सम्पूर्ण साक्षरता ‘स्वप्न या संकल्प’

Tuesday, Sep 08, 2020 - 04:39 AM (IST)

साक्षरता किसी भी समाज, राष्ट्र के विकास की मार्ग गाथा तय करती है, साक्षरता का अर्थ होता है-पढऩे-लिखने की योग्यता या क्षमता जबकि दूसरी ओर जब व्यक्ति को अक्षरों का ज्ञान नहीं होता तो वह निरक्षर कहलाता है, साक्षरता किसी भी समाज का अध्ययन करने का एक व्यापक बिंदु होती है जिससे पूरे समाज की दशा व दिशा का अध्ययन हो जाता है। 

पुराना समय साधारण और सरल था तब न तो जीवन इतना गतिशील था और न ही जीवन जीने के साधन इतने जटिल थे, जरूरतें बहुत ही सीमित थीं-दो वक्त की रोटी कमाकर व्यक्ति चैन की नींद सो जाता था लेकिन आज का युग आधुनिकता वादी युग है यहां साक्षर होना आवश्यक है। अन्यथा आप समाज व समय के साथ नहीं चल सकते, यह स्पष्ट है क्योंकि वर्तमान समय में मनुष्य की इच्छाओं और आकांक्षाओं ने आकाश की सीमाओं को चुनौती दी है। ऐसे में एक व्यक्ति का पढऩे-लिखने से वंचित रह जाना एक अभिशाप के समान है क्योंकि एक अनपढ़ व्यक्ति न तो तेज रफ्तार युग के साथ चल पाएगा और न ही उसकी सोच की सीमा विस्तृत हो पाएगी। 

साक्षरता मानव की प्रगति और विकास का मूल मंत्र है। अनपढ़ और निरक्षर व्यक्ति अपना ही भला नहीं कर सकता तो स्पष्ट है कि वह समाज और राष्ट्र के किस काम आएगा। निरक्षर व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में काफी हद तक असमर्थ होगा और यह एक चिंतनीय विषय है। बात अगर देश की पूर्व स्थिति की करें तो स्वतंत्रता प्राप्त करने से पूर्व हमारे देश की जनसंख्या में अनपढ़ लोगों की संख्या बहुत अधिक थी, किन्तु सरकार के अथक प्रयासों से आज समाज हर व्यक्ति को शिक्षित करने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। घर-घर और गांव-गांव शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है जिससे हर व्यक्ति के बौद्धिक स्तर में उन्नति हो। 

कोई भी व्यक्ति अंगूठा छाप न रहे, उसे कोई ठग न सके। हर वर्ग का व्यक्ति अपनी अच्छाई-बुराई समझे और अपनी दैनिक जीवनचर्या में सूझ-बूझ के साथ फैसले ले। उसकी दृष्टि का विस्तार हो। उसे अंधविश्वासों और शोषण से मुक्ति मिले क्योंकि शिक्षा एक वरदान है, इसे हासिल करना सबका अधिकार है तो दूसरी तरफ आधुनिक समाज में निरक्षरता को एक अभिशाप माना जाता है। आजकल विद्यालयों, नि:शुल्क शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा एवं स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित कर हमारे देश के कई राज्यों ने 100 प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को हासिल कर लिया है। किन्तु इस क्षेत्र में अभी बहुत अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। 

भारत सरकार द्वारा अभी हाल ही में नई शिक्षा नीति को अपनाया गया है जोकि एक आदर्श रूप की शिक्षा प्रणाली आने वाले समय में सिद्ध होने वाली है, नई शिक्षा नीति आने के बाद देश की साक्षरता दर में जरूर एक नया सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेगा, साक्षरता के महत्व को इस बात से अधिक समझा जा सकता है कि पूरे विश्व में 8 सितम्बर अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसकी शुरूआत 17 नवम्बर 1965 को यूनेस्को में हुई थी और सबसे पहले यह दिवस 1966 में मनाया गया था। अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने की घोषणा का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत व समुदाय में सामाजिक रूप से साक्षरता के महत्व को बढ़ाना है। 

साक्षरता आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से किसी भी देश का आधार होती है, समाज जितना अधिक साक्षर होगा उतना ही अधिक वहां के समाज और देश का विकास होता है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के माध्यम से साक्षरता को समझने की कोशिश करें तो भारत में साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है (2011), जोकि 1947 में मात्र 18 प्रतिशत थी। भारत की साक्षरता दर विश्व की साक्षरता दर 84 प्रतिशत से कम है। 

भारत में साक्षरता के मामले में पुरुष और महिलाओं में काफी अंतर है, जहां पुरुषों की साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत है, वहीं महिलाओं में इसका प्रतिशत केवल 65.46 है। महिलाओं में कम साक्षरता का कारण परिवार और आबादी की जानकारी की कमी है। भारत में साक्षरता पहले की अपेक्षा काफी बेहतर हुई है। जहां तक मेरा मानना है कि आने वाले 15 से 20 सालों में भारत की वैश्विक साक्षरता दर 99.50 प्रतिशत होने की संभावना है लेकिन उसके लिए सर्वशिक्षा अभियान, शौचालय की व्यवस्था, मिड-डे मील योजना, मुफ्त शिक्षा जैसी अनेक योजनाओं को क्रियान्वयन करने की आवश्यकता है। साक्षर भारत का यह आदर्श स्वप्न तब तक पूरा नहीं हो सकता है, जब तक सरकार के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान न दे, जब एक विकसित व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विकास के लिए प्रयास करेगा तो संभवत: ही व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास संभव है, तभी सम्पूर्ण साक्षरता का यह संकल्प हासिल किया जा सकेगा। 

भारत में साक्षरता के क्षेत्र में ज्यादा उत्थान न होने का सबसे बड़ा कारक जनसंख्या व गरीबी है क्योंकि जब तक जनसंख्या पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया जाता तब तक संसाधनों की पूर्ति एकरूपता से सभी के लिए नहीं की जा सकती जिसके परिणामस्वरूप गरीबी का जन्म होता है जोकि अशिक्षित वर्ग को बढ़ावा देती है, साक्षर भारत का स्वप्न जब एक संकल्प का रूप लेगा तभी भारत आने वाले समय में एक साक्षर व सशक्त भारत कहलाएगा, लेकिन इस दिन के लिए सभी भारतवासियों को अपने हिस्से का कत्र्तव्य सम्पूर्ण जिम्मेदारी के साथ निभाना ही होगा।-प्रो. मनोज डोगरा
 

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