‘इस वर्ष का बजट 6 सिद्धांतों पर आधारित’

punjabkesari.in Wednesday, Feb 10, 2021 - 04:02 AM (IST)

पिछले कुछ दिनों से, राजनीति के दोनों पक्ष के लोगों के बीच एक मुहावरा चर्चा का विषय है, वह है -‘वी-आकार की रिकवरी’। मेरी याद में पिछली बार ‘वी’ अक्षर लोगों के बीच चर्चा में तब आया था, जब कलात्मक ब्रिटिश फिल्म ‘वी फॉर वेंडेटा’ रिलीज हुई थी। वित्त मंत्री के भाषण से पहले, विपक्षी दलों के कई बुद्धिजीवियों / नेताओं ने बदला लेने का बजट (वी फॉर वेंडेटा) की वकालत की थी-आय कर में वृद्धि करें, कॉरपोरेट्स पर भारी टैक्स लगाएं, सरकारी खर्च में कमी करें, आदि। लेकिन यदि मुझे इस बजट का कोई शीर्षक देना हो, तो मैं इसे प्रमाण देने वाला वी बजट (वी फॉर विंडीकेशन) कहूंगा। यह बजट आर्थिक पुनरुद्धार की दिशा में सरकार के दृष्टिकोण का एक व्यापक प्रमाण है। 

सरकार ने इस बजट के माध्यम से जो हासिल करने का लक्ष्य रखा है, वह वास्तव में साहसिक है और इसने निश्चित रूप से छोटे उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बड़े लक्ष्य का त्याग नहीं किया है। हमारी सामूहिक स्मृति के सबसे बड़े संकट के बीच यह बजट आया है-वैश्विक महामारी, जिसने पिछले साल के अधिकांश समय को बर्बाद कर दिया। भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग 7 प्रतिशत तक संकुचित हो गई, राजस्व संग्रह निम्न स्तर पर चला गया और व्यय में तेज वृद्धि हुई, मांग में बहुत कमी आई, निर्यात घट गया तथा व्यापार निवेश में विराम लग गया। राजस्व में कमी के बावजूद अर्थव्यवस्था की गति को बनाए रखने का एकमात्र उपाय था-सरकारी खर्च। इसलिए सरकारी खर्च, 2020 में आसमान छू गया। इसका अधिकांश हिस्सा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को किफायती खाद्यान्न उपलब्ध कराने में खर्च हुआ। 

इस तरह की राजकोषीय चुनौती के सामने, कोई भी अन्य सरकार अपने घुटनों के बल बैठी होती, जिसके ऊपर अपने घटकों को प्रसन्न करने के लिए दबाव होता या जो आर्थिक विकास के लिए छोटे-मोटे निर्णय कर रही होती। लेकिन सरकार ने समस्या का मुकाबला किया और उत्पादक-विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 9.5 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे की चुनौती को स्वीकार किया।

सरकार अपने राजकोषीय अनुशासन में असाधारण रूप से विवेकपूर्ण रही है, लेकिन मुश्किल समय ने सरकार को अगले पांच वर्षों में राजकोषीय घाटे को सही करने के लिए इसे दोगुना करने पर बाध्य किया। सरकार ने समझदारी से यह किया है-पूंजीगत व्यय को बढ़ाया गया है, अर्थात उत्पादक परिसंपत्तियों के निर्माण में 26 प्रतिशत की वृद्धि के साथ कुल 5.5 लाख करोड़ रुपए की धनराशि का आबंटन। गैर-उत्पादक राजस्व व्यय को काफी कम किया गया है। उत्पादक परिसंपत्तियों के निर्माण में वृद्धि का नौकरियों और खर्च पर गुणात्मक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार, इस बजट को बारीकी से समझने की जरूरत है। 

जब समय ने कदम बढ़ाने और पुनरुद्धार की जिम्मेदारी लेने का आह्वान किया, तो सरकार ने ठोस निर्णय लिए और अपने स्वयं के खर्च पर अन्य क्षेत्रों को फिर से पटरी पर आने के लिए उत्साह प्रदान किया। यह जोखिम, वास्तव में विश्वास और प्रशंसा का प्रमाण है, जिसके द्वारा सरकार ने अपने लोगों की उद्यमशीलता की भावना को रेखांकित किया है। महामारी की शुरूआत में, भारत शायद ही किसी मास्क या पीपीई (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) का निर्माण कर रहा था। सरकार ने उद्यमियों को मास्क व पी.पी.ई.के सबसे बड़े निर्माता के रूप में देश को परिवर्तित करने की जिम्मेदारी सौपी और उद्योग जगत ने इस कार्य को बखूबी अंजाम दिया। 

केवल एक चीज है, जो भारत में निवेशकों के विश्वास को और बढ़ा सकती है, वह है-एक सपनों का बजट। बजट घोषणा के बाद से शेयर बाजार में लगातार तेजी का रुख जारी है। एक ताॢकक सवाल यह है कि यदि सरकार टैक्स नहीं बढ़ा रही है तो वह इस पूंजीगत व्यय को कैसे पूरा कर पाएगी? इसका जवाब है विनिवेश, आई.पी.ओ. और सरकार के पास मौजूद परिसंपत्तियों की क्षमता का बेहतर इस्तेमाल। इस प्रकार, इस बजट में 1.75 लाख करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य, सरकार और राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की संपत्ति का विमुद्रीकरण, 2  सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण और एल.आई.सी. का आगामी आई.पी.ओ. आदि निर्धारित किए गए हैं। 

इस वर्ष का बजट 6 सिद्धांतों - स्वास्थ्य एवं देखभाल; भौतिक व वित्तीय पूंजी एवं  बुनियादी ढांचा; महत्वाकांक्षी भारत के लिए समावेशी विकास; मानव पूंजी (श्रम शक्ति) की मजबूती; नवाचार एवं अनुसंधान तथा विकास; और न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप एवं अधिकतम शासन-पर आधारित है। इस महामारी से हमारे स्वास्थ्य संबंधी ढांचे की अपर्याप्तता सामने आई। पूरी दुनिया अस्पतालों में अत्यधिक भीड़, बिस्तरों एवं वैंटीलेटरों की कमी और अफरा-तफरी के माहौल से ग्रसित थी। इस महामारी से पूरी निपुणता के साथ निपटकर सरकार ने कई वैश्विक विचारकों को अवाक कर दिया। एक बात निश्चित है कि यह सरकार, एक अस्तित्व बचाने वाला बजट, एक उबरने वाला बजट या अल्पकालिक उपायों वाले बजट का विकल्प चुन सकती थी। लेकिन इसने दीर्घकालिक उपायों के बारे में सोचने का साहस और हौसला दिखाया और एक विकासोन्मुखी बजट व पुनरुत्थान के बजट का विकल्प चुना।-गजेंद्र सिंह शेखावत केंद्रीय जल शक्ति मंत्री 


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