जहरीली मिट्टी : सिर्फ फसलों का नहीं, नस्लें बचाने का मसला
punjabkesari.in Wednesday, Dec 31, 2025 - 05:47 AM (IST)
‘पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत’ - गुरु नानक देव जी के ये कालजयी शब्द हमें प्रकृति के महत्व से जोड़ते हैं। हमारा राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् भी भारत को बहती नदियों और हरी-भरी फसलों से लहलहाते खेतों के देश के रूप में नमन के लिए प्रेरित करता है। विडंबना यह है कि जब देश वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ मना रहा है, तो वहीं दूसरी ओर हमारे पैरों तले जमीन एक बेहद भयावह कहानी बयां कर रही है। जो मिट्टी कभी देश की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण समृद्धि की आधारशिला थी, वह आज थकी है, खुराक के नाम पर खतरनाक रसायनिक खाद की बेतहाशा खपत से धरती का सीना छलनी है। यह सच्चाई भारत की पहली हरित क्रांति के केंद्र रहे पंजाब में साफ दिखाई देती है।
सड़कों, गगनचुंबी इमारतों, कारखानों और रोजगार की दौड़ एक हद तक जरूरी है, पर इस दौड़ की होड़ में हम एक बुनियादी सच भूल गए। प्रदूषित गैस चैंबर से ढका नील-गगन, जहरीला जल-थल फसलों, इंसानों, पशु-पक्षियों व सूक्ष्म जीवों के जीवन से खिलवाड़ है। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण अब चेतावनियां नहीं, बल्कि जहरीले भूजल, गिरती कृषि उत्पादकता और बढ़ते रोगों के रूप में हमारी रोजमर्रा की सच्चाई बन चुके हैं। स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार आज हमारी ही नीतिगत सुस्ती की परीक्षा ले रहा है।
पंजाब के ताजा चिंताजनक आंकड़े : केंद्रीय भूजल बोर्ड की 2025 की रिपोर्ट का निष्कर्ष बेहद चिंताजनक हैं। पंजाब देश के सबसे अधिक प्रभावित राज्य के तौर पर सामने आया है। मानसून के बाद लिए गए पानी के नमूनों में से 62.5 प्रतिशत में यूरेनियम की मात्रा निर्धारित सीमा 30 पी.पी.बी. (पार्ट्स प्रति बिलियन) से अधिक पाई गई, जबकि 2024 में 32.6 प्रतिशत नमूनों में यूरेनियम की मात्रा अधिक थी। एक ही वर्ष में जहरीले पानी के नमूनों में 91.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी चौंकाने वाली है। 23 में से 16 जिले प्रदूषित श्रेणी में हैं, संगरूर और बठिंडा के जल में यूरेनियम का स्तर 200 पी.पी.बी. से भी अधिक दर्ज किया गया। यह केवल पर्यावरण की समस्या नहीं, बल्कि जन-स्वास्थ्य आपातकाल है। यूरेनियम किडनी रोग और कैंसर से जुड़ा है। नाइट्रेट और फ्लोराइड की अधिकता से ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ और हड्डियों की बीमारियां बढऩे का खतरा है। पानी का खारापन और सोडियम कार्बोनेट उपजाऊ जमीन को बंजर बना रहे हैं। रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल एक बड़े संकट का संकेत है।
पंजाब में फॢटलाइजर्स की खपत 247.61 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर, राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है। कीटनाशकों की 77 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खपत से पंजाब के किसान देश के सबसे बड़े खपतकारों में शामिल हैं। जो रसायनिक खादें कभी भरपूर पैदावार लाती थीं, आज मिट्टी की जैविक कार्बन घटा रही हैं, सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर रही हैं, खाद्य शृंखला को प्रदूषित कर रही हैं। फॢटलाइजर्स सबसिडी का बोझ 2 लाख करोड़ रुपए सालाना से अधिक है। जहरीले हवा-पानी के बीच विकसित भारत की नींव बीमार मिट्टी पर नहीं टिक सकती।
