विश्व कप में सफलता से बड़ा कोई ईनाम नहीं

punjabkesari.in Friday, Jul 05, 2024 - 05:15 AM (IST)

जब हमारी भारतीय टी-20 विश्व कप टीम ने ट्रॉफी जीती तो पूरा देश एकजुट और खुश था। इसने न केवल हार के मुंह से जीत छीन ली, बल्कि अपने द्वारा खेले गए हर मैच में जीत हासिल की। पहले प्रारंभिक दौर में (एक को छोड़कर जिसे बारिश के कारण रद्द करना पड़ा), फिर दूसरे दौर व सैमीफाइनल में और फिर कैरेबियन के बारबाडोस में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ फाइनल मैच खेला। 

टूर्नामैंट की एक और उल्लेखनीय विशेषता यह थी कि प्रत्येक खिलाड़ी ने अंतिम सफलता में योगदान दिया, जबकि पिछले कई टूर्नामैंटों में विभिन्न प्रारूपों में जीत या हार 1 या 2 खिलाडिय़ों पर निर्भर थी। आखिरी ओवर में हार्दिक पांड्या की गेंद पर सूर्य कुमार यादव द्वारा सीमा रेखा पर लिए गए कैच ने वास्तव में मैच का रुख बदल दिया। दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी 6 गेंदें शेष रहते केवल 16 रन की आवश्यकता के साथ जीत की ओर बढ़ रहे थे। यह वह कैच था जिसने दक्षिण अफ्रीका की किस्मत तय कर दी। दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज हेनरिक क्लासेन अपने बेहतरीन खेल में थे। लगातार छक्के लगाते हुए गेंद को मैदान से बाहर मार रहे थे। और जैसे ही हम टैलीविजन से चिपके हुए थे, सूर्या ने डेविड मिलर का मुश्किल कैच पकड़ा। उन्हें अपना संतुलन बनाए रखने के लिए अपनी पूरी होशियारी से काम लेना पड़ा, ताकि गेंद के जमीन पर गिरने से पहले ही वापस कूदकर उसे पकड़ सकें। 

हार्दिक पांड्या, जिन्होंने आई.पी.एल. में मुंबई इंडियंस की कप्तानी की थी, जहां उन्होंने नीता अंबानी की फ्रैंचाइजी के सबसे लोकप्रिय कप्तान रोहित शर्मा की जगह ली थी, इस साल फ्रैंचाइजी के खराब प्रदर्शन के कारण उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा था। उन्होंने अपना संयम और अपनी फॉर्म को फिर से हासिल किया और महत्वपूर्ण अंतिम गेम और उससे पहले के अधिकांश मैचों में चमके। अद्भुत तेज गेंदबाज, जसप्रीत बुमराह, सफेद गेंद से हमेशा की तरह किफायती और प्रभावी रहे। उन्हें एक और सिख स्पीडस्टर अर्शदीप सिंह का अच्छा साथ मिला, जिन्होंने बिल्कुल सही समय पर अपनी लय हासिल की। किंग कोहली ने उस समय अच्छा प्रदर्शन किया, जब टीम को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। 

शनिवार को टूर्नामैंट के अंतिम मैच में उनके प्रदर्शन ने हमारी अंतिम जीत में अहम योगदान दिया। यह टी-20 क्रिकेट में उनका आखिरी मैच था। वह इस पल को कभी नहीं भूलेंगे। उनके देशवासी निश्चित रूप से इस महान क्रिकेटर के प्रति राष्ट्र के ऋण को नहीं भुला पाएंगे। मुझे गर्व है कि उन्होंने अपनी पत्नी के अभिनय करियर के सम्मान में मेरे शहर मुंबई को अपना स्थायी निवास चुना है। टी-20 क्रिकेट से संन्यास लेने वाले एक और दिग्गज खिलाड़ी कप्तान रोहित शर्मा हैं। उन्होंने आई.पी.एल. मैचों में बल्ले के साथ बहुत आनंद और मनोरंजन प्रदान किया है। उन्होंने प्रत्येक खेल की शुरूआत से ही विध्वंसक की भूमिका निभाई। उनके छक्के और चौके, जिन्हें उन्होंने बेपरवाही से मारा, ने पूरे आई.पी.एल. मैचों में उनके समर्थकों को उत्साहित रखा। 

