकारी और अवसरयुक्त शहर था। हांगकांग के लोगों की आजादी 1997 में तब मारी गई थी जब ब्रिटेन ने बिना सोचे-समझे और आशंकाओं को खारिज करते हुए हांगकांग चीन को दे दिया था। ब्रिटेन ने उस समय कहा था कि हांगकांग की आजादी से कोई समझौता नहीं होगा। हांगकांग के लोगों के साथ समानता और लोकतांत्रिक व्यवहार होगा। हांगकांग चीन के अंदर जरूर होगा पर हांगकांग का स्वरूप स्वशासी क्षेत्र जैसा होगा। हांगकांग के लोग ही अपना भाग्य विधाता चुनेंगे। 

ब्रिटेन ने यह भी कहा था कि हांगकांग के पास अलग चुनाव, उनकी अलग मुद्रा और विदेशी लोगों से जुड़े नियम के साथ ही साथ अपनी न्यायिक प्रणाली होगी। कहने का अर्थ यह था कि हर स्थिति में हांगकांग के लोगों के मानवाधिकार और प्राकृतिक न्याय की रक्षा की जाएगी। औपनिवेशिक और गुलाम मानसिकताएं उन पर नहीं थोपी जाएंगी। पर ब्रिटेन को उस समय शायद यह नहीं मालूम होगा कि हांगकांग को किसी सभ्य देश या फिर लोकतांत्रिक देश को नहीं सौंप रहे हैं बल्कि एक कम्युनिस्ट तानाशाही वाले चीन को सौंप रहे हैं जिनका इतिहास तानाशाही वाला है,लोकतंत्र से घृणा करने वाला है। उस समय भी हांगकांग के लोगों ने विरोध किया था। दुनिया भर के कम्युनिस्ट तानाशाही विरोधी जनमत ने आशंका जताई थी और कम्युनिस्ट तानाशाही विरोधी जनमत ने कहा था कि भविष्य में हांगकांग के लोकतंत्र और हांगकांग की जनता की आजादी चीन छीन लेगा, मानवाधिकार की कब्र खोद देगा। चीन जैसा शासन ही हांगकांग पर होगा। हांगकांग सिर्फ नाममात्र का स्वायत्तशासी क्षेत्र होगा। उसकी स्थिति चीन के गुलाम के रूप में होगी। 

कम्युनिस्ट तानाशाही विरोधी जनमत की सभी आशंकाएं आज सही साबित हुई हैं। हांगकांग सिर्फ और सिर्फ चीन का गुलाम बन कर रह गया है। हांगकांग की शासन कुर्सी पर वही बैठता है जो चीन का अति समर्थक होता है और चीन की इच्छानुसार वह सब करने के लिए तैयार होता है जो हांगकांग के नागरिकों की गुलामी को निश्चित करने वाला प्रस्ताव और नीतियां होती हैं। 

यहां तो स्वायत्तता भी एक छलावा है, लोकतंत्र भी छलावा है क्योंकि चीन निर्देशित असैम्बली ही बनती है। इसके पीछे कारण है कि हांगकांग की जनता के पास पूर्ण नहीं बल्कि सीमित अधिकार हैं। हांगकांग पर शासन करने के लिए जो असैम्बली चुनी जाती है उस असैम्बली के चुनाव में हांगकांग के लोगों की भूमिका सीमित ही होती है। असैम्बली के सिर्फ  50 प्रतिशत सदस्यों का ही चुनाव हांगकांग की जनता करती है, शेष 50 प्रतिशत सदस्य चीन की इच्छानुसार नियुक्त होते हैं। इसीलिए हमेशा चीन समर्थक असैम्बली ही बनती है। चीन समर्थक असैम्बली हमेशा चीन का मोहरा बन कर रहती है। हांगकांग शहर का मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी चीन समर्थक होता है। 

प्रत्यर्पण कानून भी चीन समर्थक और हांगकांग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैरी लैम ने ही लाया है। कैरी लैम की यह अदूरदर्शी और गुलामी मानसिकता को सुनिश्चित करने वाले कानून लाने के पीछे भी चीन के हथकंडे को लागू करना है। इस कानून का इतना तीव्र विरोध क्यों हुआ। चीन अपने यहां अपने विरोधियों को किस प्रकार से सजा देता है, किस प्रकार से उत्पीडऩ करता है, जेलों में डाल कर मानवाधिकार की कब्र किस प्रकार से खोदता है, यह दुनिया जानती है। यही कारण है कि चीन अपने यहां लोकतंत्र विरोधी आंदोलन को दबाने में सफल होता है। पर हांगकांग में चीन विरोधी लोकतांत्रिक संघर्ष हमेशा जारी रहता है। इसी कारण चीन आग-बबूला रहता है। 

दुनिया हांगकांग की जनता के अंब्रेला मूवमैंट से भी परिचित रही है। 2014 में हांगकांग की जनता ने अंब्रेला मूवमैंट शुरू किया था। यह मूवमैंट शांतिपूर्ण था। पूर्ण अहिंसक आंदोलन था। इस मूवमैंट का उद्देश्य लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करना और अपनी आजादी सुनिश्चित करना था। इस मूवमैंट से लाखों लोग जुड़े थे। सड़कें जाम रहती थीं, व्यापारिक ठिकाने बंद पड़े रहते थे। 79 दिन तक यह आंदोलन चला था। चीन की धमकियों के सामने भी हांगकांग की जनता नहीं डरी थी। चीन ने कई हथकंडे भी अपनाए थे। पुलिस और सैनिक कार्रवाइयां भी हुई थीं। हजारों लोकतांत्रिक नेताओं को पकड़ कर जेलों में डाल दिया गया था। दुनिया आज भी चीन को अंब्रेला मूवमैंट पर उत्पीडऩ और पुलिस कार्रवाई की दोषी मानती है। 

आंदोलन की आग दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है
चीन द्वारा अपने विवादास्पद प्रत्यर्पण कानून को स्थगित रखने की इच्छा प्रकट करने के बाद भी अंब्रेला आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है बल्कि यह कहना सही होगा कि अंब्रेला आंदोलन की आग दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। अब तक दर्जनों आंदोलनकारी चीन की समर्थक पुलिस के हाथों मारे जा चुके हैं, फिर भी अंब्रेला आंदोलन के पक्ष में जनसैलाब  उमड़ ही रहा है। 

दुनिया के जनमत को चीन के खिलाफ और हांगकांग की जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए तत्पर रहना होगा और हांगकांग की आजादी को सुनिश्चित करने पर विचार करना चाहिए। खास कर ब्रिटेन को बड़ी भूमिका निभानी चाहिए। ब्रिटेन को यह सुनिश्चित करना होगा कि हांगकांग की जनता के पास मानवाधिकार और लोकतंत्र का पूर्ण अधिकार हो और अगर हांगकांग की जनता आजादी चाहती है तो फिर उनकी आजादी भी सुनिश्चित होनी चाहिए पर क्या ब्रिटेन भविष्य में हांगकांग को पूर्ण लोकतंत्र दिलाने में अपनी भूमिका निभाएगा। ब्रिटेन क्या हांगकांग की जनता को चीन की हिंसक तानाशाही नीतियों से बचाने के लिए तैयार रहेगा? निश्चित तौर पर दुनिया को अब हांगकांग की जनता की आजादी के प्रति सहानुभूति रखनी ही चाहिए।-विष्णु गुप्त
 

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