अब ग्रामोद्योग के जरिए 5 करोड़ रोजगार की बात

Monday, May 22, 2017 - 12:25 AM (IST)

बेरोजगारी भारत की सबसे बड़ी समस्या है। करोड़ों नौजवान रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। हर सरकार इसका हल ढूंढने का दावा करती आई है पर कर नहीं पाई। कारण स्पष्ट है जिस तरह सबका जोर भारी उद्योगों पर रहा है और जिस तरह लगातार छोटे व्यापारियों और कारखानेदारों की उपेक्षा होती आई है, उससे बेरोजगारी बढ़ी है। 

आज तक सब जमीनी सोच रखने वाले और अब बाबा रामदेव भी यह सही कहते हैं कि अगर रोजमर्रा के उपभोग की वस्तुओं को केवल कुटीर उद्योगों के लिए ही सीमित कर दिया जाए तो बेरोजगारी की समस्या तेजी से हल हो सकती है पर उस मॉडल से नहीं जिस पर आगे बढ़ कर चीन भी पछता रहा है। अंधाधुंध शहरीकरण ने पर्यावरण का नाश कर दिया। जल संकट बढ़ गया और आर्थिक प्रगति ठहर गई। 

इसलिए शायद अब खादी उद्योग में पांच साल में 5 करोड़ लोगों को रोजगार दिलाने की योजना बनी है। इस सूचना की विश्वसनीयता पर सोचने की ज्यादा जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि यह जानकारी खुद केन्द्र सरकार के राज्यमंत्री गिरिराज सिंह ने मुम्बई में एक कार्यक्रम के दौरान दी है। 5 साल में 5 करोड़ लोगों को रोजगार की बात सुनकर कोई भी हैरत जता सकता है। खासतौर पर तब जब मौजूदा सरकार से इसी मुद्दे पर जवाब मांगने की जोरदार तैयारी चल रही है। सरकार के आर्थिक विकास के दावे को झुठलाने के लिए भी रोजगार विहीन विकास का आरोप लगाया जा रहा है। 

यह बात सही है कि मौजूदा सरकार ने सत्ता में आने से पहले अपने चुनाव प्रचार के दौरान हर साल 2 करोड़ रोजगार पैदा करने का आश्वासन दिया था। सरकार के अब तक 3 साल गुजरने के बाद इस मोर्चे को और टाला भी नहीं जा सकता था। सो हो सकता है कि अब तक जो सोच-विचार किया जा रहा हो उसे लागू करने की स्थिति वाकई बन गई हो लेकिन सवाल यह है कि 5 साल में 5 करोड़ रोजगार की बात सुनकर ज्यादा हलचल क्यों नहीं हुई। इससे एक प्रकार की अविश्वसनीयता तो जाहिर नहीं हो रही है। 

5 करोड़ लोगों को रोजगार दिलाने की सूचना देने का काम जिस कार्यक्रम में हुआ वह रेमंड की खादी के नाम से आयोजित था। यानी इस कार्यक्रम में निजी और सरकारी भागीदारी के मॉडल की बात दिमाग में आना स्वाभाविक ही था। सो राज्यमंत्री ने यह बात भी बताई कि खादी ग्रामोद्योग ने रेमंड और अरविंद जैसी कपड़ा बनाने वाली कम्पनियों से भागीदारी की है। जाहिर है कि निजी क्षेत्र के संसाधनों से खादी उद्योग को बढ़ावा देने की योजना सोची गई होगी। लेकिन यहां फिर यह सवाल पैदा होता है कि क्या निजी क्षेत्र किसी सामाजिक स्वभाव वाले लक्ष्य में इतना बढ़चढ़ कर भागीदारी कर सकता है। वाकई 5 करोड़ लोगों के लिए रोजगार पैदा करने की भारी-भरकम योजना के लिए उतने ही भारी भरकम संसाधनों की जरूरत पड़ेगी। फिर भी अगर बात हुई है तो उसका कोई व्यावहारिक या संभावना का पहलू देखा जरूर गया होगा। 

राज्यमंत्री ने इसी कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत में इसका भी जिक्र किया कि देश में खादी उत्पादों की बिक्री के 7 हजार से ज्यादा शोरूम हैं। इन शोरूमों में बिक्री बढ़ाई जा सकती है। इसी सिलसिले में उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खादी कपड़ों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जीरो डिफैक्ट जीरो अफैक्ट योजना शुरू की है। इसके पीछे खादी को विश्व स्तरीय गुणवत्ता का बनाने का इरादा है। जाहिर है कि विश्वस्तरीय बनाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी की इस्तेमाल की बातें भी शुरू हो जाएंगी। और फिर हाथ से और देसी तकनीक के उपकरणों से बने उत्पादों को महंगा होने से कौन रोक पाएगा। हां फैशन की बात अलग है। 

जिस तरह से खादी कपड़ों और दूसरे उत्पादों को बनाने में फैशन डिजाइनरों को शामिल कराने की योजना है उससे खादी उत्पादों को आकर्षक बनाकर बेचना जरूर आसान बनाया जा सकता है लेकिन पता नहीं डिजाइनर खादी के दाम के बारे में सोचा गया है या नहीं। खैर, अभी 5 करोड़ रोजगार की बात कहते हुए खादी उत्पादों को विश्व स्तरीय बनाने की बात हुई। यानी उत्पाद की मात्रा की बजाय गुणवत्ता का तर्क दिया गया है लेकिन आगे हमें बेरोजगारी मिटाने की मुहिम में बने खादी उत्पादों को खपाने यानी उसके लिए बाजार विकसित करने पर लगना पड़ेगा। यहां गौर करने की बात यह है कि इस समय भारतीय बाजार में सबसे ज्यादा जो माल अटा पड़ा है वे कपड़े ही हैं।

उधर विश्व में आर्थिक मंदी के इस दौर में विदेशी कपड़ों और दूसरे माल ने देशी उद्योग और व्यापार को पहले से बेचैन कर रखा है। यानी आज के करोड़ों बेरोजगार अगर कल कोई माल बनाएंगे भी तो उसे निर्यात करने के अलावा हमारे पास कोई चारा होगा नहीं। लेकिन रोना यह है कि इस समय सबसे बड़ी समस्या यही है कि दुनिया में अपने सामान को दूसरे देशों में बेचने के लिए हद दर्जे की होड़ मची है। क्या सबसे पहले इस मोर्चे पर निशिं्चत होने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।
 

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