अमरीका के असली चेहरे को बेनकाब करता यह चुनाव

punjabkesari.in Wednesday, Oct 30, 2024 - 05:44 AM (IST)

अमरीकी चुनाव का विश्लेषण करने से पहले कबीरदास से क्षमायाचना करते हुए एक तुकबंदी पेश है :
कमला, ट्रम्प दोऊ खड़े, काके करूं सखाय। 
बलिहारी ट्रम्प आपनो, जिन अमरीका दियो दिखाय॥
भावार्थ : कवि कहता है कि मेरे सम्मुख डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस दोनों खड़े हैं और इस नाचीज हिंदुस्तानी की दुविधा है कि किससे दोस्ती करूं। फिर उसके समक्ष सत्य का प्रकाश होता है और वह कह उठता है : जय हो ट्रम्प साहेब की, जिन्होंने पूरी दुनिया को अमरीका का सच्चा चेहरा दिखा दिया।

दरअसल अमरीका के चुनाव को देखने के तीन नजरिए हो सकते हैं। पहला, बाकी दुनिया की तरह हम खाली बैठे उत्सुकता  से चुनाव के परिणाम का अनुमान लगा सकते हैं, मानो यह इंगलैंड और ऑस्ट्रेलिया का टैस्ट मैच हो। अमरीकी राजनीति के विद्वानों की राय मानें तो इस बार कांटे की टक्कर है। रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के दावेदार डोनाल्ड ट्रम्प और डैमोक्रेटिक पार्टी की ओर से निवर्तमान उप राष्ट्रपति और पहली बार राष्ट्रपति के चुनाव में उतरी कमला हैरिस दोनों को लगभग एक बराबर वोट मिलने की संभावना है, 45 प्रतिशत के आसपास। अनुमान है कि वोटों में कमला हैरिस 2 से 3 प्रतिशत आगे रह सकती हैं। लेकिन अमरीका की चुनाव पद्धति इतनी अजीब है कि अधिक वोट आने के बावजूद कमला हैरिस के चुनाव हारने की संभावना ज्यादा है।

दूसरा नजरिया एक चिंतित विश्व नागरिक का होगा। हम चिंता कर सकते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प जैसी खड़ दिमाग दुनिया के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति बनने का पूरी दुनिया पर क्या असर पड़ेगा? लेकिन सच यह है कि हमारी चिंता करने से कुछ होने वाला नहीं। यूं भी, जो भी अमरीकी राष्ट्रपति बने, हमारे जैसे देशों को कोई खास फर्क पडऩे वाला नहीं। अमरीकी चुनाव पर एक तीसरा नजरिया भी हो सकता है, एक ठेठ हिन्दुस्तानी नजरिया। बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनने की बजाय हम दूर से इस चुनाव को देखें और सीखें। अमरीका के चुनावी घमासान के चलते अचानक अमरीकी सपने का सुनहरी पर्दा गिर गया है और  उसका फायदा उठाकर पूरी दुनिया को लोकतंत्र का उपदेश देने वाली जन्नत की हकीकत देखने का मौका न छोड़ें। इस नजर से देखने पर हमें सबसे आगे डोनाल्ड ट्रम्प नामक महाशय मिलेंगे, जिनके साथ आधा अमरीका खड़ा है, आधे से ज्यादा श्वेत और मर्द मतदाता खड़े हैं, ऐलन मस्क जैसे रईस खड़े हैं। जब आप इन महाशय की जन्मकुंडली पर नजर दौड़ाते हैं तो पाते हैं कि दुनिया का कोई ऐसा कुकर्म नहीं, जिससे इन्हें परहेज रहा हो। डोनाल्ड ट्रम्प ने रियल एस्टेट और बिल्डर के काम से 660 करोड़ डॉलर (लगभग 55,000 करोड़ रुपए) का साम्राज्य बनाया है, टैक्स फ्रॉड में पकड़े जा चुके हैं। अपने बिजनैस के अलावा झूठ और नफरत का धंधा खुलकर चलाते हैं। गैर श्वेत आप्रवासियों के बारे में खुलकर अफवाह फैलाते हैं। हाल ही में उन्होंने कहा कि अमरीका में आए मैक्सिकन आप्रवासी कुत्तों-बिल्लियों को खा रहे हैं। बात झूठी निकली लेकिन ट्रम्प सच और झूठ के बीच कोई भेद नहीं करते। अमरीका का मीडिया ट्रम्प के झूठ को झूठ बताने में कोताही नहीं करता। 

