वक्त की पाबंद हैं ये आती-जाती रौनकें

punjabkesari.in Saturday, May 01, 2021 - 04:48 AM (IST)

श्री विजय चोपड़ा जी ने कई बार अपने संपादकीय के माध्यम से बुजुर्गों की वर्तमान दशा पर रोशनी डाली है और यह सलाह दी है कि जरूरी हो तो बुजुर्ग अपनी कमाई गई स पत्ति की वसीयत अपने बच्चों के नाम कर दें लेकिन अपने पास कुछ न कुछ रखें ताकि उनकी वृद्धावस्था बर्बाद न हो जाए।

मैं इसी से प्रभावित होकर आज अपने इस आलेख के माध्यम से नौजवान पीढ़ी को बता रहा हूं कि राजनीतिक जीवन की अपनी ही कठिनाइयां हैं जहां देखने में आया है कि वे लोग जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी किसी विशेष पार्टी को दी हो लेकिन अपने परिवार के किसी सदस्य को राजनीति की जिंदगी में न उतारा हो तो उसका जीना-मरना बिना सामाजिक नोटिस होता है। इसलिए कई बार जरूरी हो जाता है कि सामाजिक पारिवारिक सदस्य को राजनीति में लाना ही पड़ता है। वर्ना यह हालत हो जाती है कि जिन व्यक्तियों का थोड़ा-सा सरकारी असर खत्म हो जाए तो वे लोग दूर-दूर तक नजर नहीं आते। 

हर हालत में बदलाव प्रकृति का नियम है। इससे पहले कि वक्त करवट ले वे लोग जो आज राजनीतिक शिखर पर हैं उनको अपने बुजुर्गों का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी समय वह भी उसी पोजीशन के मालिक थे जिनके आज तुम मालिक हो। नहीं भूलना चाहिए कि बुढ़ापे में दिए गए शारीरिक कष्ट दुख देते हैं। वहां पर आदमी अपनी-अपनी जिंदगी के उतार-चढ़ावों को दिमागी तौर पर याद करता है। ऐसे वृद्ध लोगों की बद्दुआएं इंसान को तबाह कर देती हैं और उनका आशीर्वाद फलता-फूलता है। 

इंसानियत मर चुकी है : यह तो ठीक है कि कोई भी ऐसा टीका नहीं जो साल भर में कोरोना के बढ़ रहे मामलों को खत्म करने के लिए काफी हो। अस्पतालों में ऑक्सीजन, बैड, नए अस्पतालों को बनाने की व्यवस्था और डाक्टरों तथा नर्सों जोकि इस बीमारी से जूझ सकें, का प्रबंध करना इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है। फार्मेसियों और कैमिस्टों के मनमाने ढंग पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके अलावा प्राइवेट अस्पतालों जोकि मनचाहे अपने रेट मुकर्रर कर लेते हैं, उनको एक यूनिफार्म रेट के द्वारा कीमत तय कर रोका जा सकता है। न जाने सरकार इस खुली लूट को चैक करने का अपना दायित्व क्यों नहीं निभा रही।

इंसान की इंसानियत दम तोड़ चुकी है। एक ओर जहां कोरोना से मरने वाले मरीजों की पाॢथव देह को अंतिम संस्कार के लिए लाइनों में लगना पड़ रहा है वहीं काला बाजारी की मिसालें भी सामने आ रही हैं जो बेहद दुखदायी हैं। जहां एक ओर इस बीमारी के संक्रमण को रोकने के लिए टीकाकरण जरूरी है, वहीं मास्क लगाना, हाथों का बार-बार धोना और सोशल डिस्टैंसिंग की पालना करना भी बेहद लाजिमी है। समझ नहीं आता कि लोगों को उनकी जिंदगी बचाने के लिए सरकार को बार-बार चुनौती क्यों देनी पड़ती है। लोगों की जि मेदारी है कि वह अपने जीवन को खुद ही बचा कर रखें। 

अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी यह जरूरी समझना चाहिए कि वे अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि की परवाह न करते हुए अपने देश के लोगों को बचाने के लिए कुछ हट कर काम करें। यह कैसा समय आ गया है कि वैक्सीन की कालाबाजारी हो रही है। सरकार को चाहिए कि वह इस महामारी को रोकने के लिए और ज्यादा स त कदम उठाए। इंसान की सामाजिक जिंदगी बिल्कुल चरमरा गई है। इंसान इस बीमारी से मरने वाले अपने पारिवारिक सदस्यों की मौत पर हजारों सालों से चले आ रहे रीति-रिवाजों की पालना भी नहीं कर पा रहे। हर मां-बाप का एक वाब होता है कि वह अपने बच्चों की शादियों पर अपने रिश्तेदारों को निमंत्रण दें। मगर अब तो लोग अपने नजदीकी रिश्तेदारों के यहां आयोजित समारोह में भी जाने से घबराते हैं। 

पंजाब का राजनीतिक माहौल : पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस का पंजाब में शासन करने का सुनहरी सपना एक फिर कामयाब होता नजर आ रहा है। पंजाबियों ने कांग्रेसी सरकार के दौरान हुए विकास का आनंद लिया। वहीं लोगों ने अकाली-भाजपा गठबंधन की राजनीति भी देखी। पंजाब के चुनाव में करीब एक साल का समय बाकी रहता है। इस चुनावी साल में बहुत-सी राजनीतिक घटनाएं होंगी। चुनावी पंडितों की भविष्यवाणी अभी मायने नहीं रखती क्योंकि राजनीति में सब कुछ उथल-पुथल होता रहता है मगर यदि आज के हालात को देखा जाए तो कांग्रेस का पलड़ा अमरेन्द्र सिंह की अगुवाई में भारी नजर आता है। 

अब भाजपा और अकाली दल मिलकर चुनाव नहीं लड़ सकते। बिना ङ्क्षहदू मतदाताओं के समर्थन से अकाली सरकार नहीं बना सकते। अब तो अनुसूचित जाति को अहमियत दी जाए। यही नारा सियासी आसमान पर गूंज रहा है। इसके चलते राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। पंजाबियों ने जहां कांग्रेस के राजपाट का आनंद उठाया वहीं अकाली दल ने ङ्क्षहदू मतदाताओं को नजरअंदाज करने का खेल खेला।

अब पंजाबी मतदाताओं के दिलों में आम आदमी पार्टी के लिए कशिश है जो कांग्रेस की राजनीति फेल होने के कारण उभर सकती है। इसलिए कांग्रेस को अपनी अंदरुनी धड़ेबंदी पर अंकुश लगाने के अलावा पिछली बार के किए गए वायदों को किसी हद तक पूरा करना पड़ेगा। वर्तमान में राजनीतिक जोड़-तोड़ के हिसाब से कांग्रेस पार्टी कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़े तो फिर से  सरकार बन सकती है। अंत में मैं यही कहूंगा कि वक्त की पाबंद हैं ये आती-जाती रौनकें।-वेद प्रकाश गुप्ता


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