तिहाड़ जेल ‘अपराधों को रोकने या बढ़ावा देने के लिए’

Friday, Oct 09, 2015 - 01:42 AM (IST)

नई दिल्ली की ‘तिहाड़ जेल’ 9 जेलों पर आधारित दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा जेल परिसर है। इसे मुख्यत: एक ‘सुधार घर’ के रूप में विकसित किया गया था। इसका उद्देश्य जेल के अधिवासियों को दस्तकारी का प्रशिक्षण तथा सामान्य शिक्षा देकर कानून के आज्ञाकारी नागरिक बनाना था। 

अपराधियों को सुधारने के लिए यहां संगीत व धार्मिक प्रवचन भी शुरू किए गए। ‘इंस्पैक्टर जनरल आफ प्रिजन्स’ के रूप में किरण बेदी ने यहां कई सुधार किए और इसका नाम भी बदल कर ‘तिहाड़ आश्रम’ रखा लेकिन आज यह जेल मार-काट व खून-खराबे का अड्डा बन कर रह गई है। 
 
इसी वर्ष मई में जेल नंबर 1 में ‘चवन्नी’ तथा ‘बीड़ी’ नामक 2 गिरोहों के बीच जम कर खूनी संघर्ष हुआ जिसमें 1 कैदी मारा गया। मई के एक पखवाड़े में हुई यह चौथी और चार महीनों में सत्रहवीं हत्या थी। 
 
6250 कैदियों की क्षमता वाली इस जेल में क्षमता से दोगुने से भी अधिक 14,000 कैदी बंद हैं जिनमें से अधिकांश का नियंत्रण सजायाफ्ता या विचाराधीन कैदियों के गिरोहों के हाथ में है। मारपीट, हत्या, नशों की सप्लाई, महिला कर्मचारियों से दुव्र्यवहार और छेड़छाड़ की घटनाएं यहां लगातार हो रही हैं। 
 
गत 3 अक्तूबर को जेल नंबर 3 के अस्पताल की ओ.पी.डी. में मरीजों को देखने जा रही एक महिला डाक्टर को हत्या के आरोपी एक उम्रकैदी ने दबोच कर उससे छेड़छाड़ शुरू कर दी। महिला डाक्टर ने उसकी पकड़ से छूटने की भरसक कोशिश की परंतु कैदी ने नहीं छोड़ा। शोर मचने पर जेल के अन्य कर्मचारियों ने वहां पहुंच कर काफी मशक्कत से उसे छुड़वाया। 
 
अगले ही दिन 4 अक्तूबर को जेल नंबर-5 में बंद निर्भया बलात्कार कांड का आरोपी विनय भारी पेट दर्द की शिकायत करते हुए जमीन पर गिर कर तड़पने लगा। अस्पताल ले जाकर जब उसका मुआयना करवाया गया तो पता चला कि नशे की ओवरडोज के कारण उसकी यह हालत हुई थी।  
 
7 अक्तूबर को तिहाड़ जेल में गैंगवार में 2 कैदियों की मृत्यु तथा 10 कैदी व जेल के 5 कर्मचारी घायल हो गए। भ्रष्टाचार का हाल यह है कि कैदियों से उनकी पसंदीदा कोठरियां अलाट करने व अन्य सुविधाओं के लिए ‘कोठरी मनी’, ‘तड़का मनी’ आदि वसूले जाते हैं।
 
देश की सभी जेलों में क्षमता से अधिक कैदी भरे हैं जिनमें वर्षों से लटकते आ रहे 68 प्रतिशत केस विचाराधीन कैदियों के हैं जो अदालतों द्वारा जल्दी फैसला न सुनाने के कारण जेलों में भीड़ बढ़ा रहे हैं। मुकद्दमों का जल्द फैसला हो जाए तो भीड़ काफी कम हो सकती है। 
 
तिहाड़ में भीड़ घटाने के लिए उत्तर-पूर्व दिल्ली में 3200 कैदियों की क्षमता वाली मंडौली जेल की इमारत बनाई गई है परंतु इसमें सुरक्षा संबंधी 60 कमियां पाई जाने के कारण तिहाड़ के अधिकारियों ने फिलहाल वहां कैदियों को शिफ्ट करना स्थगित कर रखा है। 
 
तिहाड़ व अन्य जेलों की बदहाली को कितने हल्केपन से लिया जा रहा है यह इसी से स्पष्टï है कि जेलों में नशों की आपूॢत, हत्याओं व अन्य अपराधों को दूर करके इन्हें सुधारने के लिए समय-समय पर सरकार ने अनेक आयोग गठित किए और उन्होंने अनेक अच्छे सुझाव भी दिए परंतु राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव तथा अन्य कारणों से उन्हें लागू ही नहीं किया गया। 
 
तिहाड़ जेल में नशों, हथियारों एवं अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं का प्रवेश रोकने के लिए ‘थ्री लेयर’ सुरक्षा प्रणाली होने के बावजूद वहां नशों तथा अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी लगातार जारी है। 
 
जेल में आने-जाने वालों की गंध से उनके पास विस्फोटकों आदि का पता लगाने के लिए ‘वेपर डिटैक्टर’ जैसे उपकरण लगाने की भी जरूरत है। जासूसी कुत्तों की कमी व पर्याप्त पुलिसिंग का न होना भी यहां अपराधों का बड़ा कारण है।
 
जेल में सी.सी.टी.वी. कैमरे केवल ड्योढ़ी में हैं परंतु इन्हें समूचे जेल परिसर में लगाने की आवश्यकता है ताकि कैदियों की गतिविधियों का पता लगता रहे। विदेशों में जेलों के कामकाज की निगरानी के लिए ‘जन लोकपाल’ की शैली पर भारत की सभी प्रमुख जेलों में शहर के गण्यमान्य नागरिकों में से चुन कर ‘प्रिजन ओम्बड्समैन’ नियुक्त किए जाने चाहिएं।
 
ये कमियां दूर होने पर ही तिहाड़ तथा अन्य जेलें अपनी स्थापना तथा अपराधों की रोकथाम के उद्देश्य को पूरा कर सकेंगी। इस समय तो ये जेलें अपराधों की रोकथाम के केंद्रों की बजाय अपराधियों की शरणस्थली और उनकी गुप्त गतिविधियों का केंद्र बनी हुई हैं।
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