देश को एक समान रखने की सोच
punjabkesari.in Friday, Jun 30, 2023 - 05:41 AM (IST)

समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री का बयान आ गया है। एक देश, एक कानून की जरूरत बता दी गई है। सामान्य अर्थों में ये कानून शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा। यानी समाज के हर नागरिक को मिले सामाजिक और धार्मिक अधिकार को दरकिनार करके एक कानून से चलना होगा। संविधान के नीति-निर्देशक तत्वों वाले अनुच्छेद-44 के तहत राज्य समान नागरिक संहिता बना तो सकते हैं मगर अनुच्छेद 254-ख के अनुसार बिना राष्ट्रपति की अनुमति के वह कानून लागू नहीं हो सकता।
पर असली सवाल समाज और धर्म का है। जिसके तहत सदियों से उसके मानने वालों को कई अधिकार मिले हैं। वैसे अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, ङ्क्षलग आदि के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव करने की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार लोगों को दिया गया है। लेकिन, महिलाओं के मामले में इन अधिकारों का लगातार हनन होता रहा है। बात चाहे तीन तलाक की हो, मंदिर में प्रवेश को लेकर हो, शादी-विवाह की हो या महिलाओं की आजादी को लेकर हो, कई मामलों में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है।
देश में अभी शरिया कानून, 1937, हिंदू मैरिज एक्ट, 1955, क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872, पारसी मैरिज और डायवोर्स एक्ट, 1936 आदि चलन में हैं। इनमें बदलाव की बात समय समय पर होती रही है। मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक शरिया कानून 1400 साल पुराना है, क्योंकि यह कानून कुरान और पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित है। इसी तरह ङ्क्षहदू मैरिज एक्ट भले ही आजादी के बाद बना हो, पर उसका धार्मिक आधार सदियों पुरानी मान्यताओं से आया है।
धर्म और कानून : कहते हैं कि आस्था तर्क से नहीं चलती है। भारत में मौजूद सभी धर्मों को अपनी परंपराओं और विश्वास के आधार पर धर्म स्थान बनाने, कर्मकांड-रीतियां निभाने, व्रत-त्यौहार-पूजा आदि करने, पहनावे ओढ़ावे और प्रसाद-लंगर की आजादी है। भारत की समरसता और विविधता के पीछे सभी धर्मों का मेल-जोल और ङ्क्षहदू बहुल आबादी का स्वीकार्यता और जीवनशैली सरीखा नजरिया रहा है। हिंदूू धर्म से और धर्मों में गए लोग अभी भी हिंदू जातियों के नाम-जाति का प्रयोग करते हैं और यही भारत की विशेषता है। धार्मिक अधिकार को लेकर सजग रहने वाले धर्म भी भारत में बहुत कुछ सांझा करके चलने में यकीन करते रहे हैं, तभी हमारे यहां हुसैनी ब्राह्मण हैं तो दक्षिण में जीसस का मंदिर जैसी संरचना भी खबरों में रहती है। लेकिन जब इन्हीं धर्मों के सामने अपने विश्वास और परंपराओं पर बने सामाजिक नियमों और आधारों को एक सांचे-ढांचे में ढालने की बात आती है तो कई संदेह पेश किए जाने लगते हैं।
3 धार्मिक मामलों से समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे समान नागरिक संहिता 3 धर्मों के मौजूदा पारंपरिक कानूनों को प्रभावित करेगा। पहला मामला 1985 का शाहबानो का है, जिसमें कोर्ट के फैसले को संसद ने पलट दिया था। इस मुद्दे पर तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, ‘‘संसद को एक समान नागरिक संहिता की रूपरेखा बनानी चाहिए, क्योंकि ये एक ऐसा साधन है जिससे कानून के समक्ष समान सद्भाव और समानता की सुविधा देता है।’’
ईसाई धर्म-कानून के अनुसार अविवाहित ईसाई महिलाओं को अपने बच्चे का ‘नैचुरल गाॢजयन’ नहीं माना जा सकता, जबकि अविवाहित हिंदू महिला को बच्चे का ‘नैचुरल गार्जियन’ माना जाता है। हिंदू उत्तराधिकार कानून में भी 2005 में संशोधन कर बेटियों को बेटों की तरह पैतृक संपत्ति में अधिकार दिया। अब यही कानून अगर सभी धर्मों पर लागू किया जाए तो बहुत सारे धर्मों को अपने मूल विश्वासों में बदलाव करने होंगे।
जाहिर तौर पर अगर यू.सी.सी. पूरे देश में लागू होता है तो एक संभावना ये है कि इसके लागू होते ही ङ्क्षहदू, बौद्धों, सिखों और जैनियों समेत मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों को लेकर सभी वर्तमान कानून निरस्त हो जाएंगे। इसके बाद देशभर में सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे। इसी को लेकर कई धर्मों में शक-शुबहा जारी है। सरकार अपनी ओर से इसे देशहित में बताकर सभी को साथ लाना चाहती है, और विपक्ष इसे भारत की भावना के खिलाफ बता रहा है।
कानून और समाज पर असर : जाति, वर्ण, पंथ, संप्रदाय में बंटे हमारे समाज में बहुत सारी हकीकतें परिवार, रिश्तेदार, पाटीदार, रसूख, पद, जायदाद, शारीरिक बनावट आदि से तय होती है। इस मामले में हमारे यकीन और पूर्वाग्रह बहुत धीरे-धीरे बदलते हैं। किसी कानून के बनने से बदलाव तुरंत नहीं आते हैं। समान नागरिक संहिता लागू होने की सूरत में विवाह, संपत्ति, उत्तराधिकार आदि के जटिल विश्वास बदलने होंगे।
सरकार को ऐसे में सबसे पहले इसे किसी एक धर्म पर लागू करके मिसाल बनाकर पेश करना चाहिए। भारत के लिए ङ्क्षहदू धर्म सदा से सर्वग्राही और समरसता भरा रहा है। उसमें लोगों और संस्कृतियों को अपनाने की अद्भुत क्षमता रही है। समाज के एक वर्ग का आगे आकर बदलाव के लिए तैयार दिखना एक उदाहरण सरीखा होगा, सरकार ने पहले भी स्वच्छता, गैस योजनाओं, भ्रष्टाचार के लिए देश के नागरिकों को प्रेरित किया है। समान नागरिक संहिता जैसे विशाल फैसले के लिए समाज और अन्य दलों को तैयार करना सरकार के लिए एक चुनौती होगा, लेकिन बदलाव के हिमायती लोग इसके नफा-नुक्सान देखकर इस पर तैयार किए जा सकते हैं।-भव्य श्रीवास्तव