ट्रम्प के दोबारा न जीतने से ‘भारत के हितों’ को क्षति पहुंचेगी

Monday, Sep 21, 2020 - 03:45 AM (IST)

विदेश नीति सिद्धांत को स्थापित करने के विपरीत भारत ने अपना सब कुछ एक ही टोकरी में रखा है। दूसरी बार नवम्बर में राष्ट्रपति चुनावों को जीतने के बाद यदि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प व्हाइट हाऊस में दोबारा पहुंचने में असफल रहते हैं तो इससे हमारे हितों को क्षति पहुंचेगी। विशेष कर तब जबकि 6 सितम्बर 2008 को ऐतिहासिक परमाणु डील के अलावा अमरीकी राष्ट्रपति ने खुले दिल से धारा 370 को निरस्त करने, नागरिकता संशोधन विधेयक 2019, चीनी अतिक्रमण इत्यादि पर भारत का समर्थन किया है। 

यदि डैमोक्रेट उम्मीदवार तथा ओबामा प्रशासन में उप राष्ट्रपति रह चुके जो बाइडेन जूनियर नए राष्ट्रपति पद की रेस जीतते हैं तब यह 100 प्रतिशत यकीनी बात नहीं होगी कि वह सभी मुद्दों पर भारत के साथ अपनी प्रतिबद्धताओं पर खरे उतरेंगे। उनका दृष्टिकोण ट्रम्प से अलग हो सकता है। 

कोविड-19 से जिस तरह से निपटा गया यह बात निर्णायक सिद्ध हो सकती है। इसके अलावा कई अन्य बातें भी हैं जो ट्रम्प की जीत या फिर हार को तय करेंगी। 30 जुलाई को अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कई ट्वीट्स के माध्यम से सुझाया कि आगामी राष्ट्रपति चुनाव कोविड-19 महामारी के चलते स्थगित हो जाने चाहिएं। ट्रम्प ने कहा था कि चुनाव उस समय तक टाल दिया जाए जब तक कि लोग सही ढंग से सुरक्षित होकर वोट नहीं कर पाते। कई महीनों से अनेकों राज्य सरकारों ने अमरीका में मेल के माध्यम से वोट करने पर जोर दिया था। ऐसा लोगों की स्वास्थ्य चिंताओं को देखते हुए सोचा गया क्योंकि खुद उपस्थित होकर वोट करने से संक्रमण के मामले में बढ़ौतरी हो सकती है। 

क्या ट्रम्प चुनावों में देरी कर सकते हैं 
अमरीका में 3 नवम्बर को राष्ट्रपति के लिए चुनाव आयोजित होने हैं। अमरीकी राष्ट्रपति इतिहास के एक इतिहासकार माइकल बेशलास का कहना है कि ट्रम्प के ऐसे कदम से अमरीकी कानून का हनन होगा। अमरीका के दूसरे राष्ट्रपति (1797-1801) जॉन एडम्ज ने 1811 में लिखा था कि ‘अमरीका में कानूनों की एक सरकार है न कि व्यक्तियों की’। इसका यह मतलब है कि ट्रम्प के पास ऐसी शक्ति नहीं जैसा कि उन्होंने ट्वीट द्वारा सुझाया था। 

विदेश नीति के विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रम्प इस समय कोविड-19 मुद्दे से निपटने में असफल होने पर परेशानियां झेल रहे हैं। इसके अलावा वह मौतों के आंकड़ों, डूबती हुई अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी तथा अमरीका के विभिन्न राज्यों में जातीय दंगों को लेकर भी सोच में हैं। अभी तक यह भी देखने में आया है कि राष्ट्रपति के लिए ट्रम्प की रेटिंग्स कोई बहुत ज्यादा प्रोत्साहित करने वाली नहीं है। बी.बी.सी. के अनुसार ट्रम्प की राष्ट्रीय रेटिंग रिपब्लिकन उम्मीदवार बाइडेन की तुलना में 43 प्रतिशत है। बाइडेन 51 प्रतिशत चुनावों में लीड बनाए हुए हैं।