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सैमीफाइनल को छोड़कर वे विश्व कप में उतने सफल नहीं रहे, जहां रोहित कुछ रन से शतक चूक गए। मैं रोहित का मुंबई में स्वागत करता हूं, जहां वे बस गए हैं। विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत को देखना एक और शानदार अनुभव था, न केवल स्टंप के पीछे बल्कि स्टंप के सामने भी। सूर्यकुमार यादव, शिवम दुबे और हरफनमौला खिलाड़ी अक्षर पटेल,  ने टीम को मुश्किल समय में मुश्किल हालात से निकाला। चाइनामैन गेंदबाज कुलदीप यादव और सभी ने इस विश्व कप टीम की सफलता में अपना योगदान दिया। यह एक बेहतरीन टीम प्रयास था, जिसका नेतृत्व एक महान कप्तान ने किया। विरोधियों के साथ सम्मान से पेश आया। छोटी टीमों के खिलाफ खेलते हुए भी आत्मसंतुष्टि की कोई गुंजाइश नहीं थी। 

हमारे राजनीतिक नेता इस टी-20 विश्व कप क्रिकेट टीम से कुछ सबक सीख सकते हैं। सीखने लायक महत्वपूर्ण सबक नेतृत्व के क्षेत्र में हैं। सबको साथ लेकर चलें, टीम के हर खिलाड़ी की ताकत का इस्तेमाल करें और अपने विरोधियों को कभी भी कुचलने लायक मिट्टी न समझें। यहां तक कि आर.एस.एस. के सरसंघचालक ने भी लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद यही सलाह दी थी, जहां उन्होंने अपने गढ़ उत्तर प्रदेश में काफी जमीन खो दी थी। मेरे अनुसार, जब बी.सी.सी.आई. ने टीम को 125 करोड़ रुपए का ईनाम देने की घोषणा की, तो यह एक चौंकाने वाली बात थी। देश का प्रतिनिधित्व करने वालों के लिए विश्व कप में सफलता से बड़ा कोई ईनाम नहीं हो सकता, चाहे वह टैस्ट क्रिकेट हो, वनडे इंटरनैशनल हो या टी-20। अपने देशवासियों द्वारा उनके प्रयासों को मिलने वाला प्यार, सम्मान और मान्यता ही पुरस्कार पिरामिड का शिखर है। हमारे सामूहिक उत्साह के इस चरण में मौद्रिक पुरस्कारों का दिखावा करने की आवश्यकता नहीं है। 

अखबारों में नकद पुरस्कार की शुरूआत को इतने भद्दे तरीके से नहीं दिखाया जाना चाहिए था। इसमें से निम्न कोटि के व्यवसायीकरण की बू आती है। यह भगवद् गीता की शिक्षाओं के विरुद्ध है। बिना किसी प्रतिफल की आशा के अपना कत्र्तव्य करना गीता की शिक्षाओं का मूल है। बी.सी.सी.आई. ने यह क्यों मान लिया कि खिलाड़ी सफलता की तलाश में पैसे के बारे में सोच रहे थे? बेशक, मौद्रिक रूप में एक समान पुरस्कार की हमेशा घोषणा की जाती है और इसकी अपेक्षा की जाती है। इसे बिना किसी धूमधाम के वितरित किया जा सकता था जिससे लोगों को यह न लगे कि खिलाड़ी केवल पैसे के लिए खेलते हैं। इससे कहीं बड़ी चीज है जिसके लिए वे प्रयास करते हैं वह है प्रशंसा, प्यार और सबसे बढ़कर भारत के लोगों का सम्मान।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 


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