आज कांग्रेस के पास नेहरू और इंदिरा जैसे प्रतिभाशाली नेता नहीं

punjabkesari.in Saturday, Sep 02, 2023 - 04:21 AM (IST)

हमारी जैसी जटिल लोकतांत्रिक राजनीति में एक मजबूत विपक्षी गठबंधन की मांग एक परम आवश्यकता है लेकिन हमारे पेशेवरों, वैज्ञानिकों और डाक्टरों की गुणवत्ता को देखते हुए राजनीति को छोड़ कर अधिकांश क्षेत्रों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस के पास बहुत से प्रतिभाशाली जनउत्साही व्यक्ति नहीं हैं। राहुल गांधी का मामला लीजिए अगर हम उन्हें जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक के पुराने नेताओं की तुलना में आंकें तो वह एक औसत दर्जे के नेता प्रतीत होते हैं। 

यह भी उतना ही चिंताजनक है कि हमारे सांसदों के कुछ वर्ग छोटी-छोटी बातों में देश के बहुमूल्य संसाधनों और समय को बर्बाद कर रहे हैं और हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों के सुचारू संचालन में बाधाएं पैदा कर रहे हैं। बेशक, प्रतिस्पर्धी चिल्लाहट और बहिर्गमन के माहौल में देश की समस्याओं को गायब नहीं किया जा सकता है। लोगों के सामने आने वाली समस्याओं पर गंभीरता से और निष्पक्षता से चर्चा की जानी चाहिए और इसे हमेशा पार्टी और साम्प्रदायिक कोणों से नहीं देखा जाना चाहिए। हमारे विधायकों में जनता के मामलों को लेकर गंभीरता का अभाव गंभीर मामला है। वास्तव में आज देश की असली समस्या छोटे-मोटे राजनेता हैं जो आत्मकेंद्रित हैं और अपने प्रतिद्वंद्वियों पर ऐसा करने का आरोप लगाते हुए अपनी निजी सम्पत्ति का निर्माण करते दिखाई देते हैं। 

हालांकि जब राष्ट्रीय खजाने से अतिरिक्त लाभ प्राप्त करने की बात आती है तो वे एक हो जाते हैं। यह कोई रहस्य नहीं है कि इस व्यवस्था में वे खुद को अधिक वेतन और सुविधाएं देने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं। यदि हम अपने अधिकांश विधायकों के व्यवहार पर नजर डालें तो यही पैटर्न रहा है। विभिन्न राजनीतिक लोगों का यह सोचना गलत है कि आम आदमी यह नहीं समझता कि क्या है और कौन, कौन है। वे दिन गए जब लोगों को चाहे शहरी क्षेत्र में हो या गांवों में अपने मतलब के लिए कहीं भी ले जाया जा सकता था। भाजपा इन दिनों चुप रह सकती है और चुपचाप सह सकती है लेकिन यह 1977 की तरह पलटवार कर सकती है जो भारतीय राजनीतिक व्यवहार में एक बड़ा बदलाव है। 

भाजपा की व्यापक उपस्थिति के सामने कांग्रेस के पुनरुद्धार के महत्वपूर्ण मुद्दे पर वापस आते हुए भारतीय लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्षी दल का होना लाजिमी है। नि:संदेह यह सामान्य ज्ञान है कि विपक्ष को स्थायी और आत्म केंद्रित व्यक्तियों द्वारा पुनर्जीवित और कायम नहीं रखा जा सकता है। यह कहना कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के आलिया कदम की निंदा करना नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभालने के 10 महीने बाद मल्लिकार्जुन खरगे ने नई कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सी.डब्ल्यू.सी.) का गठन कर दिया है। उन्होंने पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों पर ध्यान केंद्रित करने और युवाओं और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ कांग्रेस कार्यसमिति का पुनर्गठन करके पार्टी संगठन पर एक व्यक्तिगत मोहर लगा दी है।

सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था सी.डब्ल्यू.सी. गांधी परिवार, मीरा कुमार, अम्बिका सोनी, ए.के. एंटनी, दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गजों से भरी हुई है। के.सी. वेणुगोपाल, जय राम रमेश, अभिषेक सिंघवी, सलमान खुर्शीद, सचिन पायलट, गौरव गोगोई और शशि थरूर जिन्होंने कभी खरगे के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था, जैसे लोग भी इसमें शामिल है। यह कहना मुश्किल है कि कांग्रेस का बहु-प्रतीक्षित पुनर्गठन पार्टी में उम्मीद जगाएगा या नहीं? हालांकि ध्यान स्पष्ट रूप से संगठन पर है और इससे आशावाद का संचार होना शुरू हो गया है। साथ ही फोकस फिर से चुनाव पर है। यह कोई आश्चर्य नहीं कि राहुल गांधी अति सक्रिय मोड में लौट आए हैं। 

जैसा हो सकता है वैसा रहने दें। अब समय आ गया है कि हमारे लोकतंत्र को लोगों की भलाई के लिए कुशलतापूर्वक और पारदर्शी तरीके से कार्य करने के लिए एक व्यवहार्य प्रणाली विकसित की जाए। आने वाले वर्षों में सुनामी जैसे राजनीतिक झटके से निपटने का यह एकमात्र तरीका है। इस उद्देश्य के लिए चेतावनी प्रणाली राष्ट्रीय दीवार पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यह सत्तारूढ़ दलों पर है कि वे राजनीति के लिए सही गति निर्धारित करने के लिए एक दृढ़ विश्वास और साहस दिखाएं। आने वाले महत्वपूर्ण महीनों में कांग्रेस खुद को कैसे विकसित करती है यह दिखाएगा कि राहुल की कांग्रेस हमारे लोकतांत्रिक कामकाज में कार्यात्मक अंतराल को कैसे पाटती है और हमारे संस्थानों को हमारे समाज के सभी वर्गों के व्यापक हित के लिए काम करने की अनुमति देती है।-हरि जयसिंह
 


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