ट्रम्प ने ‘युद्धविराम’ चाहा, शी ने ‘बढ़त’ हासिल की

punjabkesari.in Wednesday, Nov 05, 2025 - 05:35 AM (IST)

अति -उत्सुक डोनाल्ड ट्रम्प की छवि, जो ठंडे स्वभाव वाले शी जिनपिंग को मनाने की कोशिश कर रहे थे, मिटाना मुश्किल होगा। चीनी नेता का अनौपचारिक भाषण संरक्षणात्मक और पितृसत्तात्मक था। क्या शी ने ट्रम्प को ‘विश्व मंच पर ठगा’, जैसा कि सदन के शीर्ष डैमोक्रेट हकीम जेफ्रीज ने यादगार दावा किया था? क्या उन्होंने चीन के आगे घुटने टेक दिए? इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि शी का पलड़ा भारी था। ट्रम्प को लगा कि शी को बराबरी का दर्जा देकर और उनकी मुलाकात को ‘जी2’ कहकर वह उन पर एहसान कर रहे हैं। जिस तरह से यह प्रक्रिया चल रही थी, उससे ऐसा लग रहा था कि शी खुद एहसान कर रहे हैं। 

ट्रम्प का जी2 वाला सूत्रीकरण दिल्ली में पत्थर की तरह गिरा, जहां यह शब्द बुरी यादें ताजा करता है। क्या वह भारत को ट्रोल कर रहे थे? चीनी विशेषज्ञ और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रश दोशी ने बताया कि इस संदर्भ ने केवल ‘अमरीकी सहयोगियों और सांझेदारों के इस डर को और पुख्ता किया कि हम उनके साथ संबंधों की बजाय चीन के साथ संबंधों को प्राथमिकता देंगे।’ बात यह है कि अमरीका-भारत संबंध पहले ही बिखर चुके हैं। दुर्भाग्य से, यह दो अहं की लड़ाई बन गई है। हां, 10 साल के रक्षा ढांचे के समझौते पर हस्ताक्षर सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ को इस उथल-पुथल से बचा लेते हैं। लेकिन अन्य जगहों पर गतिरोध चिंताजनक है। इस साल क्वाड शिखर सम्मेलन की संभावना कम ही दिखती है।

एक विचार यह है : ट्रम्प ने शी को इसलिए लुभाया क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं, उनके किसान और उद्योग मुश्किल में हैं और उन्हें एक समझौते की जरूरत है। क्या मोदी अपना रुख बदल सकते हैं क्योंकि भारतीय कामगार भी मुश्किल में हैं? मोदी इन दिनों विश्व मंच पर मौजूद होने से ज्यादा अनुपस्थित हैं। ट्रम्प से बचना कोई रणनीति नहीं हो सकती। वह तीन साल और रहेंगे। इस बीच, शी ‘जीत-जीत’ की स्थिति में हैं। अमरीका के साथ उन्होंने अपनी पकड़ मजबूत की, रियायतें हासिल कीं, ट्रम्प को टैरिफ कम करने पर मजबूर किया और व्यावहारिक तौर पर यह साबित कर दिया कि वह भी उसी स्तर के हैं और धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने ट्रम्प को अपनी साख बचाने का मौका जरूर दिया। चीन एक बार फिर सोयाबीन खरीदेगा, लेकिन पहले जितना नहीं। वह दुर्लभ मृदा तत्वों के निर्यात की अनुमति देगा लेकिन केवल एक साल के लिए। वह फेंटानिल के पूर्ववर्ती पदार्थों पर भी अंकुश लगाएगा। दोशी के अनुसार, अमरीका ‘पूर्व की यथास्थिति से भी कुछ बदतर स्थिति’ में वापस आ गया है और ‘विनाशकारी वापसी’ ने उसकी कमजोरी उजागर कर दी है। चीन ने एक रणनीतिक गतिरोध पैदा कर दिया है-जो शी जिनपिंग का अगले दशक के लिए लक्ष्य है, यह दिखाकर कि वह कितने तरीकों से अमरीकी अर्थव्यवस्था का गला घोंट सकता है। अगर ट्रम्प को सोयाबीन-दुर्लभ मृदाओं पर अल्पकालिक आॢथक राहत मिली, तो शी जिनपिंग को समय और तकनीक खरीदने का दीर्घकालिक लाभ मिला।

फिर भी, कई लोग राहत महसूस कर रहे हैं कि ट्रम्प ने कम से कम एनवीडिया को अपनी सबसे बड़ी ब्लैकवेल चिप चीन को बेचने की इजाजत तो नहीं दी। कम से कम एक अस्थायी युद्धविराम तो है। कम से कम बाजार स्थिर तो हो सकते हैं। अमरीका-चीन के खेल का नतीजा क्या है? यह साफ है कि 10 महीने से भी कम समय में, टकराव की राजनीतिक और आॢथक कीमत ट्रम्प के लिए बहुत ज्यादा साबित हुई। अलग-अलग देशों में दुर्लभ मृदा तत्वों के लिए वैकल्पिक स्थल विकसित करने और प्रसंस्करण क्षमता बनाने में 5-10 साल लगेंगे। अमरीका-चीन प्रतिस्पर्धा जारी रहेगी लेकिन इसे शीत युद्ध के दौरान अमरीका-सोवियत प्रतिद्वंद्विता की तरह ही प्रबंधित किया जाएगा।

व्यापक सिद्धांत : प्रत्येक पक्ष ‘दूसरे की आवश्यक राजनीतिक वैधता’ को स्वीकार करता है, विवाद के विशिष्ट क्षेत्रों के लिए सांझा नियम विकसित करता है, संयम का अभ्यास करता है और दूसरे की रक्षात्मक क्षमताओं को कम नहीं करता, विश्व राजनीति के लिए सिद्धांतों की एक सूची को स्वीकार करता है, ताकि ‘एक सहमत यथास्थिति के लिए आधार रेखा’ प्रदान की जा सके और संकट की स्थितियों के लिए मौजूदा संचार लिंक का उपयोग किया जा सके।

इसके अलावा, अमरीका को ‘जीत के पूर्ण दावों’ को खारिज करना और ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की वैधता’ को स्वीकार करना चाहिए। दोनों पक्ष एक-दूसरे की रणनीतिक परमाणु निरोध क्षमता को स्वीकार करने की घोषणा भी कर सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि शी जिनपिंग से मुलाकात से ठीक पहले, ट्रम्प ने पेंटागन को 33 साल बाद परमाणु हथियारों का परीक्षण फिर से शुरू करने का आदेश दिया था। कोई वास्तविक कारण नहीं बताया गया। लेकिन परीक्षण फिर से शुरू करने से चीन को फायदा होगा क्योंकि वह अपने परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण और विस्तार कर रहा है। प्रश्न यह है कि क्या चीन एक नियम पुस्तिका बनाने तथा उसका पालन करने के लिए सहमत होगा, जैसा कि सोवियत संघ ने बड़े पैमाने पर किया था।-सीमा सिरोही


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