मोदी के 370 और 400 सीटें जीतने के दावे का सच

Thursday, Feb 08, 2024 - 06:00 AM (IST)

संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए 370 और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए 400 सीटों की जो बात की उस पर गहन चर्चा स्वाभाविक है। 

प्रधानमंत्री द्वारा संसद के रिकॉर्ड में इसे लाने के बाद इस बात का विश्लेषण आवश्यक है कि यह उनका वास्तविक आत्मविश्वास है या अति आत्मविश्वास। इस संदर्भ में पहला तर्क यही होता है कि पार्टियां चुनाव में विजय के बड़े-बड़े दावे करती हैं और इसे अस्वाभाविक नहीं माना जाता। प्रश्न है कि क्या मोदी ने केवल भाजपा और राजग के पक्ष में माहौल बनाए रखने के लिए बड़ा लक्ष्य दिया है? क्या वे विपक्ष को हतोत्साहित करना या डराना चाहते हैं? या धरातल पर ऐसे कुछ ठोस आधार या माहौल भी है? 

2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने 300 पार का नारा दिया था और भाजपा ने 303 सीटें जीतीं। हां, कई विधानसभा चुनावों में भाजपा सीटों का घोषित लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकी। इसके समानांतर यह भी सच है कि भाजपा ने अपने नारे के अनुरूप या आसपास लक्ष्यों को प्राप्त भी किया है। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का गठबंधन हुआ तो भाजपा ने घोषणा की कि हम 50 प्रतिशत मतों के लिए लड़ रहे हैं और उसे 49.5 प्रतिशत मत तथा 63 सीटें प्राप्त हुईं। 

2019 में भी विरोधियों और अनेक विश्लेषकों ने प्रधानमंत्री द्वारा दिए लक्ष्य पर कटाक्ष किए थे। 2014 में कोई मानने को तैयार ही नहीं था कि भाजपा अकेले लोकसभा में बहुमत पा सकती है। किंतु ऐसा हुआ। जिस तरह 2014 और 2019 के अंकगणितीय आंकड़े के पीछे ठोस आधार और माहौल की भूमिका थी कुछ वैसा ही दूसरे रूप में 2024 चुनाव के पूर्व भी हम महसूस कर सकते हैं। सैफोलॉजी या चुनाव शास्त्र की दृष्टि से देखें तो सत्ता विरोधी रुझान की अभिव्यक्ति देने वाला विपक्ष आपसी एकता के लिए ही हाथ-पैर मार रहा है। 

प्रधानमंत्री ने 2014 में सत्ता में आने के पूर्व देश की आर्थिक अवस्था, रक्षा, विदेश नीति से लेकर महिलाओं व युवाओं की स्थिति, समाज की सोच से लेकर प्रशासनिक कार्यक्षमता, भ्रष्टाचार आदि का अपनी दृष्टि से तुलनात्मक विश्लेषण किया। कुल मिलाकर उन्होंने यह कहा कि जिस देश का आत्मविश्वास तक उनकी सत्ता में आने के पूर्व डोल गया था वह अब भविष्य की बड़ी शक्ति या विकसित भारत बनने के आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ गया है। ध्यान रखिए कि भाजपा ने श्री राम मंदिर आंदोलन के साथ 1989 में 2 लोकसभा सीटों से 89 तक की छलांग लगाई। लाल कृष्ण अडवानी की रथयात्रा के बाद 1991 में हुए चुनाव में भाजपा ने 120 सीटों के साथ देश की दूसरी बड़ी पार्टी का स्थान प्राप्त किया। 

उस समय विरोधी खासकर मंडलवादी पाॢटयों ने प्रचार किया था कि अडवानी की रथ यात्रा सामाजिक न्याय और आरक्षण के विरुद्ध है। इसके बावजूद भाजपा की सीटें 1991 में बढ़ीं। सन् 2024 का लोकसभा चुनाव अयोध्या आंदोलन के पूर्णता पर पहुंचने की पृष्ठभूमि में हो रहा है। प्राण प्रतिष्ठा के दौरान देश और देश के बाहर भारतवंशियों के बीच देखा जा रहा माहौल अद्भुत है। ऐसा लगता है जैसे देश में नए सिरे से आध्यात्मिक धार्मिक चेतना उत्पन्न हुई है। 

