हर जगह ‘जोंकों’ का राज है

punjabkesari.in Friday, Jul 13, 2018 - 03:47 AM (IST)

मुझे इस बात का तो पक्का विश्वास नहीं है कि जो साल मैंने पाकिस्तान टी.वी. में प्रोड्यूसर के तौर पर गुजारे, टी.वी. की दुनिया ने मुझे और कुछ दिया या न दिया परंतु एक तोहफा मुझे जरूर दिया। वह था नई नजर या वजन। एक नई आंख। एक आम कहावत है कि वक्त के बदलने के साथ बंदा बदलता रहता है। हो सकता है यह कहावत दुरुस्त हो परंतु मेरे ख्याल में वक्त चाहे न भी बदले परंतु अगर बंदे का माहौल बदल जाए तो उसकी आंख भी बदल जाती है। इस माहौल में कई बार बंदे के पेशों का भी रोल होता है। एक बंदा जब थानेदार या जज बन जाता है तो उसका लोगों को देखने का अंदाज भी बदल जाता है। हम ऐसे भी कह सकते हैं कि उसकी आंख बदल जाती है। 

मेरी आंख भी बदलती रही है, इसका अंदाजा मुझे तब हुआ जब मैं 1973 में पाकिस्तान टैलीविजन में प्रोड्यूसर भर्ती हुआ। और बातों से अलग जिस चीज ने मेरी आंख पर प्रभाव डाला वह था मशहूर और वी.आई.पी. बंदों को देखने का नजरिया। बंदा जब एक्टरों, एक्ट्रैसों, गाने वालों मसखरों या स्क्रीन के जरिए लोगों पर जादू करने वालों को देखता है तो ये लोग उसके आइडल बन जाते हैं और यह बंदा ख्याली दुनिया में ख़ुद उन जैसा बनने की कोशिश करता रहता है। यह उन बारे मीडिया के जरिए जानकारी इकट्ठी करता रहता है। अगर कभी उसके मुकद्दर में हो तो उसकी उनसे मुलाकात हो जाए तो यह बड़े फख्र से उनके साथ फोटो खिंचवाता है। उनके आटोग्राफ  लेता है और इस मुलाकात का बड़े फख्र से ढोल पीटता है। कई लोग उनकी नकल करते हैं और उनमें से कुछ लोग सारी जिंदगी उनकी नकल करते-करते मरे हैं। 

टी.वी. में आने से पहले मैं भी कुछ-कुछ इस बीमारी का शिकार था। टी.वी. की दुनिया में आने के बाद उनकी पोल खुल गई। असली जिंदगी में ये न तो इतने सुंदर और कशिश वाले होते हैं, जितने स्क्रीन पर नजर आते हैं। मेकअप का पोचा उनका हुलिया बदल देता है, कुछ कसर लाइटें निकाल देती हैं। बाकी रही-सही कसर कैमरामैन निकाल देता है और ये मेकअप, लाइटों और कैमरे की ओढऩी ओढ़ कर एक अलग बंदा बन जाते हैं। उनकी सारी बदसूरती और एब छुप जाते हैं। इस से अलग उनमें और कोई खास बात नहीं होती। ये आम लोगों की तरह एहसास कमतरी के मारे, नफसियाती मरीज, खुशामदी, झूठे, लालची, धोखेबाज, चोर और भूखे-नंगे होते हैं। 

टी.वी. ने मेरी आंख से यह पर्दा उतार कर उनको मेरे सामने नंगा कर दिया और ये मेरे लिए कोई खास बंदे नहीं रहे बल्कि उसके उलट मेरे लिए वे बंदे खास बन गए जिनको समाज उठा कर कचरे के ढेर पर फैंक देता है। इस तरह के कचरे के ढेर पर फैंके इंसान परदेस में फालतू मिलते हैं। जब कोई बंदा दक्षिणी यूरोप जाता है तो टूरिस्टों की पसंदीदा जगहों पर इस तरह के लोगों की भरमार होती है, ये हर जगह मिलते हैं। स्पेन ऐसे लोगों से भरा पड़ा है। उनमें अक्सर लोग अफ्रीका के काले होते हैं, जो पैसा कमाने के लिए सब कुछ करते हैं। उनमें से कुछ दुकानदार भी होते हैं जिनकी कुल दुकान एक चादर होती है जिसको जमीन पर बिछा कर इस पर नकली चीजें सजा कर बैठे होते हैं। 

