न्यायिक प्रक्रिया में पारर्दशिता जरूरी

punjabkesari.in Thursday, Mar 23, 2023 - 04:57 AM (IST)

न्याय चाहने वाले नागरिकों की आखिरी उम्मीद होती है। इसकी विश्वसनीयता और स्वतंत्रता की सबसे अधिक सराहना की जाती है और यह महत्वपूर्ण है कि आम जनता का विश्वास डगमगाए नहीं। भारत में न्यायपालिका कुल मिलाकर स्वतंत्र रही है और अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने में सक्षम भी रही है। निश्चित रूप से कुछ अवसर रहे हैं जब कुछ न्यायाधीशों ने नैतिकता के उच्चतम मानकों को बनाए नहीं रखा है लेकिन ऐसे अपवाद दुर्लभ ही रहे हैं।

संविधान की रक्षा करने और संविधान के प्रावधानों का सावधानीपूर्वक पालन सुनिश्चित करने की इसकी भूमिका को देखते हुए मौजूदा केंद्र सरकार के साथ संघर्ष होना तय है। सरकार भी सबसे बड़ी वादी है और न्यायपालिका पर किसी भी तरह का नियंत्रण रखना चाहेगी। सरकार द्वारा न्यायपालिका को पीछे धकेलने की कोशिश के कई उदाहरण सामने आए हैं। वर्तमान में हम केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के साथ न्यायपालिका को धमकाने का प्रयास देख रहे हैं जो कालेजियम द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा प्रणाली पर बार-बार सवाल उठाते हैं।

वह चाहते हैं कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका हो। एक तरह से इसकी पहले ही एक भूमिका है और अगर कालेजियम किसी विशेष व्यक्ति को नियुक्त नहीं करना चाहती है तो वह सिफारिशों पर बैठता है। भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश वाई.वी. चंद्रचूड़ एक निडर और स्वतंत्र न्यायपालिका के प्रबल समर्थक हैं। चंद्रचूड़ इसी तरह के प्रयासों का विरोध करते रहे हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि वह कालेजियम की शक्तियों को कम करने के सरकार के प्रयासों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना जारी रखेंगे।

 
सरकार द्वारा च्सीलबंद कवरज् प्रथा  के रूप में जानी जाने वाली प्रथा के खिलाफ उनका हालिया कड़ा रुख बहुत प्रशंसनीय है। सरकार द्वारा अपने पक्ष का बचाव करने के लिए सीलबंद कवर से अपना पक्ष प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। इसका अनिवार्य रूप से मतलब यह था कि सरकार द्वारा लिए गए स्टैंड के कारणों को वादी के सामने प्रकट नहीं किया जाना 
चाहिए था। वह एक अनुचित प्रथा थी। इससे याचिकाकत्र्ता या वादी को नुक्सान होगा।

यह कहा जाना चाहिए कि ऐसा दुर्लभ अवसर हो सकता है जब राष्ट्रीय सुरक्षा शामिल हो या अत्यधिक संवेदनशील गुप्त सूचना हो जब ऐसा कदम आवश्यक हो सकता है। हालांकि सिविल मामलों में इसका उपयोग बहुत कम किया गया है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ठीक ही कहा था कि च्च्सीलबंद कवर प्रक्रिया मौलिक रूप से निष्पक्ष न्याय की मूल प्रक्रिया के विपरीत थी और अदालत में गोपनीयता नहीं हो सकती।

उन्होंने यह भी कहा कि गोपनीयता समझी जा सकती है यदि यह एक केस डायरी से संबंधित है जिसके लिए एक अभियुक्त हकदार नहीं है या कुछ ऐसा जो सूचना के स्रोत को प्रभावित करता है या किसी के जीवन को प्रभावित करता है। यह टिप्पणी च्वन रैंक वन पैंशनर्ज  योजना को लागू करने की मांग वाली एक याचिका की सुनवाई के दौरान की गई। बाद में पता चला कि सीलबंद पत्र में केवल भारी भुगतान बिल और एक बार में बकाया भुगतान करने में सरकार की कठिनाई के बारे में जानकारी थी।

यह शायद ही राष्ट्रीय सुरक्षा या अंतर्राष्ट्रीय संबंधों से संबंधित या जासूसों या स्रोतों के बारे में जानकारी लीक करने से संबंधित विषय था। फिर भी हाल के दिनों में ऐसा लगा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच विशेष रूप से राष्ट्रीय महत्व के मामलों में एक गुप्त संवाद चल रहा है। ऐसे कुछ मामलों को फिर से गिनाने के लिए सरकार ने नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर मामले, भीमा कोरेगांव गिरफ्तारी और राफेल जैट खरीद सौदे में इसी तरह के अनुरोध किए थे।

इसने मलयालम समाचार चैनल मीडिया-१ मामले में खुली सुनवाई और अमरीकी फर्म ङ्क्षहडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह पर लगाए गए धोखाधड़ी के आरोपों की सुनवाई को भी बाधित करने की कोशिश की थी। उम्मीद है कि मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की टिप्पणी सरकार की सूचनाओं को गुप्त रखने की बढ़ती प्रवृत्ति पर ब्रेक लगाएगी। न्यायिक मर्यादा और नैतिकता के लिए न्यायिक कार्यप्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए। -
 


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