फरवरी महीने की बात ही कुछ अलग है

Saturday, Feb 17, 2024 - 04:37 AM (IST)

वैसे तो हर माह की कोई न कोई खासियत है, पर फरवरी की बात ही कुछ और है। कड़ाके की ठंड से मुक्ति, ठिठुरन और सर्दी की दुश्वारियों के बाद मौसम के खुशनुमा बदलाव का एहसास इसी महीने से होता है। साल में सबसे कम दिन भी इसी के हिस्से आए लेकिन जितने भी हैं, अपने बेहतरीन पलों के साथ जीवन भर की याद बन जाते हैं। इस मायने में भी अलग है, कि सभी मौसमों का मजा इसमें है। दिन में गर्मी हो सकती है तो शाम से ठंडक तो कभी हल्की फुल्की बारिश और फिर सुबह रंग-बिरंगे फूलों और उनकी भीनी महक से सराबोर सुबह की शुरुआत।

वसंत ऋतु का आगमन : इस महीने से वसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है। होली के स्वागत में 40 दिन पहले से उत्सव का माहौल शुरू होता है, जो रंग खेलने के दिन तक चलता रहता है। वसंत पंचमी धूमधाम से मनाने की हमारी परंपरा रही है। इस दिन जन्म लेने वाले बच्चों के नाम भी वसंत या वसंती जैसे रखना शुभ माना जाता है। इन दिनों ही देश भर में अनेक सांस्कृतिक-साहित्यिक समारोह और फूलों की प्रदर्शनियां लगती हैं। वसंत ऋतु में अपने विविध रंगों, आकृतियों, सुगंध समेटे तरह तरह के पुष्प घर, आंगन, बालकनी, उद्यान में अपनी छटा बिखेरते रहते हैं और हम इन्हें प्रकृति की सौगात मानकर स्वयं को धन्य समझते हैं।

अन्य उत्सव : शृंगार को समॢपत भारत के वसंत की तरह विश्व के अनेक देशों में इस महीने वैलेंटाइन मनाया जाता है, जो 7 दिन चलने वाला वैश्विक उत्सव है। हमारे देश में भी अधिकतर शहरों में पले-बढ़े और रह रहे युवाओं के बीच वैलेंटाइन मनाए जाने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। वैलेंटाइंस दिवस पर अपने सबसे प्रिय व्यक्ति के साथ समय बिताने का रिवाज है जो 14 फरवरी को अपने प्रेम की परिणति स्वरूप मनाया जाता है। उम्मीद की जाती है कि इसी प्रकार जीवन भर एक दूसरे को चाहते रहेंगे और कहीं भी रहें, आपस का संबंध हमेशा बना रहेगा।

इसी प्रकार 17 फरवरी अमरीका में शुरू होकर यूरोप के अनेक देशों तथा न्यूजीलैंड में मनाया जाने वाला एक ऐसा पर्व है, जो इस बात के लिए मनाया जाता है कि हम कोई न कोई ऐसा काम करें, जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की जाने-अनजाने मदद हो जाए, जिसकी जीवन जीने की इच्छा समाप्त होती जा रही हो। उसकी सहायता तो हो ही, बल्कि उसमें जीवन जीने की लालसा भी बनी रहे।

बहुत से लोग तनाव, अवसाद, अकेलेपन, परिवार का तिरस्कार और यहां तक कि जीवन अंत करने की मानसिक वेदना झेल रहे होते हैं। हम अपनी सहानुभूति, संवेदना और स्नेह के माध्यम से उनका जीवन बदल सकते हैं। दया तथा करुणा मिश्रित अचानक किसी के साथ किया कोई कार्य उससे अधिक अपने को खुशी देता है। किसी अजनबी से दो आत्मीयता के बोल भी जीने का ऐसा माहौल दे जाते हैं, जो उत्साह तथा ऊर्जा भर देते हैं। यह अनुभव यादगार बन जाते हैं।

जब कोई व्यक्ति आपके लिए अपनी सीट छोड़ दे, कहे कि मेरे साथ चाय काफी पीजिए, लाइए मैं आपका सामान उठा लेता हूं, लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही पहले आपको अंदर जाने के लिए कहे, आपको आपके घर तक पहुंचाने आए, रास्ते में नमस्ते करे और निकल जाए, यहां तक कि दुकान में मोलभाव करने और सही वस्तु का चुनाव करने में सहायता करे, जैसी छोटी सी बात मन को खुशी दे जाती है। इसमें किसी का धन या कोई बहुत अधिक मेहनत नहीं लगती, बस किसी को अपनी निराशा से उबरने का अवसर मिल जाता है।

