आतंकवाद के खिलाफ ‘कड़ी कार्रवाई’ हो

Monday, Feb 18, 2019 - 04:30 AM (IST)

जम्मू -कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले से पूरा भारत आज दुखी है और आक्रोश में है। इस त्रासदी के समय हम सब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के साथ हैं। देशवासी चाहते हैं कि आतंकी वारदात पर कड़़ी कार्रवाई हो। पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कड़ी कार्रवाई तो पहले भी होती रही है। 

प्रश्न है कि जब सुरक्षाबलों का काफिला चलता है, तो उस मार्ग को पहले सुरक्षित कर दिया जाता है। जब अढ़ाई हजार जवानों का आधा किलोमीटर लंबा काफिला एक जगह से दूसरी जगह सड़क मार्ग से जा रहा था तो क्या उस पर ड्रोन से नजर, हैलीकॉप्टर से निगरानी रखते हुए सुरक्षा कवच नहीं होना चाहिए था ताकि अगल-बगल से कोई अनधिकृत गाड़ी या बारूद से भरी कार, बस द्वारा किसी तरह की संदिग्ध गतिविधि न हो? आश्चर्य है कि इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक का प्रयोग कैसे कर लिया गया? कैसे इतना विस्फोटक अति संवेनशील क्षेत्र में आतंकवादी तक पहुंचा? हमारी रक्षा और गृह मंत्रालय की खुफिया एजैंसियां क्या कर रही थीं? 

काबू कैसे पाया जाए
अब सवाल उठता है कि देश में आतंकवाद पर कैसे काबू पाया जाए। हमारा देश ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों का आतंकवाद के विरुद्ध एकतरफा सांझा जनमत है। ऐसे में सरकार अगर कोई ठोस कदम उठाती है तो देश उसके साथ खड़ा होगा। उधर तो हम सीमा पर लडऩे और जीतने की तैयारी में जुटे रहें और देश के भीतर आई.एस.आई. के एजैंट आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते रहें तो यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती। मैं कई वर्षों से लिखता रहा हूं कि देश की खुफिया एजैंसियों को इस बात की पुख्ता जानकारी है कि देश के 350 से ज्यादा शहरों और कस्बों की सघन बस्तियों में आर.डी.एक्स., मादक द्रव्यों और अवैध हथियारों का जखीरा जमा हुआ है जो आतंकवादियों के लिए रसद पहुंचाने का काम करता है। प्रधानमंत्री को चाहिए कि इसके खिलाफ एक ‘आप्रेशन क्लीन स्टार’ या ‘अपराधमुक्त भारत अभियान’ की शुरूआत करें तथा पुलिस व अद्र्धसैनिक बलों को इस बात की खुली छूट दें, जिससे वे इन बस्तियों में जाकर व्यापक तलाशी अभियान चलाएं और ऐसे सारे जखीरों को बाहर निकालें। 

आतंकवाद को रसद पहुंचाने का दूसरा जरिया है हवाला कारोबार। वल्र्ड ट्रेड सैंटर के तालिबानी हमले के बाद से अमरीका ने इस तथ्य को समझा और हवाला कारोबार पर कड़ा नियन्त्रण कर लिया। नतीजतन तब से आज तक वहां आतंकवाद की कोई घटना नहीं हुई। जबकि भारत में पिछले 23 वर्षों से हम जैसे कुछ लोग लगातार हवाला कारोबार पर रोक लगाने की मांग करते आए हैं, पर यह भारत में बेरोक-टोक जारी है। इस पर नियंत्रण किए बिना आतंकवाद की श्वास नली को काटा नहीं जा सकता। तीसरा कदम संसद को उठाना है ऐसे कानून बनाकर जिनके तहत आतंकवाद के आरोपित मुजरिमों पर विशेष अदालतों में मुकद्दमे चला कर 6 महीनों में सजा सुनाई जा सके। जिस दिन मोदी सरकार ये 3 कदम उठा लेगी उस दिन से भारत में आतंकवाद का बहुत हद तक सफाया हो जाएगा। 

कोई कारगर उपाय नहीं
अगर आतंकवाद पर राजनीतिज्ञों की दबिश की समीक्षा करें तो यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि सरकारें अब तक आतंकवाद के खिलाफ  कोई कारगर उपाय कर नहीं पाई हैं। राजनीतिक तबका आतंकवाद को व्यवस्था के खिलाफ एक अलोकतांत्रिक यंत्र ही मानता रहा है और बेगुनाह नागरिकों की हत्याओं के बाद यही कहता रहा है कि आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। होते-होते कई दशक बीत जाने के बाद भी विश्व में आतंकवाद के कम होने या थमने का कोई लक्षण हमें देखने को नहीं मिलता। 

नए हालात में जरूरी हो गया है कि आतंकवाद के बदलते स्वरूप पर नए सिरे से समझना शुरू किया जाए। हो सकता है कि आतंकवाद से निपटने के लिए बल प्रयोग ही अकेला उपाय न हो। क्या उपाय हो सकते हैं, उनके लिए हमें शोधपरक अध्ययनों की जरूरत पड़ेगी। अगर सिर्फ  70 के दशक से अब तक यानी पिछले 40 साल की अपनी सोच, विचारदृष्टि, कार्यपद्धति पर नजर डालें तो हमें हमेशा तदर्थ उपायों से ही काम चलाना पड़ा है। इसका उदाहरण कंधार विमान अपहरण के समय का है जब विशेषज्ञों ने हाथ खड़े कर दिए थे कि आतंकवाद से निपटने के लिए हमारे पास कोई सुनियोजित व्यवस्था ही नहीं है। 

एकजुटता और ठोस कदम
यदि विश्वभर के शीर्ष नेतृत्व एकजुट होकर कुछ ठोस कदम उठाएं तो उम्मीद है कि हम आतंकवाद के साथ भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, शोषण और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का भी समाधान पा लें। देश इस समय गंभीर हालात से गुजर रहा है। मातम की इस घड़ी में रोने की बजाय सीमा सुरक्षा पर गिद्धदृष्टि और दोषियों को कड़ा जवाब देने की कार्रवाई की जानी चाहिए। मगर यह भी याद रहे कि हम जो भी करें वह दिलों में आग और दिमाग में बर्फ  रखकर करें।-विनीत नारायण

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