आज मनुष्य और जानवर में फर्क करना मुश्किल
punjabkesari.in Tuesday, Mar 07, 2023 - 06:15 AM (IST)
वैज्ञानिक नजरिए वाले संवेदनशील तथा संघर्षशील योद्धे मुश्किल हालातों में भी आशावाद का दामन नहीं छोड़ते। हालांकि देश तथा पंजाब की अंदरूनी स्थिति बड़े खतरों से घिरी हुई है।साधारण से दिखने वाले झगड़े या मनमुटाव के कारण जब कभी कोई व्यक्ति किसी को गाजर, मूली की तरह काटकर मौत के मुंह में धकेल देता है या शारीरिक तौर पर उसे अपंग कर देता है तो उस समय मनुष्य तथा जानवर में फर्क करना भी मुश्किल हो जाता है। सम्पत्तियों के झगड़े में मां-बेटा, बाप-बेटा, बहन-भाई शामिल हैं।
एक बेटा अपने मां-बाप का कत्ल कर देता है। नशों, लूट-खसूट, छीना-झपटी, फिरौती तथा डाकों का बाजार गर्म है। सभी सरकारी दावों के बावजूद पंजाब में नशा तस्करों तथा रेत-बजरी माफिया की चांदी है। 90 प्रतिशत लोग अपने साथ हुई किसी ज्यादती के मामले में पुलिस के पास शिकायत ही नहीं करते क्योंकि वे गैंगस्टरों से भयभीत रहते हैं। समाज का एक बड़ा हिस्सा भारी तनाव, मायूसी तथा बेबसी का जीवन जी रहा है। बेरोजगारी के कारण नौजवान युवक-युवतियां विदेशों का रुख कर रहे हैं।
फिक्र वाली बात है कि सत्ता पर काबिज लोग इन हालातों के बारे में चुप्पी साधे बैठे हैं या फिर अपना खेल खेलने में मस्त हैं। किसी योग्य शिक्षा तथा रोजगार के लिए भटकता नौजवान अपना पेट भरने के लिए किसी भी गैर कानूनी और असामाजिक कार्य करने के लिए अपने आप ही तैयार हो जाता है। सामाजिक शांति, सद्भावना तथा भाईचारे के धागे टूट गए लगते हैं। सवाल समाज के बहुपक्षीय विकास से इंकार करने का नहीं बल्कि फिक्र इस बात की है कि तरक्की का फल सभी लोगों तक पहुंच नहीं रहा।
विज्ञान की नई तकनीकों के बावजूद बहुसंख्यक आबादी का बचपन मिट्टी में मिल रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं तथा सामाजिक सुरक्षा की कमी दिखाई देती है। पेट भरने के लिए इंसान दर-दर की ठोकरें खा रहा है। विकास की इस धारा को जांचने की सख्त जरूरत है। मानव की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के स्थान पर उसे तबाह करने वाले बमों, मिसाइलों, घातक हथियारों, जहरीली गैसों को पैदा करने वाले दानवों का आज बोलबाला है।
व्यक्ति को खुश, उत्साहजनक, दयावान तथा सहनशील बनाने के स्थान पर आज धर्म का दुरुपयोग हो रहा है। समाज के अंदर नफरत फैलाने की कोशिश की जा रही है। दूसरे धर्मों तथा अल्पसंख्यक लोगों के प्रति जहर उगलने का काम चल रहा है। धर्म का इस्तेमाल सत्ता प्राप्ति के लिए हो रहा है। इस पर नकेल कसने की सख्त जरूरत है। भ्रष्टाचार और धोखेबाजी का सामना कर रहे लोगों को यह जानने की जरूरत है कि ऐसी स्थितियों को पैदा करने के पीछे कौन सी ताकतों का हाथ है।
वर्तमान त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोग सत्ता का सहारा लेकर कुछ भी प्रचार के माध्यम से यह सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं कि उपरोक्त दुखांत के अंत का कोई फार्मूला उपलब्ध नहीं है। इसीलिए हमें ऐसे हालातों में अपना जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। अगर कोई इस स्थिति को बदलने के लिए विरोध करता है तो उसे देशद्रोही कहा जाता है। उसे विकास तथा शांति के लिए बड़ा खतरा माना जाता है।
दर्द झेल रही जनता का ध्यान भटकाने के लिए कभी धर्म खतरे में है, का शोर मचाया जाता है तो कभी राष्ट्रीयता का प्रचार कर देश के प्रति लोगों की वफादारी का इम्तिहान लिया जाता है। अलग-अलग धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं तथा राष्ट्रीयता से संबंधित लोग सदियों से इक्ट्ठे रह रहे हैं। लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ उकसा कर बेमतलब के विवाद खड़े किए जा रहे हैं। क्या कभी कोई मजदूर, किसान, डाक्टर, शिक्षक या कोई अन्य कर्मचारी अपने कार्य के माध्यम से समाज में की जा रही सेवा की इश्तिहारबाजी करता है? मगर आज के नेता कभी दरियाई पुल, सड़क, क्लीनिक या स्कूल का उद्घाटन कर अपने निजी लाभ के लिए लोगों के धन का इस्तेमाल करते हैं।
यदि हम चाहते हैं कि समाज में फैल रही अराजकता, ङ्क्षहसा, साम्प्रदायिकता तथा गैर कानूनी गतिविधियों का अंत हो तो इस बारे हमें गंभीर मंथन करने की जरूरत है। पीड़ित लोगों के पास जिम्मेदार तत्वों की निशानदेही कर उनके खिलाफ संघर्ष करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रह जाता। यदि इसमें कोई देरी या कोताही की गई तो स्थिति इतनी गंभीर हो सकती है कि इसे सुधारने के लिए फिर कभी सोचने का वक्त ही नहीं मिलेगा। इसलिए खात्मे के ङ्क्षबदू पर पहुंचने से पहले कोई उपाय क्यों न ढूंढा जाए। -मंगत राम पासला
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