नशों से समाप्त होती आज की जवानी

punjabkesari.in Saturday, Jul 27, 2024 - 06:03 AM (IST)

शराब से लेकर चरस, अफीम, गांजा आदि का नशा करने की आदत समूचे विश्व में व्याप्त है परन्तु अलग-अलग देशों में और क्षेत्रों में इसकी मात्रा में भिन्नता है। भारत में भी नशे का संसार काफी फैला हुआ है। परन्तु पंजाब में तो नशे ने सीमाएं पार कर रखी हैं। पंजाब में नशे को लेकर कुछ ही वर्ष पूर्व एक फिल्म भी बनी जिसका नाम था ‘उड़ता पंजाब’। पाकिस्तान से लगती सीमाओं पर कंटीली तारें कई दशकों से जीरो लाइन पर बनने के स्थान पर भारत की सीमाओं के अंदर बांधी गई हैं, कहीं-कहीं पर तो ये तारें जीरो लाइन से एक किलोमीटर से भी अधिक भारत की तरफ देखी जाती हैं। यदि इन तारों को जीरो लाइन पर ही लगा दिया जाए तो नशीले पदार्थों की तस्करी भी रोकी जा सकती है। 

पाकिस्तान से आने वाला नशा एक और मायने में बड़ा भयंकर है जिसे ‘चिट्टा’ कहा जाता है। यह ‘चिट्टा’ वास्तव में एक सिंथैटिक नशा है जो अत्यन्त हानिकारक रासायनिक पदार्थों से बनता है। इसका नशा शरीर के अंदर सारे तंत्रों को तीव्र गति से हानि पहुंचाता है। इन्हीं कारणों से पंजाब का नशा सारी दुनिया में फैले नशे की समस्या से अधिक गम्भीर है। नशे के कारण व्यक्ति सबसे पहले तो अपने घर का ही धन बर्बाद करता है। धन पर रोक लगती है तो वह सबसे पहले अपने घर में ही चोरियां शुरू करता है। इसके बाद नशे का प्रभाव समाज को भी झेलना पड़ता है क्योंकि नशा करने वाला व्यक्ति समाज में भी अपराध का खिलौना जल्दी बन जाता है। नशे के कारण व्यक्ति किसी व्यापार या नौकरी के लायक भी नहीं रहता। यह बेरोजगारी और अपराध तीसरे स्तर पर सरकार के लिए भी एक समस्या बन जाते हैं। 

पुलिस, प्रशासन, समाजसेवा आदि जैसे सरकारी विभागों को सामूहिक रूप से एक नीति का निर्माण करना चाहिए कि जितना संघर्ष उन्हें  नशा करने वाले व्यक्ति के अपराधों के प्रबंधन में करना पड़ता है, उससे कम प्रयास से नशे के वितरण प्रणाली को ही क्यों न समाप्त किया जाए। इसके लिए सरकारी स्तर पर एक मजबूत और लक्ष्यबद्ध इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। नशे की आदत डालने के बाद हमारे समाज को जितना संघर्ष करना पड़ता है, यदि नशे के विरुद्ध चेतावनी देने के प्रयास छोटी अवस्था के बच्चों में ही पूरी चेतना जागृत करने के उद्देश्य से प्रारम्भ कर दिए जाएं तो इसके बड़े सुंदर परिणाम निकल सकते हैं। इसके लिए स्कूलों के अध्यापकों और धार्मिक स्थलों के विद्वानों को विशेष प्रयास प्रारम्भ करने चाहिएं। उससे भी पहले ये प्रयास घरों में ही अपने बच्चों की चेतना जागृत करने के लिए माता-पिता तथा घर के अन्य वृद्धजनों के द्वारा प्रारंभ कर दिए जाने चाहिएं। 

सामाजिक संस्थाएं घर-घर अभियान चलाकर छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के माध्यम से तथा वार्तालाप के माध्यम से छोटे और युवा होते बच्चों की नशा के विरुद्ध चेतना जागृत करें। मैं स्वयं जब भी किसी शिक्षण संस्थान में जाता हूं तो अपने उद्बोधन में पर्यावरण सुरक्षा, माता-पिता की सेवा और नैतिकता की अनेकों बातों के बीच नशों के विरुद्ध अवश्य ही चर्चा करता हूं और बच्चों से भविष्य में नशा न करने का संकल्प करवाता हूं। बच्चों पर स्कूलों और धर्मस्थलों से मिली शिक्षा की गहरी छाप पड़ती है। इसलिए हम सबको मिलकर नशों के विरुद्ध चेतना को अपने बच्चों की शिक्षा का अंग बना देना चाहिए, नहीं तो इन नशों के कारण हमारे समाज की जवानी पूरी तरह से समाप्त होने के कगार पर पहुंच जाएगी।

स्कूलों में बच्चों को लेकर नशे की हानियों के संबंध में डिबेट करवाई जाए, चित्र प्रतियोगिता करवाई जाए, बच्चों के घरों के अनुभवों पर उनके विचार सुने जाएं, बच्चों की गली-गली रैलियां निकाली जाएं और बच्चों को ऐसे अभियानों में खुलकर प्रोत्साहित किया जाए तो आज दिखाई देने में यह छोटा-सा प्रयास कुछ ही वर्षों में पंजाब की तस्वीर बदल सकता है। बच्चे खुद तो प्रेरित होंगे ही बल्कि घर जाकर अपने वृद्धजनों को भी शराब के विरुद्ध सचेत करने का कार्य करते रहेंगे।-अविनाश राय खन्ना(पूर्व सांसद)


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