पंचायती राज की सफलता के लिए प्रशिक्षण जरूरी

punjabkesari.in Tuesday, Aug 23, 2022 - 05:19 AM (IST)

पंचायती राज संस्थाओं के द्वारा विकेंद्रीकृत लोकतंत्र संचालित होता है। इसे मजबूत बनाने के लिए भारत के संविधान में 73वां संशोधन किया गया जिसके बाद राज्यों ने अपने-अपने पंचायती राज अधिनियमों में संशोधन किया और इन संस्थाओं को वांछित अधिकार दिए। 

पंचायती राज संस्थाओं को दिए गए 29 विषयों में शामिल हैं: भूमि सुधार और विकास, कृषि, चकबंदी और मिट्टी की संभाल, छोटी सिंचाई, जल प्रबंधन, वाटर शैड विकास, पशु पालन, डेयरी, मुर्गी पालन, मतस्य पालन, सामाजिक वन एवं फार्म जंगलात, मामूली वन्य उत्पाद, छोटे उद्योग जिनमें शामिल हैं भोजन प्रोसैसिंग उद्योग, खाद, ग्रामीण लघु उद्योग, ग्रामीण रिहायश, पीने वाला स्वच्छ जल, चारा और बालन, सड़कें, कल्वर्ट, पुल, बेडि़यां, जल मार्ग तथ अन्य संचार, ग्रामीण बिजलीकरण और वितरण, गैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोत, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, प्राइमरी और सैकेंडरी शिक्षा, तकनीकी सिखलाई और रोजगार शिक्षा, बालिग और गैर रस्मी शिक्षा, पुस्तकालय, सांस्कृतिक गतिविधियां, मंडियां और मेले, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, परिवार कल्याण, महिला तथा बाल विकास, सामाजिक कल्याण, कमजोर वर्गों का कल्याण, सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा समुदाय की प्रति सम्पत्तियों का रख-रखाव।

ये संस्थाएं विकास और आर्थिक विकास से संंबंधित मुद्दों के लिए योजना बनाने, उन्हें लागू करने, प्रबंधन, निगरानी और नियंत्रण संबंधी कार्य भी करती हैं। टैक्स टोल तथा फीसें लगाने के लिए उनकी प्राप्ति के लिए जिम्मेदार होती हैं। सरकारी ग्रांटों की प्राप्ति, खर्च और हिसाब-किताब भी रखती हैं। ग्राम सभा, ग्राम पंचायत, पंचायती समितियां और जिला परिषद से जुड़े सभी प्रतिनिधियों को जितनी देर तक योजनाबंदी ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों, चुनावों संबंधी विषयों, अधिकारों, कार्यों, तालमेल, निर्णय लेने, निगरानी, प्रबंधन और मूल्यांकन इत्यादि के बारे में जानकारियां नहीं होंगी तब तक ये संस्थाएं अपने सभी कार्यों को ठीक ढंग से नहीं निभा सकतीं।

प्रशिक्षण की जरूरत : प्रशिक्षण से समर्थता का निर्माण होता है और प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को बड़े अच्छे ढंग से निभा सकता है। संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने में जरूरी योगदान हो सकता है। उससे आत्मविश्वास पैदा होता है और उपलब्धियों को हासिल करने में मदद मिलती है।

प्रशिक्षण जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों में नेतृत्व के गुण पैदा करता है और उनकी मानसिकता में परिवर्तन भी लाता है। प्रशिक्षण समय-समय पर उचित निर्णय लेने में सहायक होता है और कौशल का विकास भी करता है। विभिन्न तरीकों को अपनाने के लिए भी प्रशिक्षण प्रेरित करता है। कार्यक्रमों और स्कीमों को समझने तथा प्रभावशाली ढंग से लागू करने में मदद मिलती है और महारत पैदा होती है। प्रशिक्षण से पारदॢशता, कार्यकुशलता, प्रभावशीलता व बचत पैदा होती है। सही मायनों में प्रशिक्षण दृष्टिकोण बदलता है और व्यक्ति को मेहनती बनाता है। कार्यों और शक्तियों के उचित प्रयोग के लिए यह तैयार भी करता है और इच्छा शक्ति को बढ़ाता है। पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधि करीब 5 या 6 वर्षों के बाद बदल जाते हैं और नए चेहरों को सबसे ज्यादा प्रशिक्षण की जरूरत होती है। 

प्रशिक्षण कैसा हो? : प्रशिक्षण सदैव जरूरत आधारित होना चाहिए। जिसमें पंचायती राज का संक्षेप इतिहास, पूर्व की खामियां, 73वें संशोधन की जरूरत क्यों, इसकी विशेषताएं, नवीन पंचायती राज से उम्मीदें, नवनिर्मित और संशोधित एक्टों के बारे में जानकारी, विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित ज्ञान, पंचायती विकास योजना क्या है और कैसे लागू करनी होती है, विशेष अधिकार तथा शक्तियां कौन-कौन सी हैं और उनका प्रयोग कैसे करना है, गरीबी और ग्रामीण विकास से संबंधित स्कीमों, कार्यक्रमों बारे विस्तारपूर्वक जानकारी, वित्तीय मामले, करों को एकत्रित करना और उनका सद्पयोग करना, बजट बनाना और उसे लागू करना, सरकारी और गैर सरकारी लोगों के संबंध, जाति, धर्म और आॢथक स्थिति से ऊपर उठ कर कार्य करना भी शामिल हैं। 

इसके साथ-साथ अच्छी निगरानी कैसे हो, पारदॢशता, अच्छा शासन, कार्यकुशलता, फंड्स का सही उपयोग, प्रभावशीलता, जवाबदेही, सरकारी नियंत्रण, ऑडिट, लेखा-जोखा, सहकारी संस्थाओं से संबंधित, समय सिर कार्रवाई, मानसिकता को बदलना, स्थानीय साधनों का उपयोग, संस्थाओं की कार्यप्रणाली, प्रबंधन और मूल्यांकन, टीम वर्क, रिकार्डों का रखरखाव, पंचायतों को चलाना और उसके कारोबार से संबंधित तौर-तरीके, कमेटियां बनाकर कार्य करना, लोगों की जरूरतों और उम्मीदों को पूरा करना भी प्रशिक्षण का हिस्सा है।

ट्रेनिंग अच्छे अनुभवी और विशेष व्यक्तियों द्वारा दी जानी चाहिए। इनमें कार्यों में लगे अध्यापकों, सेवानिवृत्त प्रोफैसरों और अधिकारियों जिन्होंने ग्रामीण विकास और पंचायती राज में अनुभव प्राप्त किया हो, को भी किया जा सकता है। ट्रेनिंग देने वाले अधिकारियों की ट्रेनिंग भी सुनिश्चित की जानी चाहिए तथा प्रशिक्षण उस समय दिया जाना चाहिए जब खाली समय होता है। इसे प्रत्येक संबंधित अधिकारी, कर्मचारी और चुने हुए प्रतिनिधि के बारे में अनिवार्य बनाने की जरूरत है। 
यदि दिए गए सुझावों को सही मायनों में अपनाया जाता है तो प्रशिक्षण के माध्यम से पंचायती राज को कामयाब बनाया जा सकता है।-प्रो. मोहिंद्र सिंह
 


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