जिन्हें सबसे ज्यादा जरूरत उन्हीं के पास नहीं अभी तक ‘आधार’

Wednesday, Jan 29, 2020 - 02:08 AM (IST)

बहिष्कार के बावजूद अधिकांश भारतीय ‘आधार’ से संतुष्ट हैं और मानते हैं कि कल्याणकारी सेवाओं की डिलीवरी में सुधार हुआ है। एक नए सर्वेक्षण के अनुसार, आधार एक दशक पहले अपनी शुरूआत के बाद से आई.डी. के तौर पर सबसे ज्यादा उपयोगी माना गया है।सर्वेक्षण में देश में ‘आधार’ की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला गया है। असम और मेघालय को छोड़कर 95 प्रतिशत वयस्क और 75 प्रतिशत बच्चे बायोमैट्रिक आई.डी. के लिए नामांकित हैं। उनमें से अधिकांश आधार को उपयोगी और प्रभावी मानते हैं। 97 प्रतिशत ने कहा कि वे आई.डी. से संतुष्ट हैं और अधिकांश ने महसूस किया कि आधार ने राशन की डिलीवरी, मनरेगा के तहत रोजगार और सामाजिक पैंशन को और अधिक विश्वसनीय बनाया है। लगभग देश की आधी आबादी ने पहली बार एक या अधिक सेवाओं के लिए इसे आई.डी. के तौर पर उपयोग किया है। चाहे वह कल्याण योजनाएं हैं या फिर निजी सेवाएं जैसे बैंक खाते आदि। 

हैरानी की बात यह है कि जिन लोगों को आधार के कारण सेवा से बाहर रखा गया था, उनमें से भी दो-तिहाई लोगों ने कहा कि वे इससे संतुष्ट हैं। इस प्रतिक्रिया से सिस्टम में उच्च स्तर के विश्वास का पता चलता है। रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में से एक डलबर्ग के पेट्रा सोंड्रेगर ने कहा, ‘‘लगभग 90 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि उनका डाटा आधार प्रणाली में सुरक्षित है।’’ हालांकि, कुछ को अभी तक फायदा नहीं हुआ है। केवल 5 प्रतिशत वयस्कों (या अनुमानित 28 मिलियन भारतीय) के पास आधार नहीं है, लेकिन यह अनुपात अल्पसंख्यक ईसाइयों और मुसलमानों के साथ-साथ अनुसूचित जनजातियों में अधिक है। पते के प्रमाण या लिंग पहचान में चुनौतियों के कारण लगभग 30 प्रतिशत बेघर और थर्ड जैंडर के 27 प्रतिशत निवासियों के पास आई.डी. नहीं है। 

आधार का पहली बार उपयोग करने वाले लोगों का शेयर
बैंक अकाऊंट    47 प्रतिशत
सिम कार्ड    38 प्रतिशत
राशन    23 प्रतिशत
मनरेगा    2 प्रतिशत
सोशल पैंशन    2 प्रतिशत

13 प्रतिशत ने बैंक में आधार डिटेल दी क्योंकि यह काफी सुविधाजनक था
3.3 प्रतिशत बैंक में खाता खोलने में नाकाम रहे क्योंकि उनके पास आधार नहीं था 

हालांकि जिन लोगों के पास आधार नहीं है, उनमें से 95 प्रतिशत ने कहा कि वे आई.डी. चाहते हैं। बातचीत में कई लोगों ने बताया कि कार्ड को अपडेट करवाने के लिए उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा।

आधार और डाटा अपडेट के लिए नामांकन बारे शिकायतें
आधार अपडेट    33 प्रतिशत
नामांकन    6 प्रतिशत
राशन कार्ड से लिंक    5 प्रतिशत
मनरेगा से लिंक    2 प्रतिशत
सोशल पैंशन से लिंक    2 प्रतिशत
डी.बी.टी. और बैंक अकाऊंट     2 प्रतिशत से लिंक 

