तीन तलाक की जिद

punjabkesari.in Saturday, Apr 22, 2017 - 09:58 PM (IST)

तीन तलाक का मामला इन दिनों फिर चर्चा में है। एक बार तब कोलाहल मचा था जब शाह बानों को अदालत ने गुजारा भत्ता देने का निर्णय दिया था मगर अपार बहुमत के बावजूद तत्कालीन राजीव गांधी सरकार इस पर अमल नहीं करा पाई थी और उसे कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को रद्द करना पड़ा था। तलाक के बाद महिलाओं की दयनीय स्थिति पर उस वक्त बीआर चोपड़ा ने बड़ी मार्मिक फिल्म बनाई थी 'तलाक’। फिल्म तो खूब चली मगर महिलाओं के हिस्से में सिवाय रोने के और कुछ नहीं आया। शंभूनाथ शुक्ल का विश्लेषण...

अब जब मौजूदा केंद्र सरकार ने तीन तलाक को खत्म करने का बीड़ा उठाया है तो मुसलमान और खासकर पुरुष समाज इसे अपने अधिकारों में खलल मानकर चल रहा है, इसलिए रोड़े अटकाए जा रहे हैं। मुसलमानों का कहना है कि तीन तलाक कहने को ही है व्यवहार में कोई इसे अमल में नहीं लाता। हिंदुओं का कहना है कि तीन तलाक मुसलमानों के सिर्फ सुन्नी समुदाय में भी कुछ खास लोगों द्वारा अमल में लाया जाता है।

इसके विपरीत मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि पुरुष समाज उनकी पीड़ा का मजाक उड़ा रहा है। सच तो यह है कि तीन तलाक ने उनकी जिंदगी हराम कर रखी है। उन्हें असहाय अवस्था में घर छोडऩा पड़ता है और दर-दर भटकना पड़ता है। अक्सर पिता अपनी बेटियों को साथ नहीं रखते। ऐसी स्थिति में गुजारा भत्ता नहीं मिलने से वे अत्यंत कष्टपूर्ण जिंदगी जीती हैं। प्रसिद्घ लेखिका नूर जहीर महिलाओं पर होने वाले इस जुल्म के खिलाफ  अपनी आवाज पुरजोर तरीके से बुलंद कर रही हैं। उनका कहना है कि पुरुष चाहे हिंदू हो या मुस्लिम उसके दिमाग में अपनी चलाने और अपनी हवस पूरी करने की ऐसी ललक होती है कि वह औरत की पीड़ा को एकदम से नजरंदाज कर जाती है। उनकी किताब 'माई गॉड इज ए वूमेन’ में बड़ी शिद्दत से महिलाओं की स्थिति बताई गई है।

यह सच है कि मुसलमानों का एक बड़ा समूह शिया लोग तीन तलाक को नहीं मानते। उनके यहां तलाक की अलग परंपरा है मगर यह पुरुष प्रधान समाज है, यहां महिलाओं को परेशान करने और नीचा दिखाने, अपनी मर्जी उन पर थोपने में पुरुष समाज कभी पीछे नहीं रहता। तीन तलाक के मामले भले बहुत नहीं हों पर जहां कहीं भी महिला कमजोर है, वहां मुस्लिम पुरुष उन पर तीन तलाक थोप ही देते हैं। उस महिला को बिना गुजारा भत्ता दिए उससे पिंड छुड़ा लेते हैं। अगर तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं की व्यथा जाननी हो तो दिल्ली के अशोक रोड स्थित वीमेंस प्रेस क्लब चले जाइए, वहां पर नूर जहीर बैठती हैं और उनके पास हर समय तीन तलाक से पीड़ित महिलाएं बैठी मिल जाएंगी, जो अपनी व्यथा सुनाने उन्हें आती हैं। उनमें शिया भी होती हैं और सुन्नी समुदाय की मुस्लिम महिलाएं भी।

