महानगरों में ट्रैफिक की विकट समस्या

punjabkesari.in Friday, Aug 25, 2023 - 04:46 AM (IST)

देश के महानगरों में ट्रैफिक जाम होना आज एक आम बात हो गई है। अक्सर ऐसे जामों में फंस कर आप सभी ने अपना बहुमूल्य समय और ईंधन जरूर गंवाया होगा। देश में बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ-साथ जिस कदर वाहनों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है, ट्रैफिक जाम तो बढ़ेंगे ही। यातायात पुलिस हो या सड़कों पर चलने वाले आम नागरिक-सभी इस समस्या से परेशान हैं। ट्रैफिक की इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए जनता और पुलिस को एक दूसरे का सहयोग करना होगा और जाम से निजात पाने के नए विकल्प ढूंढने होंगे। 

पिछले दिनों अखबार में दिल्ली यातायात पुलिस के विशेष आयुक्त एस.एस. यादव का एक बयान छपा था। जिसमें श्री यादव ने दिल्ली पुलिस के ट्रैफिक स्टाफ को एक नए अंदाज में अपनी जिम्मेदारी निभाने का निर्देश दिया। गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों के पास यह शिकायत आ रही थी कि दिल्ली के ट्रैफिक पुलिसकर्मी बड़ी-बड़ी लग्जरी गाडिय़ों के चालकों से गैर-कानूनी ढंग से चालान के बदले मोटी रकम वसूल रहे थे। दिल्ली के सभी 15 जिलों को निर्देशित करते हुए यादव ने यह बात स्पष्ट कर दी कि यदि किसी भी सिपाही को ऐसी गैर-कानूनी वसूली का दोषी पाया जाएगा तो संबंधित ट्रैफिक इंस्पैक्टर सहित ए.सी.पी. व डी.सी.पी. से भी इसका स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। 

इसकी रोकथाम के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा औचक निरीक्षण भी किए गए। इन निरीक्षणों में यह बात भी सामने आई कि ट्रैफिक पुलिसकर्मी बड़ी-बड़ी गाडिय़ों को रोक कर चैक करने की मंशा से अचानक उनके आगे आ जाते हैं और उन गाडिय़ों को रुकवाते हैं। अचानक ऐसा करने से न सिर्फ दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है, बल्कि जाम भी लग जाते हैं। इसलिए यादव की ओर से यह एक अच्छी पहल है। परंतु ऐसे औचक निरीक्षण केवल चालान दस्ते पर ही सीमित न हों। ट्रैफिक कंट्रोल रूम में बैठने वाले टैलीफोन ऑपरेटर का भी औचक निरीक्षण होना चाहिए। दिन भर के भीड़-भाड़ वाले समय में उन्हें सबसे अधिक फोन कॉल किन-किन इलाकों से आए? क्या उन इलाकों से ऐसी कॉल रोजाना आती हैं? क्या इन कॉलों को संबंधित इलाके के अधिकारियों को भेज कर ही जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है? 

गौरतलब है कि आज के सूचना प्रौद्योगिकी के युग में गूगल मैप्स की मदद से हम कहीं भी जाने से पहले पूरा मार्ग देख कर यह जान लेते हैं कि कितना समय लगेगा, जाम है या नहीं। उसी आधार पर वैकल्पिक मार्ग का चयन कर लेते हैं। ठीक उसी तरह क्या ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी कंट्रोल रूम में बैठ कर, गूगल मैप के जरिए जाम लगे इलाकों की सूचना संबंधित इलाके के पुलिस अफसरों को नहीं दे सकते? यदि ऐसी सूचना संबंधित अधिकारियों को मिल जाए तो उन्हें भी पता चल जाएगा कि उन पर निगरानी रखी जा रही है। उन्हें मौके पर पहुंच कर जाम को खुलवाना पड़ेगा। देश भर की ट्रैफिक पुलिस को इस सुझाव पर गौर करना चाहिए। दिल्ली या अन्य महानगरों में लगने वाले जाम का कारण क्या होता है, इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। आमतौर पर देखा गया है कि सड़कों पर लगने वाले जाम के पीछे बाजारों के सामने गलत पार्किंग करना। उल्टी दिशा से ट्रैफिक का आना। गलत लेन में वाहन चलाना। ट्रैफिक सिग्नल का सही से काम न करना। 

भीड़-भाड़ वाले समय में ट्रैफिक पुलिसकर्मियों का नदारद रहना। बस स्टैंड या मैट्रो स्टेशन पर ऑटो व रिक्शा की भीड़ लगना। सड़कों का रख-रखाव न होना, जैसे कई कारण हैं। यह बात तो समझ आती है कि हर राज्य के पास ट्रैफिक व्यवस्था को संभालने के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं है। परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि स्टाफ की कमी के चलते जाम को बढऩे दिया जाए। सीमित साधनों से भी असीमित काम किए जा सकते हैं अगर मंशा ठीक हो। हर वो बाजार जो मेन रोड को जाम कर सकते हैं, वहां पर ट्रैफिक पुलिस विभाग को सिविल डिफैंस के जवानों की मदद लेनी चाहिए। जो इस बात को सुनिश्चित करें कि जो भी वाहन गलत पार्किंग कर रहा हो वे उसे टोकें, चाहे मैगा माइक की मदद से या सीटी बजा कर। जैसे ही वाहन चालक को सीटी या माइक की आवाज सुनाई देगी वह चौकन्ना हो जाएगा। 

इसके बावजूद भी यदि वो अपना वाहन गलत ढंग से पार्क करता है तो उसकी फोटो खींच कर उसे चालान विभाग में भेजा जाए। इसके अलावा जहां पर भी संभव हो वहां पुलिस की क्रेन नियमित रूप से चक्कर लगाए। जैसा कि एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन पर होता है। गाड़ी उठाए जाने के डर से कोई भी अपना वाहन गलत ढंग से पार्क नहीं करेगा। इसी तरह अधिक भीड़ वाले समय पर ट्रैफिक सिग्नल का नियंत्रण किसी सिपाही के द्वारा हो तो बेहतर होगा। इसका उदाहरण तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में देखा गया। वहां के हर प्रमुख चौराहे पर बने ट्रैफिक संतरी पोस्ट पर ट्रैफिक सिग्नल का नियंत्रण करने वाला स्विच लगा हुआ है। जिसे वहां बैठा सिपाही ट्रैफिक की मात्रा के अनुसार चलाता है। 

जिस भी दिशा में जाने वाले ट्रैफिक की मात्रा अधिक होती है वहां की ‘हरि बत्ती’ की अवधि बढ़ाई जाती है। इस तरह बेवजह ट्रैफिक जाम नहीं होता। जरा सोचिए यदि भीड़-भाड़ वाले समय में ऐसे सिग्नल स्वचालित हों तो न सिर्फ जाम लगेगा बल्कि जल्दबाज़ी में लोग लाल बत्ती को पार भी करने लगेंगे, जो कि  खतरनाक साबित होगा। देश भर की ट्रैफिक पुलिस को ऐसे कुछ नायाब तरीकों की खोज करनी होगी जिससे ट्रैफिक जाम से छुटकारा पाया जा सकेगा। वरना वाहन चालक और ट्रैफिक पुलिस एक-दूसरे को ही दोष देते रहेंगे और समस्या का हल कभी नहीं निकल पाएगा।-रजनीश कपूर
 


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