भारतीय व्यापार के लिए एक ‘नई व्यवस्था’ का समय

punjabkesari.in Tuesday, Nov 05, 2024 - 05:19 AM (IST)

भारत  को ईस्ट इंडिया कंपनी ने चुप करा दिया था। अपनी व्यापारिक ताकत से नहीं, बल्कि अपनी पकड़ से चुप करा दिया था। कंपनी ने हमारे महाराजाओं और नवाबों के साथ सांझेदारी करके, उन्हें रिश्वत देकर और धमकाकर भारत का गला घोंट दिया। इसने हमारे बैंकिंग, नौकरशाही और सूचना नैटवर्क को नियंत्रित किया। याद रखें, हमने अपनी आजादी किसी दूसरे देश के हाथों नहीं खोई, हमने इसे एक एकाधिकारवादी निगम के हाथों खो दिया, जो हमारे दमनकारी तंत्र को चलाता था।

कंपनी ने व्यापार की शर्तों को नियंत्रित और प्रतिस्पर्धा को खत्म कर दिया। इसने तय किया कि कौन क्या बेचे और किसे बेचे। इसने हमारे कपड़ा उद्योग और विनिर्माण प्रणाली को खत्म कर दिया। मुझे कंपनी द्वारा किए गए किसी भी उत्पाद नवाचार या बाजार विकास के बारे में नहीं पता। मुझे बस इतना पता है कि इसने एक क्षेत्र में अफीम की खेती के लिए एकाधिकार हासिल कर लिया और दूसरे में अफीम के आदी लोगों के लिए एक बंदी बाजार विकसित कर लिया। फिर भी, जब कंपनी ने भारत को लूटा, तो उसे ब्रिटेन में एक आदर्श कॉर्पोरेट नागरिक के रूप में माना गया। इसके विदेशी शेयरधारक इसे पसंद करते थे।

ईस्ट इंडिया कंपनी 150 साल पहले खत्म हो गई थी लेकिन तब जो खौफ पैदा हुआ था, वह फिर से वापस आ गया है। एकाधिकारवादियों की एक नई नस्ल ने उसकी जगह ले ली है। उन्होंने अपार संपत्ति जमा कर ली है, जबकि भारत बाकी सभी के लिए कहीं अधिक असमान और अनुचित हो गया है। हमारी संस्थाएं अब हमारे लोगों की नहीं हैं, वे एकाधिकारवादियों के इशारे पर चलती हैं। लाखों व्यवसाय नष्ट हो गए हैं और भारत अपने युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने में असमर्थ है। भारत माता के संसाधनों और शक्ति पर कुछ चुङ्क्षनदा लोगों के एकाधिकार के लिए बहुतों को नकारना, उसे घायल कर चुका है।

मैं जानता हूं कि भारत के सैंकड़ों प्रतिभाशाली और गतिशील व्यापारी नेता एकाधिकारियों से डरते हैं। क्या आप एकाधिकारियों से डरते हैं, जो राज्य के साथ मिलकर आपके क्षेत्र में घुसकर आपको कुचल देंगे? क्या आप आयकर, सी.बी.आई. या ई.डी. के छापों से डरते हैं, जो आपको अपना व्यवसाय उन्हें बेचने के लिए मजबूर करेंगे? क्या आप उनसे डरते हैं कि जब आपको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है तो वे आपको पूंजी से वंचित कर देंगे? क्या आप उनसे डरते हैं कि वे बीच में ही खेल के नियम बदल कर आप पर हमला कर देंगे?

आप जानते हैं कि इन कुलीन समूहों को व्यवसाय के रूप में वॢणत करना भ्रामक है। जब आप उनके साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, तो आप किसी कंपनी के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहे होते, आप भारतीय राज्य की मशीनरी से लड़ रहे होते हैं। उनकी मुख्य क्षमता उत्पाद, उपभोक्ता या विचार नहीं, बल्कि भारत के शासकीय संस्थानों और नियामकों को नियंत्रित करने की उनकी क्षमता है, और निगरानी। ये समूह तय करते हैं कि भारतीय क्या पढ़ते हैं और क्या देखते हैं, वे इस बात को प्रभावित करते हैं कि भारतीय कैसे सोचते हैं और क्या बोलते हैं। आज बाजार की ताकतें सफलता का निर्धारण नहीं करतीं, बल्कि सत्ता संबंध करते हैं।

