विस्थापन की त्रासदी ने कश्मीरी पंडितों को बेघर किया

punjabkesari.in Thursday, Feb 29, 2024 - 06:01 AM (IST)

1961 की जनगणना के अनुसार कश्मीरी भाषियों की कुल संख्या 19,37818 थी जो 1971 में बढ़कर 19,56115 तक पहुंच गई। 1981 में हुई जनगणना के अनुसार कश्मीरी 30,76398 व्यक्तियों की भाषा थी। (1991 में जनगणना नहीं हुई) ताजा जानकारी के अनुसार इस समय कश्मीरी भाषियों की कुल संख्या (विस्थापित कश्मीरी जन-समुदाय को सम्मिलित कर) अनुमानत: 56,00000 के आसपास है। कश्मीरी पंडितों को अपने वतन से विस्थापित हुए अब लगभग 33 वर्ष हो चले हैं। इन्हें वादी में वापस ले जाने, वापस बसाने और इनमें आत्मविश्वास जगाने के अनेक प्रयास हर स्तर पर हुए हैं और अब भी हो रहे हैं। 

दरअसल,दिक्कत यह है कि 33 वर्षों की इस लम्बी अवधि के दौरान जो विस्थापित पंडित घर छोड़कर देश के विभिन्न शहरों में रहने लग गए, उन्होंने छोटी-मोटी नौकरियां कर लीं,लाचारी में पुश्तैनी घर छोड़कर दूसरी जगहों पर नए घर बना लिए, उनके बच्चे स्कूल-कालेजों में पढऩे लग गए आदि। 

इस बीच बड़े-बुजुर्ग या तो गुजर गए या फिर इस काबिल नहीं रहे कि वे वापस अपने घर जा सकें। विस्थापन के समय जो बालक 4-5 साल का था, वह देखते-देखते लगभग 30 का हो गया। अपने छूटे/बिछुड़े वतन का न तो  उसे कोई मोह (गम)रहा और न ही वापस जाने की कोई ख्वाहिश। वह अपने ‘वर्तमान’ से ही खुश है जिसको बनाने में उसने और उसके मां-बाप ने जाने कितनी तकलीफें झेली हैं! कश्मीरी विस्थापितों के लिए वर्तमान सरकार यदि कोई कार्य-योजना अमल में लाती है, तो उक्त दिक्कतों का सामना उसे करना पड़ सकता है। समाज-विज्ञानियों का कहना है कि विस्थापन की त्रासदी ने कश्मीरी पंडितों को बेघर ही नहीं किया है अपितु उनके सामाजिक सरोकारों को भी आहत कर दिया है।-डा. शिबन कृष्ण रैणा


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