इस कमी के कारण हुआ बहिष्करण
15 प्रतिशत लोग जिनके पास आधार नहीं था (भारतीय आबादी के अनुमानित 40 लाख लोग) उनको एक या अन्य सेवाओं से बाहर रखा गया। इसका अनुपात सीमांत समूहों और निम्न शिक्षा स्तरों वाले लोगों में अधिक था। जिस किसी को भी आसानी से नामांकित किया जा सकता है। अन्य लोगों को वहां पहुंचाने के लिए अब और अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत होगी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारतीय आधार की सार्वभौमिक स्वीकार्यता को पते या पहचान के प्रमाण के रूप में महत्व देते हैं लेकिन सार्वभौमिकता भी एक प्रमुख ङ्क्षचता है। कई लोग अपनी आई.डी. को बहुत सारी सेवाओं के साथ जोडऩे के कारण ङ्क्षचतित हैं और संभावित रूप से सेवाओं तक पहुंच खो रहे हैं। 

अल्पसंख्यक, हाशिए पर रहने वाले समूहों के पास आधार नहीं होने की संभावना है
आधार के बिना सामाजिक 
वर्ग (प्रतिशत में)
क्रिश्चियन 13, मुस्लिम 11, 
हिन्दू 7, जैन 4, सिख 3, बौद्ध 3 

8% औसतन देशवासियों के पास नहीं आधार 

एक और मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के बावजूद कि निजी सेवाओं के लिए आधार पर जोर नहीं दिया जा सकता फिर भी ज्यादातर लोगों का मानना है कि आधार बैंक, सिम कार्ड और स्कूलों के लिए अनिवार्य है। यह गलतफहमी इसलिए है क्योंकि सेवा के लिए आई.डी. की मांग जारी रखी गई है। सिम कार्ड या बैंक खाता खोलने के लिए आई.डी. का उपयोग करने वाले सभी लोगों में से आधे से अधिक ने कहा कि उनके प्रदाता ने केवल आधार स्वीकार किया। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 73 प्रतिशत बच्चों के स्कूल में प्रवेश के लिए आधार को आवश्यक बताया गया। आधार से संबंधित कारणों के चलते 6 से 14 वर्ष के 0.5 प्रतिशत बच्चे स्कूल में दाखिला नहीं ले पाए। सोंड्रेगर ने कहा, ‘‘प्रदाताओं को इसे स्वीकार करना आसान लगता है, लोगों को इसका उपयोग करना आसान लगता है और यह कुछ सेवाओं के लिए अनिवार्य है। यह सब एकमात्र आई.डी. (आधार) के रूप में आगे बढ़ रहा है, इसके बारे में सावधान रहना होगा।’’ 

अनुसूचित जनजाति में अन्य पिछड़ा वर्ग से कम हुआ आधार के लिए नामांकन

  • उच्च वर्ग    9 प्रतिशत
  • मध्यम वर्ग    3 प्रतिशत
  • अन्य पिछड़ा वर्ग    7 प्रतिशत
  • अनुसूचित जाति    8 प्रतिशत
  • अनुसूचित जनजाति    10 प्रतिशत
  • महिला    8 प्रतिशत
  • पुरुष    8 प्रतिशत
  • थर्ड जैंडर    27 प्रतिशत   

यद्यपि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि आधार के कारण शिक्षा का अधिकार प्रभावित नहीं होना चाहिए फिर भी देश के कई राज्यों में स्कूल में बच्चों के दाखिले के समय आधार की जरूरत बताई जाती है। 

10 लाख 
में से एक चौथाई बच्चे जिन्होंने दाखिला लेने की कोशिश की, वे आधार से संबंधित कारणों के कारण स्कूल में दाखिला नहीं ले सके, जोकि स्कूली बच्चों का 0.5 प्रतिशत है।

73 प्रतिशत 
बच्चों को स्कूल में नामांकन के लिए आधार की आवश्यकता बताई गई, जबकि 5 राज्यों-तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और पंजाब में 75 प्रतिशत से अधिक बच्चों के लिए आधार अनिवार्य बताया गया। 

13 प्रतिशत 
बच्चों का आधार के कारण स्कूल में देरी से नामांकन हुआ। 8 राज्यों में 10 प्रतिशत से अधिक स्कूली बच्चे आधार से संबंधित कारण के चलते मिड-डे मील से चूक गए।

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