डोनाल्ड ट्रम्प औरतों के मामले में बदनाम हैं : तीन बार शादी की है, दर्जनों अफेयर रहे, औरतों के बारे में खुलकर अश्लील टिप्पणियां करते रहे हैं। जुबान बेलगाम है। उनके साथ व्यापार में, राष्ट्रपति कार्यालय में और पार्टी में काम करने वाले अनगिनत लोग उनकी बेईमानी, बदमजगी, बेवकूफी, बदतमीजी और बेहयाई की शिकायत कर उनका साथ छोड़ चुके हैं। यही नहीं, पिछली बार 2020 में राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद ट्रम्प साहब ने अपने समर्थकों को राजधानी और संसद भवन पर हमला करने के लिए उकसाया, वहां बलवा कराया और अमरीकी इतिहास में पहली बार तख्ता पलटने की कोशिश करवाई। यह सब कोई खुफिया आरोप नहीं हैं। अगर आप विकीपीडिया चैक करेंगे तो ट्रम्प साहब के कारनामों की अलग-अलग 79 एंट्रीज मिलेंगी। आप सोचेंगे कि ऐसी छवि वाला व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में बचा कैसे है? यह सवाल आपको मंच की दूसरी तरफ ले जाएगा, जहां आपको इक्यासी साल के एक बुजुर्ग जो बाइडेन मिलेंगे। खोए-खोए से, लडख़ड़ाते हुए यह सज्जन इस वक्त अमरीका के राष्ट्रपति हैं, दुनिया की सबसे ताकतवर फौज के कमांडर हैं। कुछ महीने पहले तक डोनाल्ड ट्रम्प के सामने डैमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार भी थे। वो तो भला हो एक टी.वी. डिबेट का, जिसमें ट्रम्प से बहस करते हुए बाइडेन साहब की मानसिक अवस्था की कलई खुल गई और उनके समर्थकों को उन्हें बीच रास्ते इस दौड़ से बाहर निकालना पड़ा। 

अब डोनाल्ड ट्रम्प का मुकाबला कर रही हैं कमला देवी हैरिस। भारतीय मूल की तमिल मां और जमैका के अश्वेत पिता की संतान कमला एक अश्वेत महिला हैं, पढ़ी लिखी हैं, शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं और बोलने में चुस्त। उनकी पृष्ठभूमि से आप यह न समझ लें कि उन्हें भारत या तीसरी दुनिया के अश्वेत लोगों से कोई हमदर्दी है। इस मायने में वे अमरीकी मुख्यधारा राजनीति की प्रवक्ता हैं, इसराईल की समर्थक, दुनिया में अमरीकी दादागिरी की वकालत करती हैं और अमरीका के भीतर थैलिशाहों के साथ हैं। उन पर कोई बड़ा आरोप नहीं है। न कुछ बुरा करने का, न कुछ अच्छा करने का। न बुरा बोलने का, न अच्छा सोचने का। तमाम बड़े नेताओं की तरह वह भी विचार मुक्त हैं। यह है विकल्प अमरीका की जानता के सामने।

अगर आप दुनिया के हाशिए पर बैठ कर अमरीकी चुनाव में झांकेंगे तो आप समझेंगे कि असली सवाल यह नहीं है कि अमरीकी चुनाव में कौन जीतेगा। सवाल यह है कि अमरीका का चुनाव इन विकल्पों तक क्यों सिमट गया है? डोनाल्ड ट्रम्प जैसा व्यक्ति दूसरी बार राष्ट्रपति बनाने के करीब क्यों पहुंच गया है? क्या अमरीकी समाज का रातों रात इतना पतन हो गया है? यानी हमें अचानक अमरीकी समाज का पूरा सच देखने का मौका मिल गया है? क्या ट्रम्प एक औसत अमरीकी की दबी-छिपी कुंठाओं और अमरीकी चरित्र की अभिव्यक्ति हैं? या दुनिया भर में अब महामानव नेताओं से पिंड छुड़ाकर औसत की पूजा का युग शुरू हो गया है? जैसा अरस्तु का डर था : क्या लोकतंत्र भीड़तंत्र में बदल रहा है?-योगेन्द्र यादव
 


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