‘समय की आवश्यकता : एक राष्ट्र एक चुनाव’

Thursday, Dec 10, 2020 - 02:27 AM (IST)

भारत एक विशाल लोकतांत्रिक राष्ट्र है जिसका ओजस्वीपूर्ण और सुदृढ़ संविधान है जो अपने नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करता है। ‘‘हम भारत के लोग’’ की भावना ने नियमित रूप से हमारी संस्थाओं को मजबूत किया है और प्रौद्योगिकी और ज्ञान प्रबलता की 21वीं शताब्दी की चुनौतियों को पूरा करने हेतु उनके प्रमुख मूल्यों का निर्माण किया है तथा प्रतिस्पर्धी विश्व में निरंतर प्रमुखता प्रदान की है। 

वर्ष 2014 में, तीन दशकों से भी अधिक समय के बाद भारत में पूर्ण बहुमत के साथ स्थिर सरकार आई क्योंकि जनता ने नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में एन.डी.ए. (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन) की सरकार के लिए अपना जनादेश किया। तब से ‘‘जन धन आधार मोबाइल ट्रिनिटी’’ डी.बी.टी. जी.एस.टी. ओ.आर.ओ.पी., डिजीटल इंडिया, स्वच्छ भारत मिशन आदि जैसे बहुत से साहसिक सुधार के उपाय किए गए हैं, रक्षा उपकरणों के स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देकर और राफेल को शामिल करके रक्षा क्षेत्र को मजबूत किया गया है तथा साथ ही कृषि संबंधी एवं श्रम सुधार भी किए गए हैं। 

कोविड-19 महामारी के इस चुनौतीपूर्ण समय में प्रधानमंत्री द्वारा आत्मनिर्भर भारत के आह्वान की भारत के विकास पथ में अहम भूमिका होगी, तथापि वैश्विक महाशक्ति (सुपर पावर) बनने की यात्रा में अभी काफी दूरी तय करना बाकी है। एक प्रमुख कदम जो इन लक्ष्यों को हासिल करने में विकास परिदृश्य को बहुत अधिक उत्प्रेरित करेगा, वह देश में एक साथ चुनाव करके चुनाव की अवधि का पुनर्गठन है। 

संविधान के भाग-15 के अनुच्छेद 324 से 329 में यह उपबंध किया गया है कि संसद, राज्य विधानसभा के लिए सभी चुनावों की जिम्मेदारी, निर्देशन, नियंत्रण और आयोजित करने की शक्ति भारतीय निर्वाचन आयोग पर होगी तथा अन्य उपबंध चुनाव कार्य से संबंधित हैं। भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कराना सुसाध्य बनाने के लिए संसद में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और उनके अंतर्गत बनाए गए कानूनों अर्थात मतदाता नियमावली, 1960 का पंजीकरण तथा चुनाव नियमावली, 1961 का संचालन अधिनियमित किया है। स्थानीय निकायों (पंचायती राज संस्थाओं, निगमों/नगरपालिकाओ आदि) के चुनाव की जिम्मेदारी संबंधित राज्य निर्वाचन आयोग की होती है।

1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे। उसके बाद, उनके चुनावी कार्यक्रम अलग-अलग हो गए। संविधान के अनुच्छेद 356 के अविवेकपूर्ण और पक्षपातपूर्ण उपयोग के कारण भी इस चक्र का विघटन हुआ। गठबंधन सरकारों के कारण अब तक सात लोकसभा समय से पहले भंग हुई। 15 जून 1949 को संविधान सभा की बहस के दौरान, प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना ने चुनावी चक्र को ठीक करने के बारे में कहा, ‘‘हमारे संविधान में संयुक्त राज्य अमरीका की तरह नियत चार साल की एक निश्चित अवधि का प्रावधान नहीं है हर समय कहीं न कहीं कोई चुनाव या और कुछ होता रहेगा। शुरूआत में या बहुत पहले 5 या 10 वर्षों में ऐसा नहीं होगा, लेकिन 10 या 12 साल बाद, हर पल, किसी न किसी प्रांत में चुनाव हो रहा होगा।’’ 

1983 में चुनाव आयोग की पहली वार्षिक रिपोर्ट में पहली बार एक साथ चुनावी विचार को प्रस्तुत किया गया था, तब से ही इसके लिए कई बार मांग की जा चुकी है। भारत के विधि आयोग ने चुनाव कानूनों के सुधार पर अपनी 170वीं रिपोर्ट (1999) में शासन में स्थिरता के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का सुझाव दिया है। कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने दिसम्बर 2015 में ‘हाऊस ऑफ पीपुल (लोकसभा) और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित करने की व्यावहार्यता’ पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 2017 में बजट सत्र से पहले संसद के संयुक्त सत्र के लिए अपने परम्परागत संबोधन में और कई अन्य अवसरों पर, पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी ने भी इस मुद्दे पर रचनात्मक बहस करने का आह्वान किया था। 

अगस्त 2018 में 17वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव से पहले, भारत के विधि आयोग ने एक साथ चुनाव आयोजित करने से संबंधित कानूनी और संवैधानिक प्रश्रों की जांच करते हुए एक साथ चुनावों पर अपनी मसौदा रिपोर्ट जारी की थी। 19 जून 2019 को, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर चर्चा के लिए लोकसभा या राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी राजनीतिक दलों के राष्ट्रीय अध्यक्षों की एक बैठक आयोजित की थी। 

वन-नेशन वन इलैक्शन से भारत के सामूहिक विकास में तेजी आएगी। इससे धन शक्ति पर नियंत्रण लगेगा और सार्वजनिक धन की बचत होगी। सरकार की नीतियों और विकासात्मक कार्यक्रमों का समय पर कार्यान्वयन, प्रशासनिक व्यवस्था पर बोझ कम होना, आवश्यक सेवाओं की निरंतर प्रदायगी से न केवल नागरिकों को लाभ होगा, बल्कि सरकार को चुनाव मोड से बाहर आने और नागरिकों के जीवन में सुधार लाने और उनकी आकांक्षा को पूरा करने हेतु निर्णय लेने और योजनाओं को लागू करने के लिए और अधिक मदद मिलेगी।-अर्जुन राम मेघवाल (भारी उद्योग एवं संसदीय कार्य मंत्री)

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