पुराने कानून निरस्त करने की सख्त जरूरत

punjabkesari.in Thursday, Oct 27, 2022 - 04:46 AM (IST)

यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद भी यहां तक कि जब हम दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं, तब भी हमारे पास ब्रिटिश शासकों द्वारा उनके हितों के अनुरूप पुराने और पुरातन कानून हैं। 

वर्षों से औपनिवेशक कानूनों को निरस्त करने की सख्त जरूरत के प्रति आवाज उठाई गई है और ऐसे कानूनों की पहचान करने के लिए कई आयोगों का गठन किया गया है जिन्हें अच्छे के लिए दफन किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्रियों, कानून मंत्रियों और भारत के विभिन्न मुख्य न्यायाधीशों जैसे गणमान्य व्यक्ति अपनी चिंताओं को व्यक्त कर रहे थे और पुराने कानूनों की पूरी समीक्षा की मांग कर रहे थे लेकिन हमारे पास ऐसे कानून हमारी कानूनी प्रक्रिया में व्याप्त हैं। मामले का बदत्तर बनना इस तथ्य से है कि हम दुनिया के सबसे मुकद्दमेबाज देश हैं। 

सर्वोच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालतों तक भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है। ऐसी भीड़ देखकर समस्या की गंभीरता का पता चलता है। विडम्बना देखिए कि सरकार ही सबसे बड़ी वादी है। जटिल कानून और अन्य विदेशी भाषाओं के शब्दों के प्रयोग सहित कठिन भाषा का प्रयोग समस्या को और भी बढ़ा देता है। कोई आश्चर्य नहीं है कि देशभर की विभिन्न अदालतों में 4 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। 

हाल ही में कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के एक सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी औपनिवेशक कानूनों को हटाने के लिए एक भावुक अपील की। न्यायिक वितरण प्रणाली में देरी के कारण लोगों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक को बताते हुए उन्होंने कहा कि एक सक्षम राष्ट्र के लिए संवेदनशील न्यायिक प्रणाली एक आवश्यक शर्त है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रतिगामी औपनिवशेक कानूनों को हटा कर उप निवेशवाद की बेडिय़ों को तोडऩा हमारे लिए महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से सभी प्रधानमंत्री और कानून मंत्री आजादी के बाद से इसी तरह की बात कर रहे हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि कुछ सबसे कठोर कानूनों का लगातार सरकारों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है। 

जाहिर है कि मौजूदा सरकार को राजनीतिक विरोधियों से निपटने या आलोचकों को चुप करवाने के लिए इन कानूनों का इस्तेमाल करने के लिए उपयुक्त समय है। अतीत में भी ऐसा होता रहा है। वर्तमान सरकार के कार्यकाल में इस तरह की घटनाओं में तेजी देखी गई है। उसी सम्मेलन में बोलते हुए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि पिछले 8 वर्षों के दौरान 1500 अप्रचलित और पुरातन कानूनों को खत्म कर दिया गया है हालांकि उन्होंने किसी विशेष कानून का यहां उल्लेख नहीं किया जिसे खत्म कर दिया गया हो।

निश्चित रूप से यह एक स्वागतयोग्य कदम है। जाहिर तौर पर अभी और भी बहुत कुछ इस मामले में करने की जरूरत है। हमारे पास अभी भी राजद्रोह कानून, आपराधिक मानहानि कानून और फिर से नामित गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसे कठोर उप-निवेशक कानून हैं जिनका सरकार की आलोचना को रोकने या हतोत्साहित करने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है। कानून लागू करने वालों को स्पष्ट रूप से लगता है कि सरकार की कोई भी आलोचना देश की ही आलोचना है। इस तरह के कानूनों के दुरुपयोग के कई उदाहरण हैं।

2 दशक पुरानी बॉलीवुड फिल्म पर आधारित 4 साल पुराने ट्वीट के लिए किसी को सलाखों के पीछे डालना या बलात्कार के मामले में रिपोर्ट करने का प्रयास करने के लिए किसी को सालों तक जेल में डालने को कोई कैसे सही ठहरा सकता है। लगभग 2 वर्ष पूर्व केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन का अध्ययन करने और सिफारिश करने के लिए राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. रणबीर सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इससे पहले पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री तथा वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण अडवानी द्वारा गठित मलीमठ समिति ने सबसे पहले आई.पी.सी. और सी.आर.पी.सी. में कई बदलावों की सिफारिश की थी। 

न्याय वितरण प्रणाली को बदलने के लिए एक समयबद्ध निर्णय की आवश्यकता है जिसमें औपनिवेशक कानूनों को हटाना, राजद्रोह से निपटने वाले कानून में संशोधन और राज्य के खिलाफ युद्ध छेडऩा अदालतों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा का सरलीकरण शामिल होना चाहिए ताकि वादी मुद्दों को समझ सके। भारत के नए मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ जोकि अपनी आगे और आधुनिक सोच के लिए जाने जाते हैं सरकार को बहुत आवश्यक सुधार लाने के लिए प्रेरित करेंगे।-विपिन पब्बी    
 


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