यह वर्ष भी चुनावों में ही गुजर जाएगा

Thursday, Jan 11, 2018 - 11:47 PM (IST)

लगता है कि भारत हमेशा चुनावी मोड में रहता है। एक चुनाव गुजरे नहीं कि फिर दूसरे चुनावों की चर्चा शुरू हो जाती है। राजनीतिक पार्टियों को हर समय जहां चुनाव में हार-जीत की चिंता सताती रहती है, वहीं उन्हें चुनावी चोंचलों से भी फुर्सत नहीं मिलती। कौन नाराज है और कौन खुश, कौन-सा फैसला कब फायदेमंद रहेगा या फिर किस चुनाव में प्रतिष्ठा दाव पर रहेगी, यही सोचते-सोचते 5 साल गुजर जाते हैं।

मोदी सरकार 2014 में आई थी और उसके बाद से ऐसा लग रहा है कि हर साल चुनावी साल ही होता है। अभी पिछले साल के शुरू में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के चुनाव हुए तो फिर साल का अंत आते-आते गुजरात और हिमाचल की कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा।

अभी राजनीतिक दलों ने सांस भी नहीं ली कि 2018 में 8 राज्यों के चुनाव फिर से आन खड़े हुए हैं। पिछले साल के चुनावों को भी 2019 के आम चुनावों का सैमीफाइनल कहा जा रहा था और इस साल के चुनाव भी किसी लिहाज से कम नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह प्रस्ताव भी पाइपलाइन में है कि सभी राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ ही होने चाहिएं लेकिन लगता है कि फिलहाल उस पर ज्यादा गंभीरता किसी ने नहीं दिखाई। यही वजह है कि एक बार फिर से सारे राजनीतिक दल चुनावों की तैयारी में जुट रहे हैं।

2018 का साल भी पिछले साल की तरह चुनावों में ही बीतेगा। साल की शुरूआत में यानी अगले महीने 3 राज्यों नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव होने वाले हैं। इसके बाद अप्रैल-मई में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होंगे। साल के अंत में 4 राज्यों के चुनाव आने वाले हैं। ये हैं छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और मिजोरम। दरअसल इन 4 राज्यों के साथ हमेशा दिल्ली का नाम भी जुड़ा रहता था।

2013 में पिछले चुनाव दिल्ली में भी साथ ही हुए थे लेकिन तब दिल्ली में किसी को बहुमत नहीं मिला था और 49 दिन की ‘आप’ सरकार के गिरने के बाद 2015 की शुरूआत में दिल्ली में चुनाव हुए। जाहिर है कि अब दिल्ली की बारी 2020 में आएगी।
सबसे पहले चुनाव होने हैं-नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में। नागालैंड में भाजपा और कांग्रेस के लिए कुछ खास नहीं है।

2013 के चुनावों में नागालैंड पीपल्स फ्रंट ने 60 में से 37 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। कांग्रेस 8 और भाजपा सिर्फ 2 सीटें जीत पाई थी। लोकसभा की एकमात्र सीट भी एन.पी.एफ. के हिस्से ही रही थी लेकिन बहुत से लोग यह मांग कर रहे हैं कि नागालैंड में विधानसभा चुनाव कराने की बजाय वहां पर राष्ट्रपति शासन लागू करके विद्रोह को खत्म करने की कोशिशें होनी चाहिएं।

हालांकि संवैधानिक रूप से यह कैसे संभव हो पाएगा, कहा नहीं जा सकता। नागालैंड की तरह त्रिपुरा में भी देश के 2 बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस और भाजपा के लिए कुछ खास नहीं है। वहां माक्र्सवादी माणिक सरकार जितनी सादगी और कुशलता से सरकार चला रहे हैं, उसका जवाब किसी के पास नहीं है।

पिछले चुनावों में भी माकपा वहां 60 में से 49 सीटें जीत गई थी। अगर अब वह लगातार 5वीं बार भी सत्ता में आ जाए तो किसी को हैरानी नहीं होगी। यही वजह है कि कांग्रेस या भाजपा की ज्यादा रुचि वहां दिखाई नहीं दे रही। इसकी बजाय प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तीसरे राज्य मेघालय में ज्यादा दखल दे रहे हैं। राज्य में इन दिनों दल-बदल का बाजार गर्म है। भाजपा एन.पी.पी. की मार्फत कांग्रेस में तोडफ़ोड़ करा रही है तो कांग्रेस एन.सी.पी. के विधायकों को तोड़कर मुकुल संगमा की सरकार को बचा रही है।