इन चीजों को ये असली कहते हैं और इनकी तारीफों के पुल बांध देते हैं। हर चीज की पहली कीमत और होती है जो कम होती-होती आधी रह जाती है। स्पेन में मेरे अपार्टमैंट के साथ लगते समुद्र के साहिल पर ऐसी दुकानों की भरमार है। स्पेन के कानून के मुताबिक ये साहिल पर अपनी दुकान नहीं लगा सकते और गाहे-बगाहे पुलिस आकर उनकी दुकानों पर छापा मार कर उनको पकड़ कर ले जाती है। पुलिस की मामूली-सी खबर पर ये अपनी चादर लपेट कर भाग जाते हैं। एक दिन मैंं एक ऐसे दुकानदार के पास जा कर बैठ गया। वह बेहद खुश हुआ, कहने लगा, ‘‘मुझे स्पेन के इस साहिल पर दुकान लगाते 10 साल हो गए हैं, आज पहली बार कोई यूरोपियन बंदा मेरे पास आकर बैठा है।’’ 

मैं उसको कुरेदने लगा तो उसने बताया कि उसका नाम महमदो है और वह सेनेगल के एक गांव का रहने वाला है। जब उसका खानदान बड़ा हो गया और आमदन कम हो गई तो उनके घर भूखआ घुसी, जिसको घर से निकालने के लिए वह अपना सब कुछ बेच कर एजैंटों के जरिए स्पेन में घुस गया। कई साल धक्के खाने के बाद वह इस कारोबार में आ गया। वह चीन के बने नकली पर्स बेचता है। सारा दिन ग्राहकों की खुशामद कर-करके उसका मुंह टेढ़ा हो जाता है, साथ में पुलिस के साथ आंख-मिचौली लगी रहती है। शाम को बमुश्किल 20 यूरो कमा कर घर जाता है। वह 5 अन्य लड़कों के साथ एक कमरे में रहता है इसके हिस्से का महीने का किराया 50 यूरो है। 

सेनेगल में उसके घर के 7 लोग खाने वाले हैं जिनको वह हर महीने150 यूरो भेजता है। वह कुछ कमाए या न कमाए, उसने हर कीमत पर यह 150 यूरो भेजने ही होते हैं। कई बार उससे ये यूरो नहीं बन पाते तो उसको पैसे उधार लेने पड़ते हैं। इस सूरत में वह खुद भूखा रहता है, अपनी हर ख्वाहिश मारता है। उसके इर्द-गिर्द दूसरे मुल्कों से आए टूरिस्ट अय्याशी कर रहे होते हैं और वह पेट से भूखा उनकी तरफ हसरत भरी नजरों से देखता रहता है। वह रोज वापस सेनेगल जाने के सपने देखता है परंतु जेब खाली देखकर ठंडी आह भर कर रह जाता है। अगर कभी उसके पास किराए के पैसे बन भी जाते हैं तो उसके पास फालतू पैसे नहीं होते और वह फिर भी नहीं जा सकता। 

जब कभी वह सेनेगल जाने के काबिल हो जाता है तो सेनेगल में कदम रखते ही हर बंदा उसको जोंकों की तरह चिपट जाता है। दोस्त, रिश्तेदार, सरकारी महकमों के लोग। अपनी जन्म धरती में, अपनी गली में सांस लेने और कुछ-कुछ यूरोप में रहने की आन-बान दिखाने की उसको यहां भारी कीमत अदा करनी पड़ती है। हर बंदा उसको धोखा देने के लिए बैठा होता है। जब वह वापस स्पेन आता है तो उसकी हालत उस परिंदे की तरह होती है जिसके शरीर से सब पर नोच लिए गए हों, पीछे उसकी चमड़ी बाकी रह गई हो। कुछ देर चुप रह कर बोला: मैं गुलाम हूं,। हमारी किस्मत में गुलामी लिखी गई है, पहले अमरीका से सफेद लोग आकर हमें गुलाम बना कर ले जाते थे, अब हम खुद आकर उनके गुलाम बनते हैं। हम वे गुलाम हैं जिनको उनका अपना मालिक और उसके लोग जोंकों की तरह चिपटे हुए हैं। 

उसकी बात सुनकर जब मैंने अपने इर्द-गिर्द नजर दौड़ाई तो मुझे सेनेगल के इस काले जैसे करोड़ों गुलाम नजर आए, जिनको अनगिनत जोंकें चिपटी हुई हैं। इस जैसे लाखों गैर मुल्की परदेसों में गुलामी काट रहे हैं, उनमें से हजारों रोज अपनी मिट्टी, अपने बचपन की यादों की कशिश के लिए और कुछ-कुछ बाहर रहने की आन-बान दिखाने के लिए अपने देश जाते हैं परंतु यह बाहर से आया बंदा इंसान नहीं है, बल्कि शिकार है, एक सामी है। हर बंदा छुरे-कुल्हाड़े तैयार करके बैठा होता है और यह हर पल जिबह किया जाता है। हर जगह जोंकों का राज है। इसकी कहीं कोई फरियाद नहीं, यह लावारिस है। इन लावारिस गैर-मुल्कियों में ज्यादा संख्या पंजाबियों की है। कभी-कभी मुझे यूं महसूस होता है जैसे पंजाबी मांएं पुत्र नहीं बल्कि गुलाम पैदा करने वाली फैक्ट्रियां हैं।-सय्यद आसिफ शाहकार


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Pardeep

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