कारगुजारी दिखाने वाले राज्य के संकटग्रस्त मुख्यमंत्री

Monday, Jan 10, 2022 - 05:47 AM (IST)

भारत सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग द्वारा कुछ दिन पहले जारी किए गए 2020-21 के लिए सुशासन सूचकांक (जी.जी.आई.) भारतीय राज्यों में शासन का आकलन करने के लिए एक उपयोगी नई प्रणाली है जो आखिरी बार 2019 में सामने आया था। इसकी रेटिंग में विश्वसनीयता है क्योंकि डाटा में बदलाव या भाजपा शासित राज्यों और अन्य के बीच भेदभाव करने की कोई गुंजाइश नहीं है। इसके अलावा यह सरकार के अपने डाटा पर आधारित है। इसलिए यदि दो गैर-भाजपा शासित राज्यों (केरल और तमिलनाडु) ने अच्छे पर्यावरण संरक्षण आचरणों के लिए स्कोर में शीर्ष 2 स्थान हासिल किए या आंध्र में सुशासन आचरण में सबसे बड़ा वृद्धिशील परिवर्तन (2019 से 2020-21) नोट किया गया है, ऐसा प्रदेश, जो सूचकांक में सबसे ऊपर है, भाजपा के पास इस स्कोर पर सवाल उठाने का कोई कारण नहीं होना चाहिए। 

दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा लगभग सभी क्षेत्रों में शीर्ष पांच राज्यों में शामिल है। चाहे वह कृषि हो, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और उपयोगिताओं का निर्माण,आर्थिक शासन (व्यवसाय करने में आसानी सहित), या सामाजिक कल्याण और विकास। माना जाता है कि यह डाटा केवल 2 वर्षों से अधिक का है और इसलिए इसका उपयोग शासन को मापने और चुनाव परिणामों पर एक्सट्रपलेशन करने के लिए नहीं किया जा सकता, लेकिन यह बहुत स्पष्ट है कि हरियाणा के शासन आचरण में सुधार लगातार हो रहा है, भले ही राज्य में भाजपा का चुनावी प्रदर्शन न भी रहा हो। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कार्यालय में एक वर्ष पूरा करने पर कहा था, ‘‘जब मैं सी.एम. बना तो मेरा अनुभव शून्य था। अब अगर कोई मुझसे पूछे तो मैं कहूंगा कि मेरे पास एक साल का अनुभव है। मुझे सब कुछ पता है और किस समस्या का समाधान करना है, मैं इसे अच्छी तरह से जानता हूं।’’ 

जब 2019 में अगला विधानसभा चुनाव आया तो भाजपा 90 सदस्यीय सदन में 46 सदस्यों के बहुमत के निशान तक पहुंचने में विफल रही और उसे दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी (जजपा) के साथ चुनाव के बाद गठबंधन करना पड़ा। तब और अब के बीच गुजरात और कर्नाटक ने मुख्यमंत्रियों के बदलाव को देखा है, उत्तराखंड ने 2 को देखा है, लेकिन हरियाणा उन कुछ भाजपा शासित राज्यों में से एक है, जहां 7 साल तक एक ही मुख्यमंत्री रहा है, हालांकि पार्टी का चुनावी रिकॉर्ड उनके अंतर्गत औसत से कम रहा है। 