शिया महिलाओं का दुखड़ा है कि पुरुष कब अपनी पत्नी से पिंड छुड़ाने के लिए शिया से सुन्नी बन जाए पता नहीं। वह तलाक देने के वास्ते सुन्नी बन जाता है और फिर शिया समुदाय में वापस आ जाता है। नूर जहीर का कहना है कि पुरुष चाहे हिंदू हो या मुसलमान वह पुरुष पहले है। उसके अंदर अपने पौरुष को दिखाने का अकेला जरिया है स्त्री को अपमानित करना और वह तलाक के रूप में इसे पूरा करता है। हिंदू पुरुष भी और मुसलमान भी। उनका कहना है कि हिंदुओं में जातिप्रथा है और इसलिए वे सारी चीजें जाति के आधार पर सोचते हैं। उनको लगता है कि शिया सदैव शिया रहेगा और सुन्नी सदैव सुन्नी पर सत्य ऐसा नहीं है। मुस्लिम समाज का कोई भी व्यक्ति जब चाहे शिया बन जाए और जब चाहे सुन्नी बनकर तलाक दे दे। नूर जहीर ने अपनी पुस्तक 'डिनायड अल्लाह’ में पुरुषों की ऐसी ही मानसिकता को उजागर किया है, जिसने अपनी सुविधा से धर्म बनाए और सामाजिक मान्यताएं तय कीं।

तीन तलाक के खिलाफ  स्वयं मुस्लिम जनमानस में भी आक्रोश है। मुस्लिम महिलाओं ने तो मुहिम जैसी छेड़ रखी है और इसका असर उन मुस्लिम बौद्घिकों पर भी पड़ा है जो प्रगतिशील नजरिया रखते हैं। मशहूर शायर और सिने पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को ही घेर लिया। उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को दकियानूस बताया है और कहा है कि पर्सनल लॉ बोर्ड झूठ बोल रहा है कि तीन तलाक कहने वालों का सामाजिक बायकॉट करेंगे। उन्होंने कहा कि तीन तलाक साफ-साफ  महिलाओं का शोषण है और इसे तत्काल प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि वह समान नागरिक संहिता के समर्थक हैं। लखनऊ के नदवा में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की 15 और 16 अप्रैल को बैठक हुई। उसमें तय किया गया कि तलाकशुदा महिला की मदद की जाएगी और जो लोग तीन तलाक का गलत इस्तेमाल करेंगे उनका बायकॉट किया जाएगा। उन्होंने संपत्ति में बेटी को हक देने की मांग की मगर इसके साथ ही उन्होंने मुस्लिमों के धार्मिक कानून में किसी तरह के बदलाव का विरोध किया। अलबत्ता यह जरूर कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला करेगा, उसे वे मानेंगे।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी का कहना है कि देश के ज्यादातर मुसलमान पर्सनल लॉ में किसी तरह की दखलंदाजी नहीं चाहते। उन्होंने साफ कहा कि बोर्ड तीन तलाक पर किसी भी तरह की पाबंदी के खिलाफ  है। मौलाना वली रहमानी के अनुसार जो लोग शरीयत के बारे में कुछ भी नहीं जानते, वे शरीयत पर अंगुली उठाने लगे हैं। यह गलत है इसीलिए देश भर के मुसलमानों ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के हस्ताक्षर अभियान के जरिये शरीयत में किसी तरह के बदलाव का विरोध किया है।

इसके विपरीत मुस्लिम महिलाएं लगातार सरकार पर दबाव बना रही हैं कि तीन तलाक स्त्रियों पर अत्याचार है और इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए। उनका कहना है कि तीन तलाक पर शिया मुसलमान रहस्यमय चुप्पी साधे रहते हैं। वे न तो इसके विरोध में कुछ बोलते हैं न खुलकर समर्थन करते हैं। सारा मामला पर्सनल लॉ बोर्ड पर टरका देते हैं। पर्सनल लॉ बोर्ड में शिया भी हैं, वे क्यों नहीं विरोध करते कि पर्सनल लॉ में इसको सपोर्ट नहीं किया जा सकता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) 


 


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