भारतीयों को बांटने के लिए अंग्रेजों ने बनाए थे धर्म के आधार पर कानून

Saturday, Jul 17, 2021 - 05:59 AM (IST)

जब भारत में मुगल शासन अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था और अंग्रेज अपने पैर पसार रहे थे तो ज्यादातर हिंदू और मुस्लिम समाज ने यह स्वीकार कर लिया था कि उन्हें साथ-साथ रहना है। यही वजह थी कि दोनों कौमों ने आजादी की लड़ाई मिलकर लड़ी। 

सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज समझ गए थे कि इन दोनों के मिलकर रहने से उन्हें खतरा है तो उसने इन्हें अलग करने की बहुत सी चालों के साथ यह चाल चली कि हिंदू और मुसलमान को उनके धर्म से संबंधित पर्सनल कानून बनवाने और उन पर ही चलने में मदद की जाए। परिणामस्वरूप हिंदू-मुसलमान अपने को एक-दूसरे से ज्यादा समझदार, काबिल और ताकतवर मानने लगे और जब कभी मौका मिला, आमने-सामने ताल ठोककर खड़े ही नहीं, बल्कि मरने मारने पर उतारू हो गए। 

संविधान की व्यवस्था : हमारे संविधान निर्माता दूरदर्शी थे और उन्होंने समान नागरिक कानून, जो व्यक्तिगत मामलों में भी सब पर लागू हो, बनाए जाने की व्यवस्था कर दी। इस दौरान ङ्क्षहदू कोड बिल लागू हो गया और मुस्लिम समाज को उनके पर्सनल लॉ के मुताबिक चलने की छूट मिल गई। समान नागरिक कानून अधर में लटक गया और गोवा को छोड़कर कहीं और लागू नहीं हो पाया। 

धर्म, जाति, सम्प्रदाय के आधार पर बने व्यक्तिगत कानूनों के स्थान पर सबके लिए एक कानून बनाने की बात को इस उदाहरण से समझना होगा : जैसा कि हमारी सुरक्षा सेनाओं की एक ही यूनिफार्म होती है और वे अपनी यूनिट से पहचाने जाते हैं।  इसी तरह सभी भारतीय एक ही कानून से जाने जाएं, यही समान नागरिक संहिता है। मामला कोई भी हो, जैसे कि विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता, उत्तराधिकार, जमीन-जायदाद का बंटवारा, जिनका अभी तक धार्मिक आधार पर बने कानूनों से फैसला होता है, उसकी बजाय इनका निपटारा एक ऐसे कानून से हो जो सभी धर्मों के लोगों के लिए एक समान हो। 

इसका सबसे अधिक लाभ महिलाओं, अनुसूचित जाति, जनजाति, दलित और पिछड़े वर्गों को मिलेगा जिनके साथ धार्मिक और सामाजिक आधार पर भेदभाव, अन्याय और उत्पीडऩ आज से नहीं, आजादी से पहले से लेकर अब तक होता रहा है। जो फिरकापरस्त लोग धार्मिक लबादा ओढ़कर लोकतंत्र, प्रजातंत्र की दुहाई देते नहीं थकते, उनके चेहरे से नकाब उतारा जाएगा और सही अर्थ में देश का हर व्यक्ति सबसे पहले भारतीय और बाद में किसी धर्म के आधार पर जाना जाएगा, प्रतिष्ठित होगा और विश्व में उसकी यही पहचान होगी। वास्तविक लोकतंत्र स्थापित होगा और धर्म की दुहाई देकर ढकोसला करने वालों की पहचान करना आसान होगा। विकसित और विकासशील देशों ने समान नागरिक संहिता को अपने यहां लागू किया और आज दुनिया का सिरमौर बने हुए हैं। 

जब सबके अधिकार समान होंगे तो न कोई एक से ज्यादा शादी कर सकेगा, चाहे किसी भी धर्म का हो, न ही राजनीति में धर्म और जाति की मिलावट हो सकेगी और सामाजिक तथा सांस्कृतिक विरासत हरेक के लिए समान होगी। 

जनसंख्या कानून : वर्षों से सत्ता का सुख भोग रहे जिस किसी भी राजनीतिक दल के हाथ में सत्ता हो, उसके मंत्री, मुख्यमंत्री या फिर प्रधानमंत्री ही क्यों न हों, चुनाव की आहट होते ही, उनकी रातों की नींद तो उड़ ही जाती है। जो भी सरकार हो, उसके लिए उस वक्त कुछ ऐसे काम करने जरूरी हो जाते हैं, जो या तो बरसों से ठंडे बस्ते में पड़े थे या फिर कोई एेसा नियम कानून बनाया जाए जिसके दूरगामी परिणाम हों और लोकलुभावन भी हों। जैसा कि अनेक विद्वानों से लेकर राजनीतिक दलों और उनके नेताओं से लेकर मु यमंत्रियों तक ने माना है, केवल कानून बनाने से लोग एक या दो संतान पैदा करने से नहीं रुकेंगे। इसके साथ ही परिवार को सीमित रखने के लिए सुविधाएं अथवा दंड देने की नीति एक तरह से रिश्वत या धमकी देने की भांति है और किसी लालच तथा डर के कारण किया गया कोई भी काम अधिक समय तक फल नहीं देता। 

जिन तबकों में लोगों का रुझान अधिक से अधिक संतान पैदा करने की तरफ है, उनमें विभिन्न तरीकों से जागरूकता लाने का काम करना होगा, गर्भ निरोधक इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। निगरानी इस बात की करनी होगी कि गांव-देहात, कस्बों और मोहल्लों में अगर स्कूलों में बच्चे पढऩे नहीं आते तो शिक्षक और माता-पिता की जवाबदेही हो और उन पर इस लापरवाही के लिए दंड लगाने की व्यवस्था हो। इसी तरह वोट बैंक की खातिर जो उम्मीदवार आबादी बढऩे की वकालत करते हैं और उन्हें शिक्षित नहीं होने देना चाहते, उनका चुनाव में बहिष्कार करना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि जनसंख्या नियंत्रण और समान अधिकार कानून बनाना बहुत चुनौतीपूर्ण है लेकिन जिस सरकार ने धारा 370 हटाने, तीन तलाक समाप्त करने, राम मंदिर निर्माण और बहुत से अकल्पनीय काम किए हों, उसके लिए कोई ज्यादा मुश्किल होने वाली नहीं है, बस हिम्मत होनी चाहिए!-पूरन चंद सरीन

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