प्रधानमंत्री मोदी ने शासन की नीतियों से मंडल और सामाजिक न्याय की अवधारणा को व्यावहारिक धरातल पर परिणत किया है। सामाजिक न्याय का राग अलापने वाली मंडलवादी पाॢटयों के पास मोदी सरकार द्वारा पिछड़े, दलितों के लिए किए गए कार्यों तथा आॢथक रूप से पिछड़े के लिए आरक्षण आदि का प्रत्युत्तर नहीं है। 1991, 96, 98 और 1999 के चुनावों में भाजपा ने मंडलवाद का इस तरह व्यवहार में उत्तर नहीं दिया जैसे मोदी सरकार के कार्यकाल में मिला है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में लोगों को आवास, बिजली, पानी, मुद्रा योजना के तहत कर्ज, जनधन योजना के खातों में हो रहे धन स्थानांतरण, किसान सम्मान निधि बारे बताते हुए जो आंकड़े दिए प्रधानमंत्री ने भी उसकी चर्चा की और सामाजिक न्याय के संदर्भ में विपक्ष के लिए इसका खंडन संभव नहीं है। इस तरह श्री राम मंदिर, हिंदुत्व और सामाजिक न्याय व मंडलवाद के बीच मोदी सरकार ने सेतु बनाया और दोनों साथ बढ़े हैं। जब प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि पिछड़े की बात करने वालों की नीतियां पिछड़ा विरोधी रहीं तो एक वर्ग उनमें विश्वास करता है। 

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हिन्दू समाज की जातीय सीमाओं को तोड़ रही है तो मंडलवाद और सामाजिक न्याय समर्थकों को भी लग रहा है कि मंडल और कमंडल का विभाजन केवल वोटों के लिए पैदा किया गया। यह असर कितना व्यापक है इसका एक प्रमाण नीतीश कुमार का पाला बदल भी है। इसीलिए उन्होंने जाति आधारित गणना से लेकर विधानसभा में 75 प्रतिशत आरक्षण का कानून पारित किया।  श्री राम विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान वे भाजपा में आए, क्योंकि उन्होंने बिहार और देश में उसके प्रभाव को देखा है। मंडलवादी नेता की ऐसी सोच एक व्यक्ति की नहीं है। इसका असर लोकसभा चुनाव पर होगा। 

प्रधानमंत्री के भाषण का मूल तत्व यही था कि पूर्व की सरकारों में आत्मविश्वास की कमी थी, वे लोगों की क्षमता पर भी विश्वास नहीं करते थे, दिशा नहीं थी, परिवारवाद और भ्रष्टाचार में फंस थे, इस कारण भारत को जहां होना चाहिए वहां नहीं पहुंचा। इसके विपरीत उनकी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया, परिवारवाद बढऩे नहीं दिया तथा उम्मीद और आत्मविश्वास के साथ सही दिशा और नीतियां अपनाईं जिस कारण भारत आगे बढ़ रहा है। उन्होंने तीसरे कार्यकाल में भारत को तीसरी अर्थव्यवस्था तथा 2047 तक विकसित भारत बनाने के लक्ष्य की घोषणा की। 

यू.पी.ए. सरकार का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2014 में अगले तीन दशक में तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही थी। इसके अनुसार भारत 2044 तक तीसरी अर्थव्यवस्था बनता। यहीं से उन्होंने आज के कदमों को अगले 1000 वर्ष तक के प्रभावों की आधारभूमि बताया। उन्होंने कहा कि 2014 में आने के बाद हमने गड्ढे भरे, 2019 से नवनिर्माण की नींव डाली और अब पुर्नर्माण करेंगे। यह भी कि श्रीराम मंदिर हमारी संस्कृति और गौरव को ऊर्जा देता रहेगा। इसका अर्थ समझने की आवश्यकता है। 

यानी 1000 वर्ष से भी पहले एक प्रक्रिया भारत में शुरू हुई, विदेशी आक्रमणकारी आए, अर्थ लूटा, धर्मस्थल नष्ट किए और लाखों का निर्दयतापूर्वक धर्म परिवर्तन किया या मौत के घाट उतारा, स्वतंत्रता के बाद भी सरकारों ने उनको पलटने की कोशिश नहीं की। श्री राम मंदिर निर्माण के साथ वह प्रक्रिया पलट गई है। वैसी स्थिति पैदा नहीं होगी कि फिर वह त्रासदपूर्ण प्रक्रिया आरंभ हो। यानी अब भारत विकसित होगा , लेकिन यह शुष्क अर्थव्यवस्था नहीं, इसके पीछे भारत की सभ्यता, संस्कृति, अध्यात्म, सामाजिक समरसता का संपूर्ण योगदान होगा। 

जब प्रधानमंत्री ने विपक्ष को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि आप सजा प्राप्त व्यक्ति का महिमामंडन करते हैं तो किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। उनका इशारा लालू प्रसाद यादव की ओर था जिनको कांग्रेस व विपक्ष की कई पाॢटयां पूरा सम्मान दे रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जिनके विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप में कार्रवाई हो रही है वे सब एक-दूसरे का साथ दे रहे हैं किंतु कार्रवाई जारी रहेगी। इस तरह उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले में भी देश में 2 स्पष्ट पक्ष बनाए-जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कार्रवाई कर रहा है तथा जो या तो भ्रष्टाचार के मुकद्दमों का सामना कर रहा है या ऐसे दूसरे का साथ दे रहा है। यह भी मतों के ध्रुवीकरण का एक कारक साबित होगा।-अवधेश कुमार
 

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