चीन की ‘ओ.बी.ओ.आर.’ योजना की काट के लिए ट्रम्प की 60 अरब डालर की योजना को हरी झंडी

Thursday, Oct 18, 2018 - 02:06 AM (IST)

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घेरने के लिए हर तरह के दांव चल रहे हैं। ट्रम्प ने अब चीन की महत्वाकांक्षी ‘वन बैल्ट वन रोड’ ओ.बी.ओ.आर. परियोजना की काट और पेइचिंग के जियोपॉलिटिकल प्रभाव को कुंद करने के लिए एक महत्वपूर्ण बिल पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके तहत अब एक नई विदेशी सहायता एजैंंसी बनेगी जो अफ्रीका, एशिया और अमरीकी देशों में आधारभूत परियोजनाओं को आर्थिक मदद देगी। 

यू.एस. इंटरनैशनल डिवैल्पमैंट फाइनैंस कॉर्प. नामक यह कम्पनी अफ्रीका, एशिया और अमरीकी देशों को 60 अरब डॉलर के ऋण, ऋण गारंटी दे सकती है। इसके अलावा जो कम्पनियां इन विकासशील देशों में बिजनैस की इच्छुक होंगी, उनको इंश्योरैंस दे सकती है। ट्रम्प ने पिछले हफ्ते इस बिल पर साइन किए हैं। हालांकि ट्रम्प का यह कदम उनके 2015 के चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए बयान के एकदम उलट है। उस दौरान ट्रम्प अपने भाषणों में विदेशी सहायता की आलोचना करते थे। 

दरअसल, अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के स्टैंड में बदलाव के पीछे उनकी चीन को आर्थिक, तकनीक और राजनीतिक तौर पर अलग-थलग करने की कोशिश है। चीन एशिया, पूर्वी यूरोप और अफ्रीका में बड़ा प्रभुत्व हासिल करने के लिए यहां बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है। रिपब्लिकन प्रतिनिधि टेड योहो ने कहा, ‘‘अब ट्रम्प आग के साथ आग से ही खेलना चाहते हैं। मैं भी बदल चुका हूं और मुझे लगता है कि अब वह (ट्रम्प) भी बदल चुके हैं। यह सब कुछ चीन के लिए हो रहा है। ट्रम्प के इस प्रयास को चीन के दुनिया में बढ़ते आर्थिकऔर पॉलिटिकल प्रभाव को कम करने के तौर पर देखा जा रहा है। ट्रम्प ट्रेड वार शुरू करते हुए चीन पर इस साल अब तक 250 अरब डॉलर के शुल्क लगा चुके हैं। अमरीका ने पिछले सप्ताह यह भी साफ किया था कि वह चीन को एक्सपोर्ट की जाने वाली सिविल न्यूक्लियर तकनीक में भी कमी करेगा। 

चीन ने पाकिस्तान, नाइजीरिया में सबसे ज्यादा निवेश कर रखा है। चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना ओ.बी.ओ.आर. पाकिस्तान से होकर ही गुजरती है। दरअसल, चीन की मंशा अपने निवेश के जरिए जियोपॉलिटिकल प्रभाव और प्राकृतिक संसाधनों तथा तेल पर अधिकार जमाने की है। चीन इसके अलावा इन देशों में कई परियोजनाओं पर अरबों खर्च कर रहा है जबकि उसे पता है कि यहां से उसे कुछ नहीं मिलने वाला है। पिछले महीने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि वह अफ्रीका को 60 अरब डॉलर की वित्तीय मदद प्रदान करेगा। 

सीनेट फॉरेन रिलेशन कमेटी के चेयरमैन रिपब्लिकन सीनेटर बॉब क्राकर ने कहा कि यह प्रयास एक तरह से स्ट्रैटिजिक शिफ्ट है। ट्रम्प शायद सीख रहे हैं कि मिलिट्री ताकत ही अकेली शक्ति नहीं होती और चीन से मुकाबले के लिए यह अकेले पर्याप्त नहीं होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हम देख रहे हैं कि चीन पूरे अफ्रीका और दक्षिण अमरीका में निवेश कर रहा है। अब हम भी जाग गए हैं और हमें इन देशों में निवेश करना होगा।’’ चीन के एशिया, अफ्रीका, यूरोप में बढ़ते प्रभाव से अमरीका चिंतित है। पिछले 5 सालों से चीन इन जगहों पर बड़े प्रोजैक्ट्स में अपना पैसा लगा रहा है। इसके अलावा चीन ऐसे देशों को भी जाल फैंकता है जिससे उसे आने वाले दिनों में राजनीतिक फायदा हो सकता है। 

लोन, ग्रांट्स और इन्वैस्टमैंट के लिए पैसे देकर चीन अफ्रीका आदि को अपनी तरफ  करने में जुटा हुआ है। जिबूती और श्रीलंका को फंसाने के प्लान पर वह पहले से काम कर रहा है। चीन की चाल पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव,  जिबूती, म्यांमार जैसे देशों को समझ तो आ रही है, लेकिन वे कुछ कर नहीं पा रहे। बता दें कि ‘वन बैल्ट वन रोड’ (ओ.बी.ओ.आर.) परियोजना चीन की महत्वाकांक्षी योजना है। इसका निर्माण सिल्क रोड की तर्ज पर किया जा रहा है। अगर फंड से मुकाबले की बात करें तो ट्रम्प की योजना एक खरब डॉलर से ज्यादा की ओ.बी.ओ.आर. के सामने कहीं नहीं टिकती लेकिन जिन देशों का चीन भरोसा खो चुका है, उन्हें अब अमरीका से मदद मिल सकेगी।-ग्लेन थ्रश

Pardeep

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