मणिपुर में जिस तरह भाजपा ने तोडफ़ोड़ करके पिछले साल सरकार बनाई थी, यहां भी कुछ वैसा ही घटनाक्रम चल रहा है। 2013 के चुनावों में 60 में से कांग्रेस ने 29 सीटें जीती थीं और आराम से सरकार बना ली थी लेकिन इस बार दल-बदल के बाद क्या हालात होंगे, यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा।

इन 3 राज्यों की राजनीति को राष्ट्रीय राजनीति में ज्यादा महत्व नहीं मिलता। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है कर्नाटक के चुनावों को। कर्नाटक विधानसभा की अवधि मई में खत्म हो रही है और इस हिसाब से वहां अप्रैल में चुनाव होने चाहिएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस सरकारों को हटाने की जिस मुहिम में जुटे हुए हैं, उसमें कर्नाटक एक बड़ा पड़ाव है।

गुजरात और हिमाचल जीतने के बाद भाजपा ने अब की बार कर्नाटक का उद्घोष पहले ही कर दिया है। इस बार चुनाव बी.एस. येद्दियुरप्पा के नेतृत्व में ही लड़े जाएंगे जो पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं। भाजपा पिछली बार येद्दियुरप्पा से खुश नहीं थी और चुनाव भी हार गई थी। 225 में से उसे सिर्फ 44 सीटें ही मिली थीं।

हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा का जनता दल (एस) भी वहां मौजूद है लेकिन सत्ता की लड़ाई तो कांग्रेस और भाजपा में ही होगी। भाजपा अगर कर्नाटक में जीत जाती है तो यह कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल की बड़ी परीक्षा कर्नाटक में ही होने वाली है।

इन 4 राज्यों में चुनाव के बाद दूसरा चरण जिन राज्यों में होगा, वहां भाजपा को न केवल अपनी प्रतिष्ठा बचानी होगी बल्कि इन राज्यों में जीत हासिल करके 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए जीत का माहौल भी बनाना होगा। अगर इन राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन किसी भी लिहाज से कम रहा तो फिर 2019 के चुनावों में आसान जीत का सपना भाजपा नहीं देख पाएगी।

भाजपा के लिए खासतौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव एक महासंग्राम जैसे हैं। इन 3 राज्यों में भाजपा लगातार 3 बार से जीत रही है। लगातार चौथी बार चुनाव जीतना किसी भी पार्टी या नेता के लिए आसान नहीं होता। गुजरात में भाजपा को जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा है, वैसी ही स्थिति इन 3 राज्यों में भी है।

हालांकि तीसरी बार भी जीत हासिल करना एक बड़ी चुनौती होती है लेकिन 2013 के चुनावों में मोदी लहर काफी तेजी से चल रही थी। मोदी जी प्रधानमंत्री पद के दावेदार घोषित हो चुके थे और भाजपा विजय रथ पर सवार थी। यही वजह है कि मध्य प्रदेश में कुल 230 में से 165, राजस्थान में 200 में से 163 और छत्तीसगढ़ में 90 में से 50 सीटें भाजपा के खाते में चली गई थीं।

भाजपा को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एंटी इंकम्बैंसी का नुक्सान हो सकता है और राजस्थान में हर बार सत्ता पलटने की परंपरा को झेलना पड़ सकता है। यही वजह है कि कर्नाटक के चुनावों के बाद भाजपा अपनी सारी ताकत इन 3 राज्यों में झोंक देगी। जहां तक मिजोरम का सवाल है पिछली 2 बार से वहां कांग्रेस जीत रही है। भाजपा में मारालैंड डैमोक्रेटिक फ्रंट का विलय कुछ संभावनाएं बदल सकता है। 

भाजपा पूर्वोत्तर राज्यों में लगातार अपना आधार बढ़ाने में लगी हुई है। इसलिए कांग्रेस के लालथनहावला को वह चुनौती देने के लिए तैयार है। पिछली बार 40 में से कांग्रेस ने 34 सीटों पर जीत हासिल करके सभी को पीछे छोड़ दिया था। इस बार कांग्रेस सरकार बना पाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा।

कुल मिलाकर इन 8 राज्यों का चुनाव पूरे साल ही देश को राजनीतिक सरगर्मियों से सराबोर रखेगा। कांग्रेस के लिए कर्नाटक प्रतिष्ठा का सवाल होगा तो भाजपा के लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी साख बचाने की चुनौती होगी। इन दोनों को इस साल जो भी नतीजे हासिल होंगे, उसी के भरोसे ये दोनों पार्टियां 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरेंगी।                  दिलबर गोठी

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