पिछले 2 सालों में किसानों के आंदोलन का खामियाजा हरियाणा को भुगतना पड़ा है। (बमुश्किल 3 महीने पहले, खट्टर को सोनीपत की अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ी थी, यह सलाह दिए जाने के बाद कि विरोध करने के लिए वहां बड़ी संख्या में एकत्र किसानों से उनकी सुरक्षा को खतरा हो सकता है। वह नहीं गए।) राज्य को एक कानून पारित करना पड़ा, संभवत: इन शिकायतों को दूर करने के लिए कि ‘बाहरी’ लोगों की राज्य में बाढ़ आ रही है; निजी क्षेत्र को 30,000 रुपए के सकल मासिक वेतन सीमा से नीचे 75 प्रतिशत नौकरियां आरक्षित करने का आदेश दिया। और सार्वजनिक रूप से प्रार्थना करने के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सीमाओं पर फिर से जोर दिया गया है (रथयात्राओं या हिंदू धार्मिक जुलूसों, जैसे राज्य से गुजरने वाले कांवडिय़ों या सार्वजनिक पार्कों में जागरण पर कोई प्रतिबंध नहीं है)। ये सभी कदम एक ऐसे मुख्यमंत्री की कहानी बताते हैं जो अत्यधिक राजनीतिक दबाव से जूझ रहे हैं, हालांकि उनके शासन का रिकॉर्ड असाधारण है, जैसा कि जी.जी.आई. ने गौर किया है। खट्टर के सामने सबसे बड़ी समस्या भीतर से है। 

दस दिन पहले, उन्होंने अपनी मंत्रिपरिषद का विस्तार और फेरबदल किया। उन्होंने अपने गृह मंत्री अनिल विज से शहरी स्थानीय निकाय विभाग छीन लिया और हिसार का प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा से 2 बार विधायक रहे कमल गुप्ता को दे दिया। सभी के लिए आवास, एक ऐसा विभाग जो स्वयं मुख्यमंत्री के पास था, भी गुप्ता को दिया गया था (वैसे हरियाणा ने अपने सभी के लिए आवास लक्ष्य का 100 प्रतिशत हासिल कर लिया है। कोई कारण होना चाहिए कि विभाग अभी भी मौजूद है)। विज इतने गुस्से में थे कि उन्होंने स्थानीय पत्रकारों को पूरी कहानी सुनाई-कि मुख्यमंत्री ने फेरबदल से पहले कहा था कि उन्हें उनसे गृह विभाग भी वापस लेना पड़ सकता है। विज ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैंने तब कहा, अगर वह चाहें तो वह सभी विभाग ले सकते हैं। मैंने कहा कि मैं अपने सभी विभाग छोडऩे को तैयार हूं, सिर्फ एक या दो ही क्यों।’’ वह कैबिनेट विस्तार में शामिल नहीं हुए। 

विज, जो 6 बार के भाजपा विधायक हैं, और मुख्यमंत्री के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है। 2020 में खट्टर ने आपराधिक जांच विभाग विज से वापस ले लिया, जिसके बिना किसी राज्य के गृह मंत्रालय का बहुत कम महत्व या शक्ति बचती है। फिर मुख्यमंत्री और उनके गृह मंत्री के बीच पुलिस महानिदेशक के कार्यकाल को लेकर सार्वजनिक तौर पर गतिरोध सामने आया, जिसे खट्टर बनाए रखना चाहते थे और विज बदलना चाहते थे। 2015 में, हरियाणा में पहली बार अपने दम पर सत्ता में आने के 3 महीने से भी कम समय में विज, जिन्होंने तब स्वास्थ्य, खेल और युवा मामलों को संभाला था, ने ट्विटर पर मुख्यमंत्री पर कटाक्ष करते हुए कहा था, ‘‘मेरे विभागों में गहरी दिलचस्पी लेने के लिए मुख्यमंत्री जी को धन्यवाद। मैं आराम से हूं।’’ यह खट्टर द्वारा विज के विभागों से संबंधित कई कार्यक्रम और योजनाएं शुरू करने के जवाब में था। 

गठबंधन सहयोगी दुष्यंत चौटाला किसानों के आंदोलन के बाद खुद की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। लेकिन वह मुख्यमंत्री के लिए ताकत का स्तंभ भी नहीं रहे। हरियाणा में चुनाव अभी कुछ समय दूर हैं, लेकिन संकटों का पानी मुख्यमंत्री को बाढ़ में घेरने की धमकी दे रहा है।-आदिति फडणीस 

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