इन बातों के लिए याद किए जाएंगे 2019 के ‘आम चुनाव’

Wednesday, May 15, 2019 - 03:33 AM (IST)

2019 के आम चुनाव अंतिम चरण में हैं और 23 मई को यह पता चल जाएगा कि किसकी सरकार बनने जा रही है। 1000 करोड़ का सट्टा बाजार यह संकेत दे रहा है कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी और कांग्रेस पहले से मजबूत होगी तथा  क्षेत्रीय दल भी ताकतवर होकर उभरेंगे। 2014 के आम चुनाव में ‘‘भ्रष्ट मनमोहन सरकार को सत्ता से हटाने’’ का माहौल था। 2019 में मोदी अपनी सत्ता बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 2014 में मोदी लहर थी जो आज नहीं है लेकिन मोदी पार्टी पर हावी हो चुके हैं और अपने नाम पर वोट मांग रहे हैं। 

उस समय मोदी नए थे और उन्होंने लोगों को ‘अच्छे दिन’ का सब्जबाग दिखाया था। इस बार भाजपा के लिए राह आसान नहीं है और मतदाताओं में मोह भंग की स्थिति है। 2019 के आम चुनाव के नतीजे तीन बातों पर निर्भर करेंगे-हिन्दी हार्टलैंड (राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़)जहां उसने 2018 में विधानसभा चुनाव हारे थे, में भाजपा का प्रदर्शन, क्षेत्रीय क्षत्रपों द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में प्रदर्शन तथा भाजपा को होने वाले घाटे की देश के पूर्वी भाग में क्षतिपूर्ति की क्षमता।

जब कभी पीछे मुड़कर 2019 के आम चुनावों पर नजर डाली जाएगी तो उन्हें किस बात के लिए याद किया जाएगा? यह एक नीरस चुनाव था जिसमें बहुत से राज्यों में चुनावी माहौल उदासीनता भरा था। दूसरे, मतदाताओं में बहुत कम उत्साह था। 2014 में मत प्रतिशत अच्छा था और प्रत्येक 3 में से 2 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इन चुनावों में आम आदमी वोट देने के प्रति उत्साहविहीन रहा और नोटा का विकल्प मशहूर हुआ तथा कई जागरूक मतदाताओं ने जो किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं डालना चाहते थे, इस विकल्प का इस्तेमाल किया। इन लोगों का कहना था, ‘‘कोई भी आने दो, हमें क्या फर्क पड़ता है।’’ यहां तक कि पहली बार वोट डालने वाले 8.3 करोड़ मतदाताओं में भी कोई खास उत्साह नहीं दिखा। 

तीसरे, 2019 के चुनाव में नकारात्मक प्रचार का चलन निचले स्तर तक पहुंच गया जहां सभी तरफ के लोगों ने कमर से नीचे वार किया। भाजपा और यहां तक कि प्रधानमंत्री तथा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी विरोधियों पर प्रहार करते समय सार्वजनिक संवाद के स्तर को नीचे लाने का काम किया। मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बोफोर्स केस में आरोपी नम्बर वन कहा तथा उन पर नेवी को अपनी छुट्टियों के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। 

मोदी ने यह चुनाव राष्ट्रवाद के नाम पर लड़ा तथा गांधी परिवार पर पिछले कई दशकों में उनके द्वारा की गई गलतियों के लिए हमले किए। कांग्रेस ने भी प्रधानमंत्री को ‘‘चौकीदार चोर है’’ कह कर सार्वजनिक संवाद के स्तर को हल्का किया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने खास मुद्दे राफेल डील पर अड़े रहे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मोदी के बीच जुबानी जंग भी निचले स्तर पर गई। इन चुनावों में विपक्ष चुनावी नरेटिव को रोजगार, कृषि संकट, महंगाई जैसे मुद्दों पर लाने में नाकाम रहा। हालांकि राज्यों के स्तर पर जहां क्षेत्रीय क्षत्रपों का राज है, चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े गए। मोदी को विभिन्न स्तरों पर इन क्षत्रपों का सामना करना पड़ा। 

चौथे-2019 में 2014 के मुकाबले धन-बल का काफी ज्यादा इस्तेमाल हुआ। कार्पोरेट्स को बेनामी चुनावी बांड खरीदने के लिए उत्साहित किया गया जिन्हें राजनीतिक दलों को दान दिया जा सके।  सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2018 में 10.6 बिलियन रुपए के चुनावी बांड खरीदे गए। 2019 में चुनावी खर्च 7 से 8 बिलियन डालर तक पहुंच सकता है जोकि एक अनुमान के अनुसार 2014 में 5 बिलियन डालर था। यहां तक कि एक संस्था के अनुसार 2016 में हुए अमरीकी राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनावों का कुल खर्च भी 6.5 बिलियन डालर था। मतदाताओं को  कैश, लग्जरी वस्तुएं इत्यादि की रिश्वत देने के भी आरोप लगे। देश के विभिन्न भागों में चुनाव आयोग ने कैश, नशे, शराब और  सोने सहित 3999 करोड़ रुपए जब्त किए। 

चुनाव आयोग की भूमिका
पांचवें, इन चुनावों को इस बात के लिए भी याद रखा जाएगा कि इनमें चुनाव आयोग एक रैफरी के तौर पर अपनी भूमिका को ठीक तरह से नहीं निभा सका क्योंकि विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा उस पर सत्ताधारी पार्टी के नेताओं का पक्ष लेने के आरोप लगे। ध्रुवीकरण करने वाले भाषणों के बावजूद आयोग ने प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने दिया और इस बारे में सभी शिकायतों को रद्द कर दिया। यहां तक कि कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष न्याय की उम्मीद लेकर सुप्रीम कोर्ट तक भी गया। इसके अलावा विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में खामियों की भी शिकायत की गई। 

छठे, हाल के चुनावों में यह  सबसे ज्यादा ध्रुवीकरण करने वाले चुनाव थे। लोग या तो मोदी से प्यार करते थे अथवा घृणा और पूरे चुनाव उनके इर्द-गिर्द केन्द्रित रहे। भाजपा ने धर्म और हिन्दुत्व का पूरा इस्तेमाल किया जबकि कांग्रेस ने उदार हिन्दुत्व कार्ड खेला। इन चुनावों में जाति की भी अहम भूमिका रही। पश्चिम बंगाल जैसे कुछ प्रदेशों में चुनावी हिंसा भी देखी गई। सातवें, इस बार सोशल मीडिया की भी बड़ी भूमिका रही। हालांकि, कई उतार-चढ़ावों के बावजूद, आश्चर्यजनक रूप से भारतीय लोकतंत्र ने अच्छा काम किया और अब तक 16 बार शांतिपूर्ण  सत्ता हस्तांतरण हुआ। विभिन्न शिकायतों के बावजूद चुनाव आयोग की इस बात के लिए प्रशंसा करनी होगी कि उसने कुल मिलाकर चुनावों को शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न करवाया।-कल्याणी शंकर
 

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