इतना ही बहुत है एक ऐसा समाज बनाने में, जो पैसों पर नहीं भावनाओं पर टिका होता है। देखा गया है कि अनेक व्यक्तियों को हाई ब्लड प्रैशर जैसी बीमारियां इसलिए होती हैं कि कोई उनसे बात करने वाला नहीं है, कोई प्यार या झगड़ा तक करने वाला नहीं है, घर में सबके होते हुए भी भीड़ में अकेले होने का एहसास होता है, अपने को बेकार और जीवन को निरर्थक मानने लगते हैं। जीवन का अर्थ केवल मृत्यु की प्रतीक्षा करना रह जाता है। यदि कोई उन्हें उनकी मन:स्थिति से बाहर निकाल सकता है, तो हो सकता है वह आप हों, जो बिना किसी स्वार्थ के संयोग से उन्हें सांत्वना देने पहुंच गए हों। यह आसपास और जान-पहचान के लोग भी हो सकते हैं और बिल्कुल अंजान भी।

असल में जिन देशों में इतनी आॢथक प्रगति हो गई है कि धन का महत्व नहीं रहता, उनमें ऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में बढ़ रहे हैं, जो शांति और सुकून चाहते हैं। अमीर होना उनके लिए वरदान नहीं, बल्कि अभिशाप बन गया है, सामान्य व्यक्ति की तरह रहना और व्यवहार करना भी चाहें तो सामाजिक बंधन, जो दिखावे का दूसरा रूप होते हैं, बेडिय़ों की तरह हो जाते हैं। यदि उनके दर्द को महसूस करने वाला मिल जाए तो वे सब कुछ अॢपत करने के लिए भी तत्पर हो जाते हैं।

ऐसे एकाकी लोगों के लिए किसी की थोड़ी सी संवेदना ही अचूक औषधि बन जाती है। यही इस दिन का महत्व है। इससे प्रेरित होकर पश्चिमी देशों में रैंडम एक्ट्स ऑफ काईंडनैस फाऊंडेशन स्थापित की गई है, जो एक सप्ताह यानी 14 से 20 फरवरी तक एक तरह से आंदोलन के रूप में कार्य करती है। लोगों में दूसरों के प्रति दया, करुणा को जीवन में उतारने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाते हैं। उद्देश्य यही है कि खुशियां केवल एक व्यक्ति तक सीमित न हों, उनका निरंतर विस्तार होता रहे। 

इसी प्रकार 17 फरवरी को ही विश्व मानवीय भावना दिवस मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत एक कवि तथा लेखक ने की थी। इसका भी उद्देश्य यह था कि मनुष्य आपस में सौहार्द और सहयोग की भावना से ओतप्रोत रहें, शत्रुता न रखें और जो काम मिलजुलकर किया जा सकता है, उसे करने में कतई संकोच न करें।

सुंदर और आकर्षक होने की परिभाषा : शृंगार से सौंदर्य निखरता है, उससे भावनाओं का जुड़ाव होता है। केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक-आध्यात्मिक ऊर्जा भी शृंगार से उत्पन्न होती है। सभी रसों में इसका प्रथम स्थान है। प्रकृति किसी को कुरूप या बदसूरत नहीं बनाती, यह देखने का हमारा नजरिया है, जो हम ऐसा समझते हैं। इस भ्रम से बाहर निकल कर यदि किसी को देखें तो लगेगा कि सब ही सुंदर हैं। रंग, रूप, शारीरिक बनावट का महत्व नहीं रह जाता, केवल सौंदर्य और शृंगार प्रमुख हो जाता है, जो प्राकृतिक है।

सभी अपने हैं, किस के विरोध, क्रोध का तो कोई कारण ही नहीं। जब इस प्रकार का मन बन जाता है तो फिर जीवन का जो लक्ष्य ‘सब सुखी हों, सब ओर शांति हो’ प्राप्त होने लगता है। इससे करुणा उपजती है और ‘सभी प्राणियों में विश्वास हो’ की भावना का उदय होता है। उसके बाद यह प्रतीत होना स्वाभाविक है कि हम सही दिशा में प्रगति कर रहे हैं, एक ऐसे समाज का निर्माण करने में अपना योगदान दे रहे हैं, जिसमें आनंद हो, प्रेम हो, आस्था हो, प्रकृति का आदर हो और समन्वय हो। यही फरवरी की विशेषता है। -पूरन चंद सरीन

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