बङ्क्षठडा, मानसा और लुधियाना जैसे जिलों में 60 प्रतिशत मिट्टी के नमूनों में जहरीले कीटनाशक अवशेष खेतों तक सीमित नहीं, बल्कि पानी और भोजन के जरिए शरीर में प्रवेश कर रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर कर रहे हैं। आने वाली नस्लों के खून में हम जहर पहले से ही घोल रहे हैं।
रैगुलेटरी सिस्टम ठप्प : भारत की कीटनाशक नियंत्रण प्रणाली पुराने दौर में अटकी है। 1968 का कीटनाशक एक्ट और 1971 के नियम वर्तमान समय के मुताबिक नहीं हैं। 2020 के कीटनाशक प्रबंधन विधेयक में भी किसान सुरक्षा, स्पष्ट लेबङ्क्षलग मानक, शिकायत निवारण व्यवस्था और छोटे किसानों के लिए अनिवार्य सुरक्षा उपकरण जैसे अहम मसले छूट गए। किसानों में जागरूकता व ट्रेङ्क्षनग के हालात भी ङ्क्षचताजनक हैं। 15 करोड़ से अधिक किसानों वाले देश में बीते 3 दशकों में 6 लाख से भी कम किसानों को कीट प्रबंधन की ट्रेङ्क्षनग मिली है, जबकि यह सिर्फ फसलों का नहीं, नस्लें बचाने का मसला है।
मिट्टी में जीवन की नींव : भविष्य की खेती को जांच-आधारित, जैव-विज्ञान पर केंद्रित व डिजिटल रूप से सशक्त करना होना होगा। सॉयल हैल्थ कार्ड स्कीम ने साबित किया है कि आंकड़ों पर आधारित पोषक तत्व प्रबंधन को कारगर ढंग से लागू करना जरूरी है।
पंजाब को एक डिजिटल सॉयल हैल्थ मिशन की जरूरत है, जो सैटेलाइट चित्रों, आॢटफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.) एनालिसिस, मौसम आधारित मॉडलों और सॉयल सैंसिटिविटी को जोड़कर हर खेत-स्तर पर सलाह दे सके। किसान उत्पादक संगठनों, ग्रामीण युवाओं और महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित सॉयल टैस्ट लैब्स में मिट्टी की नियमित जांच जरूरी है।
दशकों की रासायनिक खेती ने मिट्टी में उन सूक्ष्मजीवों के नैटवर्क को तोड़ दिया है, जो पोषक तत्व चक्र, नमी संरक्षण और फसलों की सहनशीलता के लिए बहुत उपयोगी हैं। ‘इंटीग्रेटिड न्यूट्रिएंट्स मैनेजमेंट’, जिसमें रासायनिक, जैविक और जैव-आधारित इनपुट्स को वास्तविक जांच के आधार पर इस्तेमाल किया जाए तो खेती पर न केवल लागत खर्च घटाया जा सकता है, बल्कि मिट्टी से पोषक तत्वों का रिसाव कम कर उर्वरता लंबे समय तक बढ़ाई जा सकती है। बॉयोस्टीमूलैंट्स, जैसे कि समुद्री शैवाल अर्क, प्रोटीन हाइड्रोलिसेट और लाभकारी सूक्ष्मजीव, जैसे पर्यावरण-अनुकूल इनपुट मिट्टी को नुकसान पहुंचाए बगैर पोषक तत्व बढ़ाने के साथ उत्पादकता भी बढ़ाते हैं।
रासायनिक निर्भरता से जीवित मिट्टी की राह : पंजाब की कृषि का नवीनीकरण टुकड़ों में नहीं, बल्कि एक समन्वित राष्ट्रीय मिशन के रूप में होना चाहिए। नीतिगत प्रोत्साहन उत्पादन के साथ मिट्टी की गुणवता बहाली पुरस्कृत करें-कार्बन क्रैडिट और जैविक कार्बन सुधार से जुड़ी सबसिडी का लाभ किसानों को मिले। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई.सी.ए.आर.) कृषि विश्वविद्यालयों और आई.आई.टी. को फसल मुताबिक जैविक समाधान विकसित करने होंगे। कृषि-कचरे, सी-वीड यानी समुद्री शैवाल और जैविक अवशेषों पर आधारित ग्रामीण जैव-अर्थव्यवस्था केंद्र न केवल नए रोजगार पैदा करेंगे, बल्कि खेती को स्वच्छ व सस्ते इनपुट भी उपलब्ध कराएंगे। 60 के दशक में हरित क्रांति से देश को खाद्य सुरक्षा देने वाले पंजाब को आज हरित क्रांति 2.0 का नेतृत्व भी करना होगा, जो जलवायु-सहनशील व स्वस्थ मिट्टी पर आधारित हो। मिट्टी स्वस्थ होगी तो किसान समृद्ध होगा, खपतकार की सेहत सुरक्षित रहेगी। मिट्टी बचेगी, तभी भविष्य बचेगा।(लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)
