कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है!
punjabkesari.in Friday, Feb 10, 2023 - 05:08 AM (IST)

देश के नामी उद्योगपति गौतम अडानी और उनकी कंपनियों को लेकर शेयर मार्कीट, संसद और टी.वी. चर्चाओं में मची अफरा-तफरी ने मिर्जा गालिब के इस मशहूर शे’र की पंक्ति की याद दिलाई। अडानी की कंपनियों को लेकर खड़े हुए विवाद पर जिस तरह भारत सरकार की एजैंसियों ने चुप्पी साध रखी है उसे लेकर वे संदेह के घेरे में आती हैं। हर कोई यही सोच रहा है कि इसके पीछे कुछ न कुछ कारण तो है।
जब से न्यूयॉर्क स्थित हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर 106 पन्नों की रिपोर्ट जारी की है, तब से दुनिया भर में भारत के इस औद्योगिक समूह पर उंगलियां उठने लग गई हैं। रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद ऐसा होना तो लाजमी था। दुनिया भर के निवेशक अब भारतीय उद्योगपतियों को शक की नजर से देखेंगे। जिस तरह अडानी समूह के शेयर लुढ़कने लगे, उससे निवेशकों के मन में भी भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। सभी निवेशक सोच रहे हैं कि क्या उनका निवेश सुरक्षित है? क्या जिन सरकारी बैंकों ने अडानी समूह में निवेश किया था वह डूबेंगे तो नहीं? क्या भारतीय जीवन बीमा निगम व भारतीय स्टेट बैंक द्वारा अडानी समूह में लगाया गया जनता का पैसा स्वाहा तो नहीं हो जाएगा?
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के जवाब में अडानी समूह ने इसे भारत पर हमले का नाम दिया। अडानी ने अपने जवाब में कहा, ‘‘यह केवल किसी विशिष्ट कंपनी पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि एक सोची-समझी साजिश है। यह भारत, भारतीय संस्थानों की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता और भारत की विकास की कहानी और महत्वाकांक्षा पर हमला है।’’ अडानी के इस बयान को देश के विपक्षी नेता बेतुका बता रहे हैं।
दरअसल हिंडनबर्ग ने ऐसा ही खुलासा 16 अन्य कंपनियों का भी किया है। वे कंपनियां अमरीका, चीन व जापान जैसे देशों की कंपनियां हैं। विपक्षी नेताओं का ये सवाल है कि अगर अडानी समूह पर आई इस रिपोर्ट को भारत सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमला मानती है तो फिर वे इस मामले पर चुप्पी क्यों साधे बैठे हैं? एजैंसियों द्वारा इस मामले की जांच क्यों नहीं की जा रही? गौरतलब है कि इस रिपोर्ट के आने पर अडानी समूह ने हिंडनबर्ग पर कानूनी कार्रवाई करने की घोषणा कर दी थी। उस घोषणा का स्वागत करते हुए हिंडनबर्ग ने अडानी समूह को ऐसा अमरीका में करने की सलाह दे डाली।
हिंडनबर्ग का कहना है कि चूंकि वह अमरीका में स्थापित हैं इसलिए अडानी वहीं आकर उन पर कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं। अमरीका में कार्रवाई का मतलब अडानी समूह को वे सभी कागजात कोर्ट के सामने पेश करने होंगे जिन दस्तावेजों में गड़बड़ी की आशंका जताई गई है। जब से हिंडनबर्ग ने ऐसा कहा है तब से अडानी समूह द्वारा कानूनी कार्रवाई की बात पर ज्यादा जोर नहीं दिया गया। इधर भारत में अडानी समूह की प्रमुख कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज के फॉलोऑन पब्लिक ऑफर (एफ.पी.ओ.) से खुदरा निवेशक बचता रहा। केवल कुछ नामी बड़े निवेशकों ने ही इसमें निवेश किया। पर इस विवाद के चलते गौतम अडानी ने एक वीडियो संदेश के माध्यम से एफ.पी.ओ. को मार्कीट से वापस लेने की घोषणा कर डाली। अडानी के समर्थक इसे नैतिकता के आधार पर लिया हुआ फैसला बता रहे हैं। जबकि विपक्षी दल इस एफ.पी.ओ. को अधिक मूल्य पर खरीदने पर भी सवाल उठा रहे हैं।
इस आरोप पर अडानी समूह की कोई भी औपचारिक घोषणा नहीं आई है। बहरहाल अडानी समूह के शेयरों के दाम निरंतर गिरते जा रहे हैं और दुनिया के तीसरे नंबर पर पहुंचने वाले गौतम अडानी अब बाईसवें नंबर पर पहुंच गए हैं। अडानी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में लगे आरोपों पर अगर देश की जांच एजैंसियों द्वारा कड़ी कार्रवाई की जाती है तो जनता के बीच ऐसा संदेश जाएगा कि भले ही कोई औद्योगिक समूह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, जांच एजैंसियां अपना काम स्वतंत्रता और निष्पक्ष रूप से ही करेंगी।
इन एजैंसियों का सिद्धांत यह होना चाहिए कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। फिर वह चाहे किसी भी राजनीतिक पार्टी का समर्थक ही क्यों न हो। एजैंसियां ऐसे किसी भी अपराधी को नहीं बख्शेंगी। ऐसा करने से न सिर्फ वित्तीय अपराधियों के बीच खौफ का संदेश जाएगा बल्कि देश भर की जनता का भी इन एजैंसियों पर विश्वास बढ़ेगा।
एल.आई.सी. और एस.बी.आई. जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में देश की आम जनता अपने भविष्य को सुरक्षित करने की दृष्टि से अपनी कड़ी मेहनत की कमाई का हिस्सा निवेश करती है। ये संस्थाएं जिस पैसे को किसी भी औद्योगिक समूह में निवेश करती हैं तो वह आम नागरिक का ही पैसा होता है। यदि वह पैसा किसी दागी कंपनी में निवेश किया जाता है तो जनता के मन में इन संस्थाओं पर भरोसा घटेगा। विपक्ष की मांग है कि अडानी समूह पर लगे आरोपों की न सिर्फ जांच होनी चाहिए बल्कि यह जांच योग्य लोगों द्वारा ही की जानी चाहिए। यदि गौतम अडानी ने कोई गलती नहीं की है तो हर्षद मेहता, केतन पारिख, विजय माल्या व नीरव मोदी जैसे घोटालेबाजों की श्रेणी में उनको न लाया जाए।
यदि अडानी के समर्थक इस रिपोर्ट को केवल इस आधार पर नकार रहे हैं कि ये रिपोर्ट एक विदेशी संस्था द्वारा जारी की गई है तो ये गलत होगा। आपको याद दिला दें कि राजीव गांधी सरकार पर जब बोफोर्स घोटाले के आरोप लगे थे तो उसे भी स्वीडिश रेडियो द्वारा उजागर किया गया था। उसके बाद क्या हुआ यह सभी जानते हैं। इसलिए केंद्र सरकार की एजैंसियों को इस रिपोर्ट को भी गंभीरता से लेते हुए मामले की जांच जल्द-से-जल्द करनी चाहिए, जिससे कि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। यदि जांच में देरी होती है तो ये सवाल तो उठेगा ही कि ‘कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है।’-रजनीश कपूर