आपके दिलों में डर है, लेकिन आशा भी है। ‘मैच फिकिं्सग’ करने वाले एकाधिकार समूहों के विपरीत, सूक्ष्म उद्यमों से लेकर बड़े निगमों तक, बड़ी संख्या में अद्भुत ‘खेल-निष्पक्ष’ भारतीय व्यवसाय हैं, लेकिन आप चुप हैं। आप एक दमनकारी व्यवस्था में बने हुए हैं। पीयूष बंसल पर विचार करें, बिना किसी राजनीतिक संपर्क वाले पहली पीढ़ी के उद्यमी ने सिर्फ 22 साल की उम्र में एक व्यवसाय शुरू किया था। उन्होंने 2010 में लैंसकार्ट की सह-स्थापना की, जिसने आईवियर क्षेत्र को नया रूप दिया। आज लैंसकार्ट भारत भर में हजारों लोगों को रोजगार प्रदान करता है। फिर फकीर चंद कोहली हैं, जिन्होंने 1970 के दशक में एक प्रबंधक के रूप में टाटा कंसल्टैंसी की स्थापना की। आई.बी.एम., टी.सी.एस. और अन्य अग्रदूतों और एक्सेंचर जैसे दिग्गजों से टक्कर लेने का साहस था। 

ऐसा लगता है कि टाइनोर, इनमोबी, मान्यवर, जोमैटो, फ्रैक्टल एनालिटिक्स, अराकू कॉफी, ट्रेडेंस, अमगी, आईडी फूड्स, फोनपे, मोग्लिक्स, सुला वाइन, जसपे, जेरोधा, वेरिटास, ऑक्सीजो, एवेंडस जैसी कंपनियां, जो नई पीढ़ी की हैं और एल. एंड टी., हल्दीराम, अरविंद आई हॉस्पिटल, इंडिगो, एशियन पेंट्स, एच.डी.एफ.सी. समूह, बजाज ऑटो और बजाज फाइनैंस, सिप्ला, मङ्क्षहद्रा ऑटो, टाइटन जैसी कंपनियां, जो पुरानी पीढ़ी की हैं, जिनमें से ज्यादातर को मैं व्यक्तिगत रूप से शायद ही जानता हूं, उन घरेलू कंपनियों का एक छोटा सा नमूना है, जिन्होंने नवाचार किया है और नियमों के अनुसार काम करना चुना। मुझे यकीन है कि मैंने सैंकड़ों नामों को छोड़ दिया है, जो बिल के हिसाब से और भी बेहतर हैं, लेकिन आप मेरी बात समझ सकते हैं।

मेरी राजनीति हमेशा से कमजोर और बेजुबानों की रक्षा करने के बारे में रही है। मैं गांधीजी के शब्दों से प्रेरणा लेता हूं कि पंक्ति में खड़े आखिरी बेजुबान व्यक्ति की रक्षा करनी चाहिए। इसी दृढ़ विश्वास ने मुझे मनरेगा, भोजन का अधिकार और भूमि अधिग्रहण विधेयक का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया। मैं नियमगिरि के प्रसिद्ध टकराव में आदिवासियों के साथ खड़ा था। मैंने तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ अपने किसानों के संघर्ष में उनका साथ दिया। मैंने मणिपुर के लोगों का दर्द सुना।

आज, जब मैं आपको लिख रहा हूं, तो मुझे एहसास हुआ कि मैं गांधीजी के शब्दों की पूरी गहराई को समझने से चूक गया था। मैं यह समझने में विफल रहा कि ‘रेखा’ एक रूपक है- वास्तव में कई अलग-अलग रेखाएं। आप जिस रेखा में खड़े हैं, वह व्यवसाय की है, आप ही शोषित, वंचित हैं। और इसलिए मेरी राजनीति का लक्ष्य आपको वह प्रदान करना होगा, जिससे आपको वंचित रखा गया है- निष्पक्षता और समान अवसर।

सरकार को सभी अन्य की कीमत पर एक व्यवसाय का समर्थन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, व्यापार प्रणाली में बेनामी समीकरणों का समर्थन तो बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता। सरकारी एजैंसियां व्यवसायों पर हमला करने और उन्हें डराने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार नहीं हैं। हालांकि, मैं इस बात का समर्थन नहीं करता कि डर को आपसे हटाकर बड़े एकाधिकारियों में स्थानांतरित किया जाए। वे बुरे व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि हमारे सामाजिक और राजनीतिक वातावरण की कमियों का परिणाम हैं। उन्हें जगह मिलनी चाहिए और आपको भी।

यह देश हम सभी के लिए है। हमारे बैंकों को शीर्ष 100 अच्छी तरह से जुड़े उधारकत्र्ताओं के प्रति अपने मोह, साथ ही उनके एन.पी.ए. को भी दूर करना चाहिए तथा उन्हें ऋण देने और निष्पक्ष व्यापार को समर्थन देने में लाभ के स्रोतों की खोज करनी चाहिए। अंत में, हमें राजनीतिक व्यवहार को आकार देने में सामाजिक दबाव और प्रतिरोध की शक्ति को कम नहीं आंकना चाहिए। मसीहाओं की कोई आवश्यकता नहीं है। आप वह परिवर्तन है, जो सभी के लिए धन और रोजगार पैदा करेगा। मेरा मानना है कि प्रगतिशील भारतीय व्यापार के लिए ‘न्यू डील’ एक ऐसा विचार है जिसका समय आ गया है। -राहुल गांधी (नेता प्रतिपक्ष)


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