सदन में बहस हो, न कि वॉकआऊट
punjabkesari.in Monday, Apr 14, 2025 - 05:37 AM (IST)

संसद का बजट सत्र अभी-अभी समाप्त हुआ है। विपक्ष के सांसदों की ओर से तीखी बहस, गहन चर्चा और जोरदार तर्क, खास तौर पर वक्फ बिल पर, देखने को मिले। वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाने के उद्देश्य से बनाया गया यह बिल विवाद का एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। उन्होंने अपनी बात अच्छी तरह रखी, लेकिन सरकार ने अपना रुख मजबूती से रखा। सांसदों के 4 बुनियादी कार्य हैं : सदनों और स्थायी समितियों में कानून की जांच करना,दूसरा भारत सरकार के कामकाज की निगरानी करना है। तीसरा बजट और अनुदानों की मांगों की जांच करना है और आखिर में, संसद में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना है। क्या उन्होंने अपना काम किया है? अब तक, कई लोगों ने संसद में मुद्दों को न उठाने के लिए दोनों पक्षों के सांसदों की आलोचना की है।
यह सब सकारात्मक खबर नहीं थी। दोनों सदनों में तनावपूर्ण बहस देखने को मिली। एक समय तो राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ सदन से चले गए। उच्च सदन में एक मनोनीत सदस्य को छोड़कर किसी भी मुस्लिम सांसद ने संशोधनों का समर्थन नहीं किया। चर्चाओं का ध्यान आम सहमति बनाने पर होना चाहिए, लेकिन इस सत्र में ऐसा नहीं हुआ। इसके विपरीत, इसने राजनीतिक और सामुदायिक विभाजन को बढ़ा दिया। भाजपा विधायी एजैंडे को आगे बढ़ाने में कामयाब रही और अपने राजनीतिक क्षेत्र को खुश करने के लिए दर्शकों को लुभाने में कामयाब रही।
विपक्ष ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सदन में बोलने के अवसर न मिलने पर कांग्रेस पार्टी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के बीच असहमति पर जोर दिया। बजट प्रक्रिया, जो सरकार की अपेक्षित आय और व्यय को दर्शाती है, एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। केंद्रीय बजट की जांच करने और सुझाव विकसित करने में संसद की भूमिका देश की वित्तीय सेहत के लिए महत्वपूर्ण है। वित्त विधेयक, 2025 विनियोग विधेयक, 2025 वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025; और आव्रजन और विदेशी विधेयक, 2025 प्रमुख विधायी टुकड़े थे, जिन्होंने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक और बहस को जन्म दिया। आश्चर्यजनक रूप से, यह दोनों सदनों में असामान्य रूप से उत्पादक सत्र था, जिसमें 100 प्रतिशत से अधिक उत्पादकता हासिल की गई। इस सत्र में केंद्रीय बजट और वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 सहित 16 विधेयक पारित हुए, जो देश की विधायी प्रगति के लिए एक आशाजनक संकेत है। राज्यसभा के अध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने सांसदों को उनकी बहुमूल्य चर्चाओं के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि व्यवस्था बनाए रखने के अलावा, सत्रों में गंभीर बहस और हास्य के क्षण शामिल थे, जो बजट सत्र को आकार देने के लिए आवश्यक थे।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के सचिवालय के अनुसार, लोकसभा में भी 118 प्रतिशत काम हुआ और बजट सत्र भी उत्पादक रहा। उन्होंने कहा कि सत्र में 160 घंटे और 48 मिनट तक 26 बैठकें हुईं। सत्र के दौरान, 10 विधेयक पेश किए गए और 16 (कुछ लंबित सहित) पारित किए गए। चयनित मंत्रालयों और विभागों के लिए अनुदान की मांगों पर भी चर्चा की गई और उन्हें पारित किया गया। विपक्षी दलों ने आर्थिक संकट और परिसीमन तथा 3-भाषा नीति पर सवाल उठाए। इसके विपरीत, सरकार ने हाल ही में हुए राज्य विधानसभा चुनावों के बाद स्थिरता, आर्थिक विकास और राजनीतिक गति पर जोर दिया। सरकार ने उत्पादकता को इंगित करने में तत्परता दिखाई। सत्तारूढ़ दल पर अंकुश लगाने के लिए विपक्ष ने स्थगन के लिए मजबूर नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने वॉकआऊट किया और बहस के माध्यम से सरकार की आलोचना की। इससे व्यंग्य, विचार-विमर्श और बौद्धिक चर्चाओं से भरा सत्र शुरू हुआ। बजट सत्र के पहले भाग के दौरान, हमने कई प्रमुख विधेयकों को पेश होते देखा। हालांकि कोई विधेयक पारित नहीं हुआ, लेकिन ट्रेजरी बैंच ने विवादास्पद वक्फ विधेयक को पारित कर दिया।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा हाल ही में पारस्परिक टैरिफ की घोषणा के बारे में विपक्ष उत्तेजित था। इसने गहन और गरमागरम बहस को जन्म दिया। डी.एम.के. ने यह दावा करते हुए परिसीमन अभ्यास का विरोध किया कि यह उन राज्यों के लिए अनुचित होगा जिनमें जनसंख्या सीमित है। कांग्रेस पार्टी ट्रम्प प्रशासन से टैरिफ के आर्थिक प्रभावों को संबोधित करना चाहती थी। सत्र का एक सकारात्मक पहलू संसद सदस्यों (सांसदों) की प्रतिबद्धता थी, जिन्होंने लगातार 2 दिन सुबह 11 बजे से सुबह 4 बजे तक काम किया। 2 अप्रैल को, लोकसभा ने लगभग 14 घंटे तक एक विधेयक पर बहस की, जबकि राज्यसभा 4:02 बजे तक जारी रही, जिसने वक्फ बिल पर बहस का रिकॉर्ड बनाया और संसद के इतिहास में सबसे लंबी चर्चाओं में से एक को चिह्नित किया। लोकसभा में स्थगन प्रस्तावों के लिए 85 से अधिक नोटिस दिए गए थे। हालांकि, उनमें से कोई भी स्वीकार नहीं किया गया। राज्यसभा में, नियम 267 के तहत 144 से अधिक नोटिस दायर किए गए थे। इनमें से कोई भी स्वीकार या उन पर चर्चा नहीं की गई। संसद वर्तमान में कई मुद्दों का सामना कर रही है। संस्था बीमार हो सकती है, लेकिन इसे वापस स्वस्थ किया जा सकता है। संसद के पुराने गौरव को पुनर्जीवित करना हितधारकों का फर्ज है। सदन में बहस और चर्चा हो, न कि वॉकआऊट और स्थगन होने चाहिएं।-कल्याणी शंकर