पुलिस विभाग में ‘कौशल विकास’ की अत्यंत आवश्यकता
punjabkesari.in Sunday, Aug 29, 2021 - 04:06 AM (IST)

सफलता की सीढ़ी हर व्यक्ति चढऩा चाहता है मगर कुछ कारणों से वह कई बार सफल नहीं हो पाता। तीव्र पानी की लहरों में व्यक्ति तभी डूबता है जब उसे तैरना नहीं आता या उसके पास तैरने के साजो-सामान नहीं होते। लोगों की पुलिस से बहुत अपेक्षाएं होती हैं तथा इसी के साथ उनके मन में कई प्रकार की भ्रांतियां भी पनपती रहती हैं। हर व्यक्ति यही चाहता है कि पुलिसमैन एक फरिश्ते की तरह काम करने वाला, साहसी व बुद्धिमान हो तथा जादूगर की तरह छड़ी घुमा कर करिश्मे करने वाला हो। उसका पेट बढ़ा हुआ न हो तथा एथलीट की तरह दौड़ कर मुलजिमों को पकडऩे वाला हो।
लोगों को शायद इस बात का एहसास नहीं है कि पुलिसमैन सुबह अपना पेट भर कर बाहर निकलता है तथा उसको कई बार दिन में खाना भी नसीब नहीं होता। दिन भर ट्रैफिक के धुएं व मिट्टी से उसका शरीर भरा होता है तथा एेसे में उसके पेट का बाहर आना स्वाभाविक है। उसका भी दिल करता है कि वह थोड़ा सा विश्राम कर ले, दुकान में जाकर ठंडी बोतल का पानी पी सके मगर लोगों को ये सारी बातें गवारा नहीं होतीं। लोग कहते हैं कि पुलिसमैन अभद्र व अनाड़ी होता है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या वह अपराधियों को यह बोले कि बैठिए भाई साहिब, कैसे हो। यदि पुलिसमैन पर रूखापन न आए तो गुनहगार और गुनाह करता चला जाएगा। तमाम मजबूरियों व मुश्किलों के बावजूद पुलिस को अपना कार्य बखूबी निभाना तथा अपने जीवन को जोखिम में डाल कर दूसरों को सुरक्षित रखना होता है। अपनी प्रतिभा व कौशल को निखारने व उभारने की उसे हर समय आवश्यकता होती है, जिसके लिए विभाग प्रयत्नशील रहता है, मगर फिर भी कुछ सुझाव हैं जिनका विवरण इस प्रकार से है :
पारस्परिक रिश्ते मजबूत करने की आवश्यकता: पुलिस उपसंस्कृति कुछ ऐसी बन चुकी है, जिसमें हर पुलिसमैन एक दूसरे के प्रति ईष्र्यालु बन चुका है। अगर कोई अच्छे पद पर तैनात है तो दूसरा हमेशा इस ताक में रहता है कि वह कब उसकी जगह पर तैनात हो जाए, जिसके लिए वह अपने साथी की जड़ें काटने की कोशिश करता है। अधिकारी वर्ग भी सामान्यत: अधीनस्थों को बलि का बकरा बनाते रहते हैं। अनुशासन बनाए रखना पुलिस नेतृत्व का कत्र्तव्य है, मगर यह केवल सजा के माध्यम से ही नहीं, बल्कि सुधारात्मक तरीकों से ज्यादा बेहतर ढंग से किया जा सकता है। किसी भी कार्य को सफल बनाने के लिए एक टीम की तरह काम करना होता है तथा जब तक आपसी संबंध सौहार्दपूर्ण नहीं होंगे, तब तक पुलिस अपना कार्य सुदृढ़ता से नहीं कर पाएगी।
मानसिकता में बदलाव : दूसरों की समस्या को अपनी समस्या समझ कर कार्य करना व अपने इस नजरिए में सुधार लाने से ही पुलिस अपनी खोई हुई छवि को सुधार सकती है। किसी असहाय अकेली महिला को पुलिसमैन को देख कर सुकून मिलना चाहिए, न कि उसे खुद ही भेडि़ए की तरह भक्षक बनना चाहिए। पुलिस वर्ग को नहीं भूलना चाहिए कि रैंक से बढ़ कर व्यक्ति की इंसानियत होती है, जिसका प्रभाव चिरस्थायी होता है।
आत्मविश्वास व मनोबल में वृद्धि : नि:संदेह पुलिसमैन का आत्मविश्वास व मनोबल दूसरे कर्मचारियों से अधिक होता है। उसे अकेले ही कई बार भीड़ को नियंत्रित करना तथा खूंखार मुलजिमों को बिना हथकड़ी लगाए ले जाना होता है और कई प्रकार के लोगों व राजनीतिज्ञों से जूझना होता है। चिलचिलाती धूप व कंपकंपाने वाली सर्दी में यदि वह कभी लडख़ड़ा जाए तो जनता उसका बखिया उधेड़ देती है। इन सब हालातों का सामना करने के लिए सशक्त पुलिस नेतृत्व की जरूरत होती है ताकि पुलिसमैन का आत्मविश्वास और मनोबल एक चट्टान की तरह बना रहे।
व्यवहार में परिवर्तन : पुलिस की स्थिति सांप के मुंह में छिपकली वाली होती है। यदि अपराधी से सख्ती से पेश न हुए, यदि उसे पीटा न गया तो जनता उसे कौड़ी का रूप दे देती है और यदि अपराधी को पीटा जाए तब प्रैस, बुद्धिजीवी व न्यायालय उस पर कलंक का तमगा लगा देते हैं। पुलिस के व्यवहार को अच्छा बनाने के लिए विभाग भरसक प्रयत्न करता रहता है मगर फिर भी अभी काफी कुछ करना बाकी है। आधुनिक तकनीकों की जानकारी : आज अपराधी हाईटैक हो चुके हैं तथा कई प्रकार के अपराध, विशेषकर बैंक फ्रॉड, मोबाईल व कम्प्यूटर हैक इत्यादि करना उनका बाएं हाथ का काम है। इस सब के लिए पुलिस को आधुनिक साजो-समान उपलब्ध करवाना तथा निरंतर प्रशिक्षण देना अति आवश्यक है।
अत: पुलिस की कुंद पड़ी प्रतिभाओं को धारदार बनाने की अत्यंत आवश्यकता है। केवल पुलिस विभाग ही एेसा है, जिसे समाजसेवा करने का सबसे अधिक मौका प्राप्त है तथा इसका सदुपयोग करते हुए लोगों का सहयोग प्राप्त करके अपने लोभ-लालच पर नियंत्रण रख कर जनता की सेवा करना चाहिए। बिकाऊ माल न बन कर अपने जमीर की रक्षा करते हुए शेर की तरह आगे बढऩे की जरूरत है। पुलिसिंग के असल मकसद को प्राप्त करने के लिए अपनी वर्दी को दागदार होने से बचाना होगा, ताकि जनता कह उठे कि डरने की क्या बात है, जब पुलिस हमारे साथ है।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)