28 अगस्त को रिपब्लिकन नैशनल कन्वैंशन की समाप्ति के बाद वोटरों के बीच ट्रम्प की प्रसिद्धि थोड़ी बढ़ी है। मगर ट्रम्प फिर भी बाइडेन की लीड को किसी प्रकार से खतरा नहीं पहुंचा सकते। चुनावों में ज्यादातर मतदाताओं ने संकेत दिया था कि अर्थव्यवस्था से निपटने की ट्रम्प की योग्यता पर उन्हें विश्वास है। राष्ट्रपति के लिए यह थोड़ी आशा की किरण है। अर्थव्यवस्था पर ट्रम्प की बाइडेन के मुकाबले पकड़ है। विदेश नीति  या स्वास्थ्य देखभाल पर हुए ज्यादातर सर्वे ने बताया है कि मतदाताओं ने ट्रम्प से ज्यादा बाइडेन पर विश्वास जताया है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि अमरीका तथा भारत एक ट्रेड एग्रीमैंट को उत्पन्न करने में असफल रहे हैं। हालांकि यह बार-बार संकेत मिले थे कि दोनों  पक्ष एक डील को पूर्ण करने के लिए आगे आ रहे हैं। ट्रम्प के आश्वासन के बावजूद वार्ताकार आने वाली अवधि में एक बड़़ी डील पर कार्य कर रहे हैं। जो बाइडेन ने भारत सरकार को कश्मीर के सभी लोगों के अधिकारों को पुन: स्थापित करने के सभी प्रभावी कदम उठाने के लिए कहा है। पूर्व उपराष्ट्रपति ने सी.ए.ए. तथा असम में एन.आर.सी. को लेकर भी भारत के उपायों के प्रति निराशा जताई। 

बेशक 3 नवम्बर को राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान होगा मगर फिर भी कुछ न दिखने वाले हालात चुनावों में नाटकीय बदलाव कर सकते हैं। इस वर्ष नवम्बर में दूसरी बार राष्ट्रपति चुनावों को जीतने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प चीन कार्ड खेल सकते हैं। ट्रम्प ने लगातार ही चीन को घातक वायरस के फूटने के संबंध में पूरे विश्व को गुमराह तथा सूचना छिपाने को लेकर लताड़ा था। यहां तक कि ट्रम्प ने कोविड-19 को ‘चीनी वायरस’ का नाम दिया था जिसने 213 राष्ट्रों को अपनी जकड़ में ले लिया था। 

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प अपने मतदाताओं को यकीन दिलाने की कोशिश करेंगे कि उनकी सरकार चीन के साथ कोई भी ढिलाई नहीं बरतेगी। मगर चीन ने अमरीका को आर्थिक तौर पर कमजोर करने की कोशिश की है। अमरीका के स्थान पर चीन अपने आप को सुपर पावर कहलाने की आकांक्षा रखता है। मगर ट्रम्प के प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन ने सुझाया है कि कई अमरीकियों के लिए नौकरियों की रिपोर्ट वास्तविकता नहीं दर्शा रही क्योंकि चुनावी माहौल अपने अंतिम चरण में है इसलिए कुछ राज्यों में जो बाइडेन एक बड़े अंतर से लीड कर रहे हैं। 

बाइडेन के लिए कुछ भी निश्चित नहीं जिनका कि ट्रेड के बारे में अपना ही एक सख्त नजरिया है। चीन के साथ ट्रेड वार, मध्य एशिया में बढ़ता हुआ संघर्ष और वैश्विक अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य पर डर को लेकर कई ङ्क्षबदुओं पर मार्कीट उथल-पुथल हुई है। इसके चलते अमरीकी सैंट्रल बैंक, द फैडरल रिजर्व ने ब्याज की दरों में कटौती की है। जो बाइडेन ने स्पष्ट संदेश दिया है कि यदि वह चुनाव जीत जाते हैं तो भारत-अमरीका सांझेदारी उनके प्रशासन की सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी।-के.एस. तोमर

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