कुछ कहने से पहले उस पर ‘बुद्धिमानी’ से विचार करें

Sunday, Jun 28, 2020 - 03:29 AM (IST)

मैं उस समय केवल 19 वर्ष का था और मुश्किल से इंटरनैट चला सकता था लेकिन संचार की कला के कुछ अंश जो मैंने टाटलर की एक लम्बी  प्रति में रखे थे तब से मेरे साथ रहे हैं। मेरे लिए यह बात गहरी नहीं थी मगर एक यादगार जरूर थी। 4 दशकों के बाद मैं भी उन सुझावों को याद करता हूं जो मुझे पेश किए गए थे। इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या कहना चाहते हैं। उसका बुद्धिमानी से विचार करें। एक किशोर के रूप में मैंने इस सलाह को एक तरफ रख दिया मगर एक वयस्क के रूप में मुझे एहसास है कि यह कितना बुद्धिमान है। 

पिछले सप्ताह भारतीय राजनीतिक प्रणाली में 3 गणनाओं को मैंने देखा। सरकार और विपक्ष दोनों के चेहरे पीले हो रहे थे। उन्होंने टैलीविजन पर बात की। इसलिए उन्होंने जो कहा उससे इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘न कोई वहां हमारी सीमा में घुस आया है और न ही कोई घुसा हुआ है।’’ प्रधानमंत्री की गलती बेहद शर्मनाक थी। मैं यह मानने के लिए तैयार हूं कि प्रधानमंत्री का इरादा चिंता और गुस्से को शांत करना था। टाटलर ने शायद उन्हें सलाह दी थी। मोदी को ध्यानपूर्वक सोचने की जरूरत थी कि आखिर वह क्या कहना चाहते हैं। गलत को कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके लाखों प्रशंसकों और समर्थकों ने उनके बयान की सत्यता को स्वीकार नहीं किया होगा लेकिन समस्या इस समय चीनियों की है। चीनी यह साबित करना चाहते थे कि वे सही हैं और भारत गलत है।

‘ग्लोबल टाइम्स’ के संपादक ने ट्विट कर कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चीन ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की। भारतीय समाज को इस मूल तथ्य का सामना करने की हिम्मत करनी चाहिए। भारतीय सेनाओं ने घातक संघर्ष को उकसाया।’’ दो दिन बाद मोदी ने कहा कि वह समझते हैं कि उनका देश चीन के साथ और संघर्ष नहीं कर सकता इसलिए वह तनाव को शांत करने का प्रयास कर रहे हैं। एक अलग प्रकार की गलती विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से तब हुई जब चीन के दावे के बारे में उनसे पूछा गया कि चीन गलवान में अपना दावा ठोकता है और हमेशा ही चीन का हिस्सा है। 

अनुराग श्रीवास्तव ने गलवान स्थिति को ऐतिहासिक रूप से स्पष्ट बताया। चीनी दावा अति रंजित और अस्थिर है और चीन की पिछली स्थिति के अनुरूप नहीं है लेकिन किसी भी बिंदू पर उन्होंने स्पष्ट रूप से नहीं कहा कि गलवान भारतीय है। 3 सरल शब्द जो इसे ले जाते थे उन्हें छोड़ दिया गया था। इसकी बजाय हमें शाब्दिक विश्लेषण का ढेर मिला। एक बार फिर टाटलर उन्हें चेतावनी दे सकता था कि आपने अपना मामला किस तरह प्रस्तुत करना है। श्रीवास्तव ने अपने देशवासियों को प्रभावित नहीं किया। मुझे संदेह है कि उन्होंने चीनी विद्रोह किया। 

संचार में तीसरी चूक किससे हुई जिससे हम बेहतर की उम्मीद नहीं करते। प्रधानमंत्री के गलवान बयान पर टिप्पणी करने में राहुल गांधी ने ट्विट किया, ‘‘नरेन्द्र मोदी वास्तव में सैरेंडर मोदी हैं।’’ इस बात ने मुझे विचलित किया। यह बयान एक राजनेता की तरह नहीं बल्कि एक स्कूल जाने वाले लड़के की तरह है। 14 वर्ष की आयु में मैं गर्व से ऐसे ही शब्दों से खेलता था मगर जब 18 का हुआ तब मैंने उम्मीद की कि मुझे अच्छा ज्ञान होना चाहिए। मगर राहुल तो 50 के हो चुके हैं। यदि उन्होंने टाटलर आॢटकल पढ़ा होता तो वह समझदारी से विचार करने की आवश्यकता पर ध्यान देते कि उन्हें समझदारी से क्या बोलना चाहिए। 

अजीब यह नहीं कि संकट के समय मैंने प्रधानमंत्री तथा विपक्ष का नेता समझने वाले व्यक्ति के बारे में बात की जो सही शब्दों को खोजने में असमर्थ रहे बल्कि मैंने विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता के बारे में भी कहा कि उन्हें सबसे ज्यादा उचित शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। इन सबको अच्छे शब्दों को बोलने की जरूरत थी? ये सब बातें आपको एहसास दिलाती हैं कि उद्देश्य को आसानी से हासिल नहीं किया जा सकता। यहां तक कि शब्दों के लिए एक स्वभाव वाले भी असफल हो सकते हैं। मोदी अपने संचार कौशल के प्रति बहुत आश्वस्त थे और राहुल गांधी आधे चतुर निकले और श्रीवास्तव को यह नहीं पता था कि आखिर कहना क्या है।-करण थापर
 

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