‘ये खामोशी’ बेमतलब की लगती है

Sunday, Feb 21, 2021 - 04:10 AM (IST)

क्या यह ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के लिए अजीब नहीं। इसे हम कोवाशील्ड के नाम से जानते हैं। यह एक हमारी मुख्य वैक्सीन है और हम इसकी प्रभावकारिता और खुराक के बारे में अंतर्राष्ट्रीय बहस से बेखबर हैं। मैं एस्ट्राजेनेका के नतीजों के द्वारा उत्पन्न हुए भ्रम की बात नहीं कर रहा। जब इसने 2 पूरी खुराकों के बाद इसकी 62 प्रतिशत प्रभावकारिता के बारे में दावा किया था। 

मगर 90 प्रतिशत आधी खुराक के बाद। उसके बाद एक पूरी खुराक के पश्चात इसकी प्रभावकारिता का दावा किया गया। हालांकि यह अनसुलझा पहलू है, जो इतिहास में फिसल गया है। मेरी चिंता 2 हालिया मुद्दों को लेकर है और हमारी सरकार ने उनके बारे में एक शब्द भी नहीं बोला है। 

पहला विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 10 तारीख को जारी किया गया एक आधिकारिक दिशा-निर्देश है। एक अवलोकन के प्रकाश में दो खुराक की प्रभावकारिता तथा प्रतिरक्षाजनकता एक लम्बे अंतराल के साथ बढ़ती है। खुराकों के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) 8 से 12 हफ्तों के अंतराल का सुझाव देता है। हमारे शीर्ष वैक्सीन वैज्ञानिक गगनदीप कंग ने इसके पीधे के कारणों का व्याख्यान किया है। 

दूसरी खुराक की उपलब्धता में देरी के कारण 59 प्रतिशत प्रभावकारिता ट्रायल सैंपल ने पहली के बाद 4 से 8 सप्ताहों के बीच दूसरी खुराक ली। 9 से 12 सप्ताहों के बीच 22 प्रतिशत तथा 12 सप्ताहों के बाद 16 प्रतिशत। उनकी वैक्सीन की प्रभावकारिता 56 प्रतिशत, 70 प्रतिशत तथा 78 प्रतिशत क्रमानुसार थी। यह निष्कर्ष निकलता है कि खुराक के बीच लम्बे अंतराल के साथ बढ़ती प्रभावकारिता का एक स्पष्ट रुझान इंगित होता है। यह एक बेहतर मानवीय प्रतिक्रिया थी। 

इसलिए इस दिशा-निर्देश के रूप में ये अच्छे सबूत हैं। ये तीन अन्य कारणों से भी समझ आता है। एक लम्बे अंतराल का मतलब है कि अधिक लोग जल्दी से एक टीका प्राप्त कर सकते हैं। यदि अधिक लोग इसे प्राप्त करते हैं तो हम बेहतर रूप से संरक्षित होंगे यदि इसकी दूसरी लहर न आए तो। भगवान ऐसा न करे कि यह दोबारा आए। मामलों तथा मौतों के तेजी से घटने के कारण हम अंतराल को बढ़ाने की स्थिति में होंगे। 

फिर भी सरकार इस मुद्दे पर चुप है। अगर बात की जाए तो ऐसा इसलिए किया गया है कि यह एक आदर्श वाक्य है। क्यों? यह एक ऐसा मामला है जिस पर मैं एक विश्वसनीय विचार की उम्मीद करना चाहूंगा,अगर विश्वासमत भी हो। इसके अलावा इसे व्यापक रूप से ज्ञात करने की आवश्यकता है। खामोशी बेमतलब की लगती है। 

दूसरा मामला बेहद जटिल लगता है मगर सरकार में प्रतिक्रिया की कमी और ज्यादा हैरान करने वाली है। यह 65 वर्ष की आयु के ऊपर के लोगों के लिए एस्ट्राजेनेका की प्रभावकारिता के बारे में है क्योंकि प्रभावकारिता परीक्षणों में प्रतिभागियों का 10वां हिस्सा 65 वर्ष से ऊपर आयु के लोगों का था। जर्मनी तथा डेनमार्क ने इस आयु वर्ग के लोगों को वैक्सीन न देने का निर्णय लिया। 

इस पर टिप्पणी करते हुए कंग लिखते हैं कि 65 से अधिक वर्षों की आयु वाले लोगों के परीक्षण में 92 प्रतिशत की वैक्सीन प्रभावकारिता दिखाई पड़ी जो अच्छी नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि फर्म के निष्कर्ष के लिए संख्या बहुत कम है। ऐसा लगता है कि स्पेन, इटली और बैल्जियम एक कदम आगे निकल गए हैं। उन्होंने 55 से अधिक आयु वाले लोगों को एस्ट्राजेनेका नहीं देने का निर्णय लिया है। स्विट्जरलैंड तो इसे बिल्कुल भी नहीं दे रहा। 

अब ये ऐसे देश हैं जिनके पास 65 वर्ष से ऊपर के लिए साबित प्रभावकारिता के विकल्प हैं। हमारे पास ऐसा नहीं है। हमारा विकल्प कोवा वैक्सीन तथा इसकी प्रभावकारिता है जिसे अभी सिद्ध करना बाकी रहता है। सौभाग्यवश विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक अलग ही निष्कर्ष निकाला है। इसके दिशा-निर्देश कहते हैं कि डब्ल्यू.एच.ओ. 65 या उससे ऊपर की आयु वर्ग के लोगों के इस्तेमाल के लिए वैक्सीन की सिफारिश करता है। वहीं कंग ने प्रभावकारिता और प्रतिरक्षाजनकता दोनों पर विचार करने के बाद ऐसा किया है। इसलिए कोई कारण नहीं है कि हम इसे इस आयु वर्ग को न दें। 

मुझे दो अन्य असंबद्ध मुद्दों को उठाकर समाप्त करना चाहिए। फ्रांस ने किसी भी वैक्सीन को उन लोगों को एक खुराक देने का निर्णय लिया जिनको कोविड था। जैसा कि कंग कहते हैं, उनका मानना है कि एक संक्रमण और एक टीकाकरण वैक्सीन की दो खुराकों के बराबर है। क्या यह वह है जिस पर हमें भी विचार करना चाहिए? दूसरा यह कि दिया गया टीका संकोच है। हम केवल अपने लक्ष्य का 60 प्रतिशत पूरा कर रहे हैं। क्या हमें एक राष्ट्रव्यापी रोलआऊट जारी रखने की बजाय मामलों की ङ्क्षचता करने वाली संख्या पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए? क्या इस बारे सोचा गया है? यदि मुझे यह जानना पसंद है तो इसे अनजाने में क्यों माना गया?-करण थापर
 

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