पल-पल ‘पाला’ बदलते ये नेतागण

Wednesday, Nov 27, 2019 - 01:04 AM (IST)

महाराष्ट्र सरकार के गठन में प्रत्येक पार्टी उलझी हुई दिखाई दी मगर इस घटना ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि सभी पाॢटयां सत्ता की भूखी हैं और इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकती हैं। मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के 3 दिन बाद आखिरकार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस ने इस्तीफा दे दिया। वहीं राकांपा के नेता अजीत पवार ने भी निजी कारणों से शपथ ग्रहण करने के 80 घंटों बाद इस्तीफा दे दिया।

फडऩवीस ने कहा कि अजीत पवार ने उनको कहा है कि वह निजी कारणों से इस्तीफा दे रहे हैं। इस घटनाक्रम के बाद फडऩवीस का कहना है कि भाजपा अब बहुमत में नहीं। इससे पहले पिछले सप्ताह देवेंद्र फडऩवीस द्वारा सरकार के गठन ने कई नैतिक, कानूनी तथा राजनीतिक सवालों को खड़ा किया था। 

राज्यपाल के व्यवहार पर कई सवाल उठे 
भाजपा द्वारा शनिवार की सुबह सरकार बनाने के दावे को लेकर तथा भाजपा सरकार के शपथ ग्रहण करने में राज्यपाल के व्यवहार पर कई सवाल उठाए गए। भाजपा ने अपने पत्तों को अपनी छाती से लगा रखा था तथा इस बात के संकेत दिए कि वह सरकार गठन की रेस में नहीं है। हालांकि भाजपा नेता तथा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि राजनीति और क्रिकेट में सब कुछ संभव है। उन्होंने ऐसे संकेत दिए थे कि इस सारे घटनाक्रम के पीछे कुछ न कुछ छिपा है। उन्होंने कहा था कि लोगों ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट जनादेश दिया था ताकि महाराष्ट्र में एक स्थायी सरकार का गठन हो। 

फडऩवीस द्वारा शपथ ग्रहण करने के बाद इस मामले का अंत होता नहीं दिखाई दे रहा था क्योंकि उनको अपना बहुमत साबित करना था। नेताओं की खरीद-फरोख्त का काम पहले ही चल रहा था और विधायकों को विभिन्न रिजार्टस में रखा गया था। जब लोगों द्वारा एक अपंग जनादेश दिया जाता है तो फिर चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ यही प्रक्रिया घटती है। विधायकों के झुंड को इकट्ठा रखने के लिए यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। यहां यह बात समझ नहीं आती कि लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि तथा कानून बनाने वाले इतनी तेजी से अपने पाला क्यों बदलते हैं। 

शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने लोगों के जनादेश का सम्मान नहीं किया है। दोनों पार्टियों ने कुछ लेकर और कुछ देकर वाला व्यवहार अपनाए रखा। भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में 288 सदस्यीय सदन में 161 सीटें जीत कर (भाजपा-105, शिवसेना-56) स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे जोकि एक मौकापरस्त थे, ने माना कि यदि उन्होंने इस मौके को गंवा दिया तो वह कभी भी राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़ राकांपा-कांग्रेस के साथ जाने का विकल्प चुना और दोनों पार्टियों को यह सुझाव दिया कि अगर सरकार बनी तो मुख्यमंत्री शिवसेना से होगा। यदि तीनों पार्टियों ने सरकार बनाने के अपने दावे को लेकर ढील न बरती होती तो नतीजे अच्छे होते।

दुर्भाग्यवश इस गठबंधन के कुछ अपवाद रहे इसलिए कोई भी पार्टी किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंची। संक्षेप में सत्ता के बंटवारे के मुद्दे पर सभी चीजें ज्यों की त्यों जकड़ी रहीं, फिर उसके बाद हल तलाशे गए और तीनों पार्टियां सरकार बनाने को राजी हुईं। मगर अब देर हो चुकी थी और भाजपा ने मौके को परखा और राकांपा प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजीत पवार को तोड़ कर सरकार का गठन किया। राजनीति के इस तबाही वाले क्षणों के लिए शिवसेना-कांग्रेस-राकांपा ने एक-दूसरे को कोसा। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के होंठों से जैसे जाम छलक गया हो। 1999 से लेकर शिवसेना ने कभी भी मुख्यमंत्री पद की कुर्सी नहीं पाई। 

सारे घटनाक्रम का पोस्टमार्टम किया जाएगा
फडऩवीस और अजीत पवार के इस्तीफे के बाद इस सारे घटनाक्रम का पोस्टमार्टम किया जाएगा कि क्यों और कैसे हुआ, एक बात स्पष्ट है कि ये सभी राजनीतिक पार्टियां लोगों के दिलों से खेलती हैं जिन्होंने अपने विधायकों को चुना। राकांपा की भूमिका भी रहस्यमयी दिखाई दी। अजीत पवार ने अंतिम समय में पार्टी को दोफाड़ करने का निर्णय कैसे लिया? क्या शरद पवार नहीं जानते थे कि उनकी पार्टी में क्या चल रहा है? क्या गोपनीयता के पीछे उनका हाथ था? क्या भाजपा ने अजीत पवार पर भरोसा कर गलत कयास लगाए? इन सभी सवालों का वर्तमान में जवाब तलाशा जाएगा। 

जहां तक कांग्रेस की बात है, यदि वह सरकार में शामिल होती तो उसके लिए बदला लेने का मौका होता। महाराष्ट्र एक बड़ा राज्य है और देश की वित्तीय राजधानी भी। कांग्रेस के पास एक वक्त पर एक सशक्त आधार था। ऐसे आरोप भी लगाए गए थे कि पार्टी ने गठबंधन बनाने में लंबा समय लिया। हालांकि कांग्रेस विधायक शिवसेना-राकांपा गठबंधन के साथ जाने के ख्वाहिशमंद हैं। कुछ वरिष्ठ नेता भगवा पार्टी की विचारधारा के बारे में थोड़ी आशंका रखते थे। महाराष्ट्र में सरकार के गठन से कहानी का अभी अंत नहीं हुआ क्योंकि आने वाले दिनों में इस घटनाक्रम में कई मोड़ आएंगे। अंत में कहानी का निष्कर्ष यही लगाया जा सकता है कि सिंगल पार्टी मैजोरिटी लोकतंत्र व्यवस्था के लिए एक अच्छा विकल्प है और विभाजित मत अप्राकृतिक गठजोड़ तथा अस्थायी सरकार को जन्म देता है।-कल्